गाज माता व्रत कथा, पूजा विधि, क्या खाएं, नियम, फायदे, उद्यापन कैसे करें PDF

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तो दोस्तों कैसे हैं आप लोग, स्वागत है आपका आज के हमारे एक और नए आर्टिकल में। तो दोस्तों आज का हमारा यह आर्टिकल एक और व्रत और व्रत कथा के ऊपर होने वाला है, हमने पीछले आर्टिकल में आपको 16 सोमवार व्रत कथा, सोमवार व्रत कथा, तथा दशा माता व्रत कथा के बारे में बताया था। लेकिन आज के इस आर्टिकल में हम आपको एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत जिसे कि हम गाज माता व्रत के नाम से जानते हैं, उसके बारे में बताने वाले हैं।

तो क्या आपको मालूम है की गाज माता व्रत क्या है, और इसे कब किया जाता है, और इससे हमें क्या-क्या फायदे मिलते हैं। अगर नहीं, तो आज के इस आर्टिकल में हम आपको इसके बारे में पूरी जानकारी प्रदान करने वाले हैं। आज हम आपको बताएंगे, की गाज माता का व्रत क्या है, इसे कब मनाया जाता है, इसकी पूजा विधि क्या है, इसमें कौन से कथा का पाठ किया जाता है, और भी इससे जुड़ी जानकारी। अगर आपको भी इस व्रत के बारे में जानना है, तो हमारे इस आर्टिकल को आखिरी तक जरूर पढ़ें, तो चलिए आगे बढ़ते हैं और शुरू करते हैं।

गाज माता व्रत क्या है (Gaj Mata Vrat Kya Hai)

दोस्तों अगर बात करें गाज माता व्रत की, तो हम आपको बता दें कि यह हमारे हिंदू धर्म में किए जाने व्रत में से बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। अगर बात करें कि इसे कब किया जाता है, तो हम आपको बता दें कि इसे भाद्रपद माह में किया जाता है, वैसे तो इसकी कोई तिथि नही है की जिस दिन आपको इसका व्रत करना चाहिए, आप भाद्रपद माह की किसी भी शुभ दिन को देखकर अपनी सुविधा अनुसार इस व्रत को कर सकते हैं।

लेकिन भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को इस व्रत को करना बहुत ही ज्यादा शुभ माना जाता है, और बहुत सारे लोग इसी दिन ही इस व्रत को करके गाज माता व्रत कथा का पाठ भी करते हैं। अगर बात करें इस व्रत को क्यों रखा जाता है, तो हम आपको बता दें कि इस व्रत को रखने से व्यक्ति को संतान और संपत्ति की प्राप्ति होती है, इतना ही नहीं, अगर किसी के घर में पुत्र का जन्म या फिर पुत्र का विवाह होता है, तो उस व्यक्ति के द्वारा उसी वर्ष के भाद्रपद माह से इस व्रत को करके कथा का पाठ करना बहुत ही ज्यादा शुभ माना जाता है। तो दोस्तों अगर आप भी गाज माता व्रत को करना चाहते हैं, तो इसके लिए सबसे पहले आपको इसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए, ताकि आप इस व्रत को अच्छी तरह से शुरू करके इसका पूरी विधि विधान से उद्यापन कर सकें।

दोस्तो यह जानने के लिए आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आज के इसी आर्टिकल में हम आपको इन सभी चीजों के बारे में जानकारी देने वाले हैं, तो चलिए आगे बढ़ते हैं और इन सभी चीजों के बारे में आपको बताते हैं।

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गाज माता व्रत कथा (Gaj Mata Vrat Katha)

दोस्तों जैसा कि ऊपर हमने आपको गाज माता व्रत के बारे में पूरी जानकारी दी, कि इसे कब मनाया जाता है, और इसे क्यों किया जाता है, तो हम आपको बता दें कि अगर आप भी इस व्रत के बारे में जानकार इसे करने के बारे में सोच रहे हैं, तो हम आपको बता दें कि जब तक आप इस व्रत के दौरान गाज माता व्रत कथा का पाठ नहीं करते, तब तक आपको इस व्रत का पूरा फल कभी भी प्राप्त नहीं होता।

