दशा माता व्रत कथा, पूजा विधि, नियम, क्या खाना चाहिए, उद्यापन PDF Download

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स्वागत है दोस्तों आपका आज के हमारे एक नए और मजेदार आर्टिकल में, तो दोस्तों क्या आपको दशा माता के बारे में पता है, कि वह कौन है। शायद आपको उनके बारे में पता नहीं होगा, क्योंकि अक्सर हमें उनके बारे में ज्यादा सुनने को नहीं मिलता है। और तो और क्या आपको दशा माता के व्रत के बारे में पता है, अगर आपको दशा माता और दशा माता व्रत दोनों के बारे में ही नहीं पता है, तो आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए बहुत ही ज्यादा इंपॉर्टेंट होने वाला है। क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम आपको यह तो बताएंगे ही की दशा माता कौन है, साथ ही साथ हम आपको यह भी बताएंगे की दशा माता व्रत क्या है? इसे कब किया जाता है? और और इस दौरान किस कथा का पाठ किया जाता है, यानी कि हम आपको दशा माता व्रत कथा के बारे में भी बताएंगे।

इतना ही नहीं, अगर आप भी इस व्रत को करना चाहे और माता का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहे, तो उसके लिए हम आज के आर्टिकल में आपको इसकी पूजा विधि भी बताएंगे, तो यह सब जानने के लिए हमारे इस आर्टिकल में बने रहे तो चलिए आगे बढ़ते हैं और शुरू करते हैं।

कौन है दशा माता और क्या है दशा माता व्रत (Kon hai Dasha mata aur kya hai Dasha mata ka Vrat)

तो दोस्तों अगर बात करें की दशा माता कौन है, तो हम आपको बता दें कि है यह नारी शक्ति का स्वरूप ही है, जिस प्रकार से दुर्गा माता को नारी शक्ति का स्वरूप माना जाता है, इसी तरह दशा माता को भी नारी शक्ति का स्वरूप माना जाता है, जिन्हें की प्रतिमा में चार हाथों से दर्शाया जाता है। जिनमें ऊपर के हाथों में दाएं और बाएं हाथ में त्रिशूल और तलवार और और नीचे के दाएं और बाएं हाथ में कमल और कवच होते हैं, और अगर बात करें की दशा माता व्रत क्या है, तो हम आपको बता दें कि यह बाकी देवी देवताओं के व्रत के तरह ही एक व्रत है, जिसका की बहुत ही ज्यादा महत्व है। कहा जाता है कि घर की महिलाएं खासकर जो कि विवाहित हो, वह इस व्रत को करती है ताकि घर में सुख समृद्धि बनी रहे, और घर में धन संपत्ति की कभी भी कमी ना हो। जिसके लिए वह सूती के धागे में 10 गांठ मारकर अपने गले में पहनती भी है। जिसका इस व्रत में बहुत ही ज्यादा महत्व होता है।

अगर बात करें इस व्रत को कब किया जाता है, तो हम आपको बता दें की इस व्रत को चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है, यानी की होली के नौ दिनों बाद ही इसका व्रत किया जाता है। दोस्तों इस व्रत को करने का एक और नियम है, कि जो भी स्त्री इस व्रत को करती है, वह पीपल के छांव में जाकर पीपल पेड़ की पूजा करती है, और साथ ही दशा माता व्रत कथा का भी पाठ करती है, जिसके बारे में हम आपको आगे बताने वाले हैं।

तो अगर आप भी इस व्रत को करना चाहते हैं ताकि आपको भी माता का आशीर्वाद प्राप्त हो और आपके घर में भी सुख समृद्धि बनी रहे, तो चलिए आगे बढ़ते हैं और आपको व्रत कथा और व्रत से जुड़ी कुछ जानकारी प्रदान करते हैं।

दशा माता व्रत कथा (Dasha Mata Vrat Katha)

दोस्तों जिस प्रकार से सावन सोमवार में सावन सोमवार की व्रत कथा, बृहस्पति व्रत में बृहस्पति व्रत कथा का पाठ करना आवश्यक होता है, उसी प्रकार हम आपको बता दें कि अगर आप दशा माता का व्रत करते हैं, तो इस दौरान आपको दशा माता व्रत कथा का भी पाठ करना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है, तभी जाकर आपको आपके व्रत का पूरा फल मिलता है, और आपके घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। इसलिए अक्सर महिलाएं इस व्रत के दौरान व्रत करके इस कथा का पाठ जरूर करती है। तो अगर आप भी इस व्रत को कर रहे हैं, या फिर करने के बारे में सोच रहे हैं, तो नीचे हमने आपको दशा माता व्रत कथा के बारे में बताया है उसका पाठ करके ही आप अपना व्रत करें।