इसलिए यह जरूरी है कि आप विधि विधान से व्रत की पूजा करते हुए इस व्रत कथा का पाठ जरूर करें, तो अगर आप ही इस कथा का पाठ करना चाहते हैं, तो नीचे हमने आपको पूरी कथा  बताई है, जिसका पाठ करके आप आसानी से इस व्रत को पूरा कर सकते हैं।

राजा और रानी थे नि: संतान

बहुत समय पहले की बात है, एक सुंदर सा राज्य था, जिसमें की एक राजा और एक रानी राज किया करते थे। उन्हें किसी भी प्रकार की समस्या नहीं थी। वह पूर्ण रूप से संपन्न थे। उनका राज्य भी बहुत ही ज्यादा खुशहाल था, बस उन्हें एक ही चीज का बहुत ही ज्यादा दुख था, कि राजा और रानी दोनों निसंतान थे, उन्हें अभी तक किसी पुत्र या पुत्री की प्राप्ति नहीं हुई थी। बस इसी बात को लेकर वह हमेशा चिंता में रहते थे, और सोचते थे कि काश हमे भी एक  संतान की प्राप्ति हो जाए।

राजा की जो रानी थी, वह गाज माता की बहुत ही बड़ी भक्त थी, वह हमेशा उनकी पूजा किया करती थी। एक दिन उन्होंने गाज माता से कहा, कि हे माता, अगर आप मुझे संतान प्राप्ति का वरदान देंगे और मेरी गर्भ भर देगी, तो मैं आपको हलवा और पूड़ी भोग के रूप में लगाऊंगी। गाज माता रानी की यह सब बातें सुन रही थी, जिसके बाद गाज माता रानी से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुई, और वैसे भी गाज माता अपने भक्तों से बहुत ही जल्दी प्रसन्न होती हैं, इसलिए गाज माता ने रानी को पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया।

गाज माता के आशीर्वाद से रानी को हुई संतान की प्राप्ति

गाज माता के दिए हुए वरदान से ऐसा ही हुआ कुछ दिनों बाद ही रानी के गर्भ से एक बहुत ही सुंदर सर्वगुण संपन्न एक पुत्र ने जन्म लिया, रानी इस बात से बहुत ही ज्यादा खुश हुई, और खुशी-खुशी में रानी गाज माता को पूरी और हलवे का भोग लगाना ही भूल गई। ऐसे ही दिन बीतने लगे, लेकिन रानी को यह ध्यान ही नहीं रहा की उसे माता को पूरी और हलवे का भोग भी लगाना है।

गाज माता हुई रानी से क्रोधित

जब ऐसे ही दिन बीतते गए, तब गाज माता रानी के इस व्यवहार से बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो गई, उन्होंने कहा कि पुत्र प्राप्ति के बाद रानी मुझे भूल गई है।

एक दिन की बात है, जब रानी का पुत्र बहुत ही आराम से अपने पालने में सो रहा था, तभी बादल से एक जोर से गर्जना की आवाज आई, और वहां से एक बदली आई और वह रानी के पुत्र को पालने के सहित ही हवा में उड़ाकर ले गई। उस बदली ने रानी के पुत्र को एक घने जंगल में ही छोड़ दिया।

भील और भीलनी को हुई पुत्र की प्राप्ति

रानी का पुत्र घने जंगल में पालने में पड़ा ही हुआ था, कि अचानक ही वहीं पास से ही एक भील भीलनी गुजर रहे थे तभी भील और भीलनी की नजर उस पालने में पड़े हुए बच्चे की तरफ गई। उन्होंने देखा कि इतने घने जंगल में यह बच्चा यहां अकेला पड़ा हुआ है, क्योंकि भील और भीलनी दोनों ही नि: संतान थे, उनका भी कोई पुत्र या पुत्री नहीं थे, इसलिए वह इसे देखकर बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुए, और उन्होंने रानी के पुत्र को अपने साथ ले जाने का फैसला लिया, और वह दोनों रानी के पुत्र को अपने साथ ही अपने घर ले गए।