बहुत समय पहले की बात है एक राज्य था जहां की एक नल नाम का राजा, और एक दमयंती नाम की रानी शासन करते थे। दोनों पति-पत्नी से इस तरह वह बहुत ही खुशी से अपना जीवन यापन करते थे। उनके राज्य में भी किसी प्रकार की समस्या नहीं थी, उनका राज्य भी खुश और संपन्न था। राजा और रानी के दो पुत्र भी थे। एक दिन की बात है, जब राजा के राजमहल में एक ब्राह्मणी आई, वह दिन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि का था यानी की होली दशा का था, इसलिए उस ब्राह्मणी ने रानी को कहा की रानी साहिबा मेरे पास यह दशा का डोर है, कृपया आप इसे ले लें। रानी कुछ बोलने वाली ही थी, कि उससे पहले रानी की दासी ने कहा कि हां रानी साहिबा, आप इस डोर को ले लीजिए, वैसे भी आज दशा माता व्रत का दिन है,  आज के दिन सभी विवाहित महिला व्रत रखती हैं और इस डोर को अपने गले पर बांधती हैं जिससे कि घर में सुख समृद्धि आती है और घर में संपत्ति बनी रहती है।

दासी के ऐसे वचन सुनकर रानी बहुत ही ज्यादा खुश हुई, और उसने उस ब्राह्मणी से उसे डोर को ले लिया, और उसके बाद उसने पूरी विधि विधान से दशा माता की पूजा की, कथा का पाठ किया, और व्रत पूरा करने के बाद उस डोर को अपने गले पर बांध लिया, और फिर से खुशी-खुशी अपनी जिंदग बिताने लगी। फिर एक दिन ऐसा आया की राजा की नजर रानी के गले पर लगे उस डोरे पर चली गई, जो रानी ने व्रत वाले दिन से अपने गले में बांध रखी थी।

जब राजा ने देखा की रानी ने यह कैसा डोर अपने गले पर बांध रखा है, तो राजा रानी से बोले की महारानी आपके पास इतने सुंदर-सुंदर हीरे जवाहरात की माला है, तो अपने भला इस डोर को अपने गले पर क्यों बांध रखा है, यह बहुत ही ज्यादा खराब दिख रहा है। इतना कहते ही राजा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया, और रानी के गले में बंधे उस डोर को खींचकर तोड़कर जमीन पर फेंक दिया। यह देख रानी बहुत ही ज्यादा दुखी हो गई, उन्होंने उस डोर को अपने हाथों में उठा लिया, और राजा से कहा कि यह आपने क्या किया महाराज, यह तो दशा माता का डोर था, जिसे मैंने विधि विधान से व्रत करके अपने गले में बांध था, अब आपने इनका अपमान कर दिया है, अब पता नहीं भला क्या होगा।

लेकिन राजा को रानी के इस बात से बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ा, एक दिन की बात है, कि जब राजा रात्रि में विश्राम कर रहा था, तभी दशा माता ने एक बुढ़िया का वेश धारण करके राजा को सपने में अपने दर्शन दिए और राजा से कहा कि तूने मेरा जो अपमान किया है, तुम्हें उसका फल भोगना होगा। अब तुम्हारे अच्छे दिन जाने वाले हैं, और अब तुम्हें बहुत ही बुरे दिनों का सामना करना होगा। इतना कहकर दशा माता चली गई।

जैसा की दशा माता ने सपने में राजा को कहा था वैसा ही हुआ। कुछ दिनों बात राजा की जितनी भी संपत्ति थी वह धीरे-धीरे नष्ट होने लगे, राजा के पास जितने हाथी घोड़े थे वह भी खत्म होने लगे, यहां तक कि उनके महल के पत्थर भी अब गिरने लगे थे, धीरे-धीरे वह महल भी नहीं बचा, और राजा का मुकुट, वह तो बहुत पहले ही उड़कर कहीं जा चुका था। अब उनके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा था, जिसके बाद राजा रानी बहुत ही ज्यादा दुखी हो गए थे वे सोचने लगे कि हमें किसकी नजर लगी जो हमारे साथ ऐसा हो गया।

तभी राजा ने अपनी पत्नी दमयंती से कहा कि तुम दोनों पुत्रों को लेकर अपने मायके चली जाओ, मैं यहां देख लूंगा। इसके बाद रानी ने कहा कि नहीं महाराज मैं आपके साथ ही रहूंगी, चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों ना हो, मैं आपका साथ नहीं छोडूंगी। इसके बाद राजा ने रानी को कहा, अगर ऐसी बात है तो ठीक है चलो हम अपने इस देश को छोड़कर किसी और देश चल देते हैं। वहां हमें जरूर कुछ न कुछ काम मिल जाएगा। ऐसा कहने के बाद दोनों शहर की ओर चल पड़े, उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को रास्ते में ही स्थित भील राजा के महल में अमानत के रूप में छोड़ दिया ताकि उन्हें सफर करना ना पड़े।

अपने पुत्र को राजा के यहां छोड़कर दोनों पति-पत्नी आगे चलने लगे, फिर वह उस गांव में पहुंच गए जहां की राजा का एक बहुत ही अच्छा मित्र रहता था, यह देखकर रानी ने राजा से कहा कि क्यों ना हम आज तुम्हारे मित्र के यहां ही रहे, वैसे भी हम बहुत ही ज्यादा थक गए हैं। उन्होंने वैसा ही किया, राजा और रानी अपने मित्र के यहां गए, जहां उनका बहुत ही अच्छी तरह से स्वागत किया गया, उन्हें अनेकों प्रकार के पकवानों के सहित भोजन करवाया गया।

इतना ही नहीं, राजा के मित्र ने दोनों को अपने घर के शयन कक्ष में सोने की भी सुविधा प्रदान की। जिस कमरे में राजा और रानी सो रहे थे, उस कमरे में एक मोर की आकृति के खुटी में राजा के मित्र की पत्नी का एक बहुत ही कीमती हार लटका हुआ था। राजा और रानी आराम से सो रहे थे, कि अचानक ही रात को रानी की आंख खुली, और रानी ने देखा कि जिस मोर की खुटी पर वह हार लटका था, वह मोर उस कीमती हार को निगल रहा था। रानी यह देखकर बहुत ही ज्यादा आश्चर्यचकित हो गई कि आखिर एक निर्जीव वस्तु कैसे जीवित हो सकती है।

इसके बाद रानी ने तुरंत राजा को उठाया और अपने आंखों के आगे घटित हो रही घटना को राजा को बताया और दिखाया। जिसके बाद राजा ने कहा, कि इस बात पर तो किसी को भी विश्वास नहीं होगा कि निर्जीव ने एक हार निगल लिया है, हम सुबह उठकर मित्र को क्या जवाब देंगे। फिर दोनों ने फैसला किया कि उन्हें रात में ही इस घर से निकल जाना चाहिए, और उन्होंने वैसा ही किया, रात को ही वे दोनों अपने मित्र के घर से निकल गए।

जब सुबह मित्र की पत्नी ने अपनी घर के खुटी में टांगे हुए हर को ढूंढा, तो उसे वह हार कहीं नहीं मिला, तो उसने अपनी पति से कहा कि तुम्हारे दोस्त तो चोर हैं, वह रात को ही मेरा इतना कीमती हार लेकर भाग गए। यह सुनने के बाद मित्र ने अपनी पत्नी को कहा, कि तुम ऐसा बिल्कुल भी मत कहो, तुम धीरज रखो, मेरा दोस्त ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, वह मर जाएगा लेकिन ऐसा काम कभी नहीं करेगा।

इधर राजा रानी चलते ही जा रहे थे, तब वह अपनी बहन के गांव पहुंचे। राजा ने अपनी बहन के पास खबर पहुंचाई की राजा और रानी तुम्हारे गांव आए हैं, जिसके बाद जब यह खबर उसकी बहन तक पहुंची, तो उसने खबरी से पूछा कि उनकी हालत कैसी है, तब खबरी ने बताया कि वह अकेले हैं, और पैदल ही आए हैं, और उनकी हालत बहुत ही ज्यादा खराब है। जिसके बाद राजा की बहन ने एक थाली में कांदा और रोटी लिया और तुरंत ही अपने भाई और अपनी भाभी से मिलने के लिए चली गई, और कहा कि आप इसे खा लीजिए। राजा ने तो वह खा लिया लेकिन रानी ने अपने हिस्से का खाना वहीं जमीन पर छोटा सा गड्ढा करके वहीं दबा दिया और दोनों फिर से आगे चलने लगे।