इधर राजा और रानी के महल में शोर मच गया था कि रानी के पुत्र को गाज माता अपने साथ उठाकर कहीं ले गई है। तभी राजमहल में एक धोबी प्रवेश करता है, वह धोबी राजा के भी कपड़े धोता था, और वही धोबी भील के भी कपड़े धोया करता था। इसलिए उसने भील के यहां रानी के पुत्र को देख रखा था। जब धोबी ने राजमहल में हो रहे शोर शराबे को देखा, तो उसने राजा को कहा कि राजा साहब आज ही मैने भील के घर में पालने में सोए एक पुत्र को देखा है।

भील का राज दरबार में प्रवेश

धोबी के बाद को सुनते ही राजा अपने सिपाहियों को भील को महल में बुलाने हेतु भेजते हैं, इसके बाद तुरंत ही सिपाही भील को बुलाने हेतु चले जाते हैं, जिसके बाद वह भील को महल ले आते हैं। भील के महल पहुंचते ही राजा उससे कहते हैं, कि आखिर तुम्हें पुत्र की प्राप्ति कैसे हुई  तुम्हारे यहां जो पुत्र है वह तुम्हारे पास कहां से आया। उसके बाद भील ने राजा से कहा, कि राजा साहब मैं गाज माता का बहुत बड़ा भक्त हूं, मैं उनका व्रत किया रहता हूं, और इसी से प्रसन्न होकर गाज माता की कृपा से हमें पुत्र की प्राप्ति हुई है। जैसे ही भील ने यह वचन कहे, राजा और रानी दोनों को अपना वचन याद आ गया, कि उन्होंने पुत्र प्राप्ति के पश्चात गाज माता को पूरी और हलवे का भोग लगाने का संकल्प लिया था, जिसे की उन्होंने अभी तक पूरा नहीं किया है।

राजा और रानी को अपनी गलती का हुआ एहसास

इसके बाद रानी को यह एहसास हो गया, कि मैंने अपना संकल्प पूरा नहीं किया, इसीलिए गाज माता हमसे नाराज हो गई, और हमसे हमारा बेटा छीन लिया। उसके बाद रानी गाज माता से प्रार्थना करते हुए कहती है, कि हे गाज माता, हम पर कृपा करें। मुझे माफ कर दीजिए कि मैंने मेरा संकल्प पूरा नहीं किया। कृपा करके मुझे मेरा पुत्र लौटा दीजिए, मैंने पहले जितना पूरी और हलवे का भोग लगाने का वादा किया था, अब मैं उसके दुगने की पूरी और हलवे का भोग लगाऊंगी, और पूरी विधि विधान से आपका व्रत भी करूंगी।

गाज माता ने प्रसन्न होकर रानी को उनका पूजा लौटाया

रानी ने ऐसा ही किया, पूरे विधि विधान से रानी ने गाज माता की पूजा की, और व्रत किया जिसके बाद गाज माता रानी से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुई। गाज माता ने रानी को उनके पुत्र वापस लौटा दिया, इतना ही नहीं, राजमाता की कृपा से भील और भीलनी के घर में भी एक सुंदर पुत्र ने जन्म लिया।

इतना होने के बाद राजा ने अपने पूरे राज्य में यह ढिंढोरा पिटवा दिया, कि अगर आपके घर में पुत्र का जन्म होता है, या फिर आपके पुत्र का विवाह होता है, तो आपको भी उस वर्ष के भाद्रपद माह के दौरान गाज माता का व्रत करके व्रत कथा का पाठ अवश्य करना है।