जब दोनों थोड़ी आगे गए, तो उन्हें एक नदी दिखाई दी राजा ने उस नदी से कई मछली पकड़ी, और रानी से कहा कि पास के गांव में एक सेठ लोगों को भोजन करवा रहा है, तो तुम एक काम करो कि जब तक मैं वहां से हमारे लिए परोसा लेकर आता हूं, तब तक तुम इन मछलियों को अच्छे से भुज कर हमारे खाने के लिए तैयार कर दो। ऐसा कहकर राजा गांव की तरफ निकल गया, वह उस सेठ की घर से परोसा लेकर आ ही रहा था, कि रास्ते में ही एक चील ने राजा के हाथ में झपट्टा मार दिया, जिससे कि वह सारा भोजन जमीन पर ही गिर गया, जिसके बाद राजा ने सोचा की कही रानी मुझे गलत ना समझ ले, कि मैंने रास्ते में ही सारा भोजन खा लिया, और उधर रानी भी मछलियों को भूंज रही थी, की मछली अचानक से ही जीवित हो गई और वापस नदी में कूद गई। फिर रानी ने भी वही सोचा की राजा यह ना समझे कि मैं सारी मछलियां अकेले ही खा गई। जब राजा नदी के किनारे पहुंचे, तो दोनों ने एक दूसरे से एक शब्द भी नहीं कहा, दोनों यूं ही आगे की ओर बढ़ने लगे।

जब वह और आगे गए, तो वह उस राज्य में पहुंच गए, जहां की रानी का मायके था, जिसके बाद राजा ने रानी से कहा कि अब तुम अपने मायके चली जाओ, और अपने महल में ही दासी का काम कर लेना। इसके बाद रानी ने राजा के लिए पूछा तो राजा ने कहा कि मैं भी इस राज्य में अपने लिए कोई छोटा सा काम ढूंढ लूंगा, और अपना गुजारा कर लूंगा। इस तरह से रानी अपने ही मायके में जाकर दासी का काम करने लगी, और राजा भी एक तेली के घर में काम करने लग गया, जिससे कि दोनों का गुजारा हो जाता था।

दोनों को उस राज्य में अलग-अलग काम करते हुए बहुत ही ज्यादा दिन हो गए थे, एक दिन की बात है, जब फिर से होली दशा यानी की दशा माता के व्रत का दिन आया, तो रानी के मायके में जहां रानी दासी के रूप में कम कर रही थी, वहां के सभी रानियां ने सर धोकर स्नान किया था ताकि वह आज का व्रत रख सके और दशा माता की पूजा कर सकें। इसके बाद दासी ने सभी रानियां के सिर के बाल भी गूथ दिए। इतना करने के बाद राजमाता ने रानी जोकि वहां दासी के रूप में कम कर रही थी उनसे कहा कि आ मैं भी तेरे बाल गूथ देती हूं जिसके बाद वह रानी के बाल गूथने लगी।

जब राजमाता रानी के बाल गूथ रही थी तो उन्होंने रानी के बाल में पद्म देखा, और यह देखकर राजमाता के आंखें भर आई, और वह जोर-जोर से रोने लगी। आंसू टपक कर रानी के ऊपर गिरे, तो उन्होंने पीछे देखा तो राजमाता रो रही थी। तो दासी ने यानी की रानी ने राजमाता को कहा, कि राजमाता आपको क्या हो गया, आप रो क्यों रही हो। उसके बाद राजमाता ने दासी को कहा, कि तेरी जैसी भी मेरी एक प्यारी सी बेटी थी, उसके सिर में भी पद्म था, आज मैंने तेरे सिर में भी पद्म देखा तो मुझे अपने इस बेटी की याद आ गई और मेरा मन भर आया।

रानी ने जब अपनी ही माता की ऐसी वचन सुने तो उन्हें भी रोना आ गया, और उन्होंने राजमाता से कहा कि माता मैं ही आपकी बेटी हूं, लेकिन मैंने आपको अपने बारे में नहीं बताया, दशा माता हमसे नाराज हैं और उन्हीं की कोप से मेरी ऐसी हालत हो गई है। यह सुनकर रानी की माता ने कहा कि अगर ऐसा है तो तुमने अब तक हमें इस बारे में क्यों नहीं बताया, तब रानी ने कहा कि मैं भला आपको इस बारे में बात कर भी क्या करती। आपको बताने से मेरे बुरे दिन नहीं कटते। उसके बाद रानी ने कहा कि आज दशा माता के व्रत का ही दिन है, आज मैं पूरी विधि विधान से पूरे दिन व्रत रखूंगी, और दशा माता की पूजा करूंगी, और अपने द्वारा हुए गलती की क्षमा याचना उनसे करूंगी।

इतना सुनने के बाद राजमाता ने अपनी बेटी रानी से कहा, कि चलो ठीक है जो भी हुआ लेकिन आखिर हमारे जमाई कहां है, जिसके बाद रानी ने अपनी माता को बताया, कि वह भी इसी गांव में है, वह किसी तेली के घर में काम करके अपना गुजारा कर रहे हैं। यह सुनकर राजमाता को अच्छा नहीं लगा, उन्होंने तुरंत ही सिपाहियों को राजा को ढूंढ कर लाने को कहा। सिपाहियों ने राजा की खोजबीन की, और राजा को लेकर अपने महल आए, उसके बाद महल में राजा का बहुत ही ज्यादा धूमधाम से स्वागत किया गया, उन्हें अच्छे से स्नान करवाया गया उन्हें स्वच्छ वस्त्र दिए गए, और उन्हें अच्छे-अच्छे पकवानों के साथ भोजन करवाया गया।

जैसा कि दमयंती ने उस दिन दशा माता का व्रत किया था, और साथ ही विधि विधान से व्रत कथा का भी पाठ किया था, और अपने गले में डोर भी बांधी थी। जिसकी वजह से धीरे-धीरे राजा और रानी की हालत सुधरने लगी, माता की कृपा से दोनों के अच्छे दिन फिर से वापस आने लगे। कुछ दिन ऐसे ही उन्होंने रानी के मायके में व्यतीत किया, फिर एक दिन की बात है जब राजा ने रानी को कहा कि चलो अब जब सब कुछ ठीक ही हो गया है, तो हम वापस से अपने राज्य चलते हैं। तो दोनों वापस अपने राज्य जाने का फैसला करते हैं, इसी बात पर दमयंती के पिताजी राजा और रानी को बहुत सारे हीरे जवाहरात, धन संपत्ति और हाथी घोड़े देकर अपने राज्य के लिए विदा करते हैं।

जब वह वापस जा रहे थे, तो वह उसी नदी के किनारे पहुंचे, जहां की रानी ने मछलियों को भूंजा था, और राजा परोसा लेने गए थे। उस जगह में आकर राजा ने रानी से कहा कि तुम मुझे गलत मत समझना, जब मैं तुम्हारे लिए गांव से परोसा लेकर आ रहा था, तब चील ने मुझ पर हमला कर दिया, जिसकी वजह से सारा का सारा परोसा जमीन पर ही गिर गया। इसलिए तुम यह मत समझना कि सारा का सारा भोजन मैं ही खा गया।

जिसके बाद रानी ने भी राजा से कहा कि महाराज आप भी मुझे गलत मत समझिएगा जब मैं मछलियों को भूंज रही थी, तब वह मछलियां अपने आप ही जीवित होकर वापस नदी में चली गई, मैंने भी मछलियां नहीं खाई थी, इस बात से दोनों के बीच ही गलतफहमी दूर हो गई, और दोनों यूं ही खुशी से आगे चलते गए।

आगे जब वे चले तो फिर से राजा के बहन का गांव आया, इसके बाद राजा ने फिर से खबरी के हाथों अपनी बहन के पास खबर पहुंचाई की राजा और रानी आए हैं। जिसके बाद राजा की बहन ने फिर से खबरी से पूछा कि इस बार राजा और रानी की हालत कैसी है, तब खबरी ने बताया कि उनकी हालत इस बार बहुत ही अच्छी है, उनके पास बहुत ही ज्यादा हाथी घोड़े हैं और उनके पास बहुत ही ज्यादा कीमती कीमती आभूषण भी है, जिसके बाद राजा की बहन ने मोती की थाली सजाई, और वह तुरंत ही अपने भाई और भाभी से मिलने के लिए आई। तभी दमयंती ने अपने द्वारा उस स्थान पर गाड़े हुए रोटी और कांदे को धरती माता को उन्हें लौटाने को कहा, इसके बाद रानी ने देखा तो रोटी सोने का बन चुका था और कांदा चांदी का बन चुका था, राजा और रानी ने उन दोनों चीजों को राजा की बहन की थाली में डाल दिया और अपने राज्य की ओर आगे बढ़ गए।

चलते-चलते वह फिर से अपने मित्र के गांव में पहुंचे, जहां उन्होंने फिर से अपने मित्र के घर जाने के बारे में सोचा। जब वह अपने मित्र के यहां पहुंचे, तो फिर से राजा के मित्र ने राजा और रानी का तहे दिल से स्वागत किया, उन्हें अच्छा-अच्छा भोजन करवाया, और रात को उन्हें उसी शयन कक्ष में सुलाया। राजा के मित्र ने  हार के बारे में राजा से बात तक नहीं की, क्योंकि उसे मालूम था कि राजा कभी ऐसा नहीं कर सकते थे।

जब राजा और रानी उस कमरे में थे तब उन्हें पिछले बार की घटना याद थी इसलिए उन्हें नींद नहीं आ रही थी, तभी उन दोनों ने देखा कि जो मोर मित्र के पत्नी के हार को निगल गया था, वह उस हर को वापस उगल रहा है। यह देखकर दोनों ही राजा के मित्र के पास जाते हैं, और उन्हें बताते हैं कि देखो यह तुम्हारा हार है, जोकि इस मोर ने निगल लिया था। इस हार को हमने नहीं चुराया था। इसके बाद राजा का मित्र ने भी अपनी पत्नी से कहा कि देखो मेरा मित्र ऐसा नहीं है, मैंने तुमसे कहा था ना कि यह ऐसा कभी भी नहीं करेगा, यह लो तुम्हारा हार।

रात भर का समय अपने मित्र के घर में ही व्यतीत करने के बाद सुबह अपने नित्य कर्मों को संपन्न करने के बाद राजा और रानी अपने राज्य की ओर निकलने लगे, वह सबसे पहले भील राजा के राजमहल में गए, ताकि वह अपने द्वारा अमानत में दिए गए पुत्रों को उनसे वापस ले सके। लेकिन हुआ यह की राजा ने उन्हें उनके पुत्रों को लौटाने से मना कर दिया, जिसके बाद गांव वालों की मदद से राजा और रानी को उनके दोनों पुत्र प्राप्त हुए।

ऐसे ही पूरा परिवार अपने राज्य की ओर जाने लगा, दशा माता की कृपा से राजा का महल भी वापस उठ खड़ा हुआ था। जब गांव वासियों ने देखा कि राजा पूरे ठाट-बात से हाथी घोड़ा के साथ राज्य में प्रवेश कर रहे हैं। तो वह बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुए हैं, उन्होंने बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होकर बाजों के साथ राजा का स्वागत किया, उन्होंने ढोल नगाड़ों के साथ राजा को उनके महल तक पहुंचाया।

महल पहुंचकर राजा को यह पता चल गया कि मुझे दशा माता का अपमान नहीं करना चाहिए था, उसके बाद राजा और रानी दोनों ने मिलकर दशा माता का धन्यवाद दिया, कि उन्होंने उनके ऊपर इतनी ज्यादा कृपा रखी। उन्होंने यह भी कहा, कि आपने हमारे ऊपर जितनी कृपा की है, वह आप सभी व्यक्तियों के ऊपर कीजिएगा.

तो दोस्तों यह है वह दशा माता व्रत की कथा है जिसका पाठ आपको व्रत के दौरान करना बहुत ही ज्यादा आवश्यक होता है जिस प्रकार से दशा माता की कृपा से राजा नल और रानी दमयंती के जीवन में खुशियां वापस लौट आई इस प्रकार अगर आप भी दशा माता की आराधना करते हैं और दशा माता व्रत करते हुए व्रत कथा का पाठ करते हैं तो आपकी भी हर मनोकामना दशा माता पूर्ण करती है और आपके घर में भी हमेशा सुख समृद्धि और संपत्ति बनी रहती है तो चलिए आगे बढ़ते हैं और आपको दशा माता व्रत के बारे में और भी कुछ बताते हैं जैसे कि इसकी पूजा विधि नियम।

दशा माता व्रत के फायदे (Dasha Mata Vrat Ke Fayde)

तो दोस्तों अगर बात करें दशा माता व्रत को करने से मनुष्य को कौन-कौन से फायदे होते हैं, तो हम आपको बता दें कि जब भी आपकी दशा खराब होती है, तब आपका कोई भी कार्य सही से नहीं होता है। आपको नुकसान ही होता है, और आपको बहुत ही ज्यादा परेशानियों का सामना करना होता है।  तो ऐसी विपरीत स्थितियों में अगर आप दशा माता को प्रसन्न करते हैं, और उनकी आराधना करते हैं, और साथ ही दशा माता का व्रत रखते हैं। तो इससे दशा माता की कृपा से आपकी वह बुरी दशा खत्म हो जाती है, और अच्छी दशा आती है, जिससे कि आपके सारे दुख दर्द समाप्त हो जाते हैं, आपके घर में सुख समृद्धि होती है, और इसी के साथ आपके घर में धन संपत्ति भी आने लगती है। इस व्रत को महिलाएं ज्यादातर करती हैं, जिसके लिए वह एक सूती के 10 गांठ वाले डोर को अपने गले पर भी बांधती है, जिससे कि कहा जाता है कि घर में हमेशा सुख समृद्धि आती है, और व्यक्ति की दरिद्रता दूर होती है। तो अगर आप भी चाहते हैं कि आपको भी यह सारे फायदे मिले, तो आपको भी दशा माता का व्रत करके हमारे द्वारा बताएं कथा का पाठ जरूर करना चाहिए।

दशा माता व्रत पूजा विधि (Dasha Mata Vrat Ki Puja Vidhi)

तो दोस्तों अगर आप भी दशा माता के व्रत के दिन यानी कि चैत्र मास के कृष्ण पक्ष के दशमी तिथि को इस व्रत को करके कथा का पाठ विधि विधान से करना चाहते हैं, तो हम आपको बता दें कि इस पूजा के दौरान सूती के डोरे का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है, और इसी के वजह से ही घर सुख समृद्धि आती है। तो चलिए आपको दशा माता के व्रत पूजा विधि के बारे में पूरी जानकारी देते है।

1: पूजा वाले दिन सबसे पहले आपको सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेने हैं।

2: इसके बाद आपको माता दशा से व्रत का संकल्प लेना होगा, जिसके लिए आप अपने हाथों से ही किसी साफ स्वच्छ दीवार पर एक स्वास्तिक का निर्माण करें, और स्वास्थ्य के पास में ही मेहंदी या फिर सिंदूर का इस्तेमाल करके 10 छोटी-छोटी बिंदिया बना ले, स्वास्तिक को गणेश जी का रूप और बाकी 10 बिंदिया को माता दशा का रूप माना जाता है।

3: जैसा कि हमने आपको बताया कि इस दिन डोरे का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है, तो इसके लिए आपको एक कच्चे सूत का सफेद रंग का डोरा लेना है, जिसमें की आपको 10 गांठ लगा देनी है। उसके बाद आपको उसे हल्दी से पीले रंग में रंग देना है, और उसकी पूजा करनी है पूजा के बाद इसे आपको अपने गले पर बांध लेना है।

4: हम आपको बता दें कि इस दिन महिलाएं पीपल के पेड़ का भी पूजा करती है, क्योंकि उसमें विष्णु जी का वास होता है, सफेद डोर की मदद से ही आपको पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए।

5: इसके लिए आपको पीपल के पेड़ पर उस सफेद सूती के डोर को लपेटते हुए 10 बार परिक्रमा करनी चाहिए, उसके बाद आपको पीपल की छांव पर ही बैठकर पीपल की छांव में एक दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

6: इसके बाद आपको पीपल के वृक्ष पर सारी पूजन की सामग्री जैसे की रोली, चंदन, चावल, धूप, बत्ती, आदि अर्पित करना है, इसके बाद आपको पूजन स्थल पर बैठकर दशा माता व्रत कथा का पाठ करना है, जो हमने ऊपर आपको पहले ही बता दिया है।

7: इतना करने के बाद महिलाएं अपने हाथों से ही घर की दीवारों पर कुमकुम और हल्दी की मदद से छाप बनती हैं, इसके बाद आपको दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन ग्रहण करना होता है, और इस बात का ध्यान रखना होता है, कि खाने में नमक का प्रयोग ना हो।

तो इस तरह से आप होली दशा के दिन दशा माता का व्रत रखकर पूरी विधि विधान से व्रत करते हुए कथा का पाठ कर सकते हैं।

दशा माता व्रत के नियम (Dasha mata Vrat Ke Niyam)

दोस्तों अगर आप दशा माता व्रत करना चाहते हैं, और चाहते हैं कि आपको इस व्रत का पूरा फल मिले, यानी कि आपको माता का आशीर्वाद प्राप्त हो। तो इसके लिए आपको इस व्रत को नियमों का पालन करके पूरा करना चाहिए, ऐसी कई बातें हैं जिनका ध्यान आपको इस व्रत को करने से पहले रखना चाहिए, तभी आपको इस व्रत का फल प्राप्त होता है। तो अगर बात करें वह बात कौन सी है तो नीचे हमने आपको दशा माता व्रत के नियमों के बारे में बताया है जिसकी मदद से आप उन बातों के बारे में जान सकते हैं।

1: अगर आप दशा माता व्रत का संकल्प कर रहे हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि जब तक आपके शरीर में शक्ति हो, तब तक जीवन भर आपको इस व्रत को करना होता है, यानी कि प्रत्येक वर्ष आपको इस व्रत को करना होगा। लेकिन हां अगर आने वाले समय में आपका शरीर आपका साथ नहीं देता है, तो आप इस व्रत को छोड़ सकते हैं।

2: जैसा कि हमने आपको इस पूजा विधि में डोर को गले में बांधने के बारे में बताया था, तो हम आपको बता दें, कि जब आप अपने गले में इस डोर को बांधे, तो आपको साल भर इस डोर को नहीं उतारना है, अगले साल जब आप फिर से इस व्रत  को करके पूजा करेंगे, तब आपको नए डोर को पहनकर इस पुराने डोर को निकालना है।

3: इस व्रत के दौरान आपको दिन भर में सिर्फ एक बारी भोजन करना है, और इस बात का भी ध्यान रखना है कि आपके भोजन में नमक की मात्रा बिल्कुल भी ना हो।

4: आपको इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा विशेषतौर पर करनी चाहिए, पीपल के पेड़ की पूजा किए बिना आपको इस व्रत का पूरा फल नहीं मिलता है।

5: कहां जाता है की दशा माता के व्रत के दिन आपको बाजार से कोई भी वस्तु नहीं खरीदनी होती, इसलिए आप आपकी इस दिन काम में आने वाली सभी वस्तुओं को एक दिन पहले ही खरीद कर रख ले।

6: दोस्तों भले ही इस दिन वस्तुओं की खरीदारी करना मना होता है, लेकिन इस दिन झाड़ू खरीदने का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है, कहा जाता है कि अगर इस दिन आप नया झाड़ू खरीदने हैं, तो इससे आपको बहुत ही ज्यादा सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है इसलिए इस दिन झाड़ू खरीदना ना भूले।

 दशा माता व्रत मैं क्या खाना चाहिए और क्या नहीं? (Dasha Mata Vrat Mai Kya Khana Chiye)

तो दोस्तों कई लोगों के दिमाग में यह प्रश्न आता है कि अगर वह दशा माता का व्रत कर रहे हैं, तो वह व्रत के दौरान खा सकते हैं या नहीं, और अगर खा सकते हैं, तो ऐसी कौन सी चीज हैं जो उन्हें खानी चाहिए और के9न सही चीज है जो उन्हें नहीं खानी चाहिए। तो अगर आप भी यह जानना चाहते हैं, तो हम आपको बता दें कि अगर आप दशा माता का व्रत कर रहे हैं, तो इस दौरान आप दिन भर में एक बार भोजन ग्रहण कर सकते हैं। बस आपको अपने भोजन में इस बात का ध्यान रखना है, कि आपके भोजन में नमक की बिल्कुल भी मात्रा नहीं होनी चाहिए, यानी कि आपको नमक रहित भोजन करना चाहिए। आप चाहे तो व्रत के दौरान फल आदि खाकर भी अपना व्रत पूरा कर सकते हैं। इतना ही नहीं। अगर बात करें इस दिन खाने के लिए उपयोग किए जाने वाले अन्न की, अन्न के लिए इस दिन विशेष तौर पर गेहूं का इस्तेमाल किया जाता है, तो इस दिन आप गेहूं से बने अन्न का इस्तेमाल अपने भोजन के लिए कर सकते हैं। बस उसमें नमक की मात्रा बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए।

दशा माता व्रत का उद्यापन कैसे करें (Dasha Mata Vrat Ka Udhyapan Kaise Kare)

तो दोस्तों जैसे कि आप बाकी किसी देवी देवता के व्रत करते होंगे तो उन सभी में आपको पूरे विधि विधान से उसे मृत का संकल्प लेकर विधि विधान से उसका उद्यापन करना होता होगा। लेकिन अगर बात करें दशा माता व्रत की, तो हम आपको बता दें कि इस व्रत में आप सीधे शाम या फिर रात के समय में नमक रहित भोजन करके अपना व्रत खोल सकते हैं। इसमें आपको अपना व्रत उद्यापन नहीं करना पड़ता, क्योंकि एक बार जब आप दशा माता व्रत का संकल्प ले लेते हैं, उसके बाद आपको जिंदगी भर उसे पूरा करना होता है, यानी कि प्रत्येक वर्ष आपको दशा माता व्रत को किसी भी हाल में पूरा करना होता है। एक बार संकल्प लेने के बाद आप इसे त्याग नहीं सकते। इसलिए इसका उद्यापन नहीं किया जाता है, हमारे द्वारा बताएं पूजा विधि के तरीके से आप आसानी से अपने व्रत को खोलकर भोजन ग्रहण कर सकते हैं, बस आपको यह ध्यान रखना होगा कि आपके भोजन में नमक ना हो।

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