दोस्तों यह थी गाज माता की व्रत कथा, जिस प्रकार से कथा में गाज माता की कृपा से राजा और रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई, और साथ ही साथ भील और भीलनी को पुत्र के साथ-साथ धन संपत्ति की प्राप्ति हुई, इस प्रकार अगर कोई व्यक्ति पूरे श्रद्धा से इस व्रत को करता है, और इस कथा का पाठ करता है, तो उससे भी गाज माता बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होती है, और उसे भी संतान और संपत्ति के सुख की प्राप्ति होती है, और उस व्यक्ति का सब कुछ कुशल मंगल रहता है। तो अगर आप भी चाहते हैं कि आपके ऊपर भी गाज माता की कृपा बनी रहे, तो व्रत के दौरान इस कथा का पाठ जरूर करें।

गाज माता व्रत पूजा विधि (Gaj Mata Vrat Puja Vidhi)

तो दोस्तों अगर आप भी गाज माता व्रत करना चाहते हैं, और आपको इसकी पूजा विधि के बारे में नहीं मालूम है। तो यह जरूरी है कि आप सबसे पहले इसकी पूजा विधि के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर ले, क्योंकि जब तक आप पूरे विधि विधान से इस व्रत को पूरा नहीं करेंगे, तब तक आपको इस व्रत का पूरा फल नहीं मिलेगा, क्योंकि ज्यादातर लोग इसे अपने घर में पुत्र जन्म या फिर पुत्र विवाह के भाद्रपद माह में करते हैं, इसलिए इसे पूरे विधि विधान से करना बहुत ही ज्यादा आवश्यक है।

1: सबसे पहले आप भाद्रपद माह के किसी शुभ दिन का चयन कर ले, जिस दिन आपको यह व्रत करना है। आप चाहे तो शुक्ल पक्ष के द्वितीय तिथि को ही इस व्रत को कर सकते हैं।

2: इस दिन आपको सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाना है, और स्नान करके स्वच्छ साफ सुथरे वस्त्र धारण कर लेना है।

3: इसके बाद घर की महिला ध्यान रहे कि वही महिला जो कि घर की सबसे बड़ी बहू हो, या फिर जिसका पुत्र हो, वही महिला अपने हाथों से घर की दीवार पर गज का चित्र बनाएं।

4: गज का चित्र बनाने के लिए आपको दीवार पर भील और भीलनी और उनके साथ एक बच्चा बनाना होता है, ध्यान रहे की भील और भीलनी के सर में टोकरिया बनाना ना भूले, आप चाहे तो गाज का निर्माण मिट्टी से भी कर सकते हैं, मिट्टी से गाज का निर्माण करने के बाद आप उसमें जौ लगा सकते हैं।

5: इतना करने के बाद आपको सात अलग-अलग जगह में चार चार पूरी और हलवे का भोग लगाना है, पूरी और हलवे के साथ आप उसमे एक रुपए का सिक्का और कपड़ा भी लगाए।

6: इतना करने के बाद आपको एक कलश लेना है, जिसमें की पवित्र जल हो। उस कलश में आपको एक साथ्या का निर्माण करना है।

7: इतना करने के बाद आपको अपने हाथों में गेहूं के कुछ दाने रखने हैं, उसके बाद आपको हमने जो ऊपर गाज माता व्रत कथा के बारे में बताया है, उसका पाठ करना है। गाज माता व्रत कथा का पाठ करने के बाद आप बिंदायक जी के कथा का पाठ अवश्य करें।

8: इतना करने के बाद कलश में जो जल है आपको उस कलश के जल को सूर्य देव को अर्पित करना चाहिए यानी कि सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए, जिससे कि आपको बहुत ही ज्यादा सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

तो दोस्तों इस तरह से व्रत के दौरान आप दिन भर व्रत रखकर व्रत कथा का पाठ करते हुए गाज माता की पूजा कर सकते हैं, और रही बात वह व्रत के उद्यापन की, तो उसके बारे में हम आपको आगे बताने वाले हैं इसलिए आर्टिकल में आखिरी तक बन रहे।

गाज माता व्रत के दिन क्या खाएं? (Gaj Mata Vrat Mai Kya Khaye Kya Na Khaye)

तो दोस्तों अगर बात करें गाज माता व्रत के दिन आप व्रत करते हैं तो आप कौन सी चीज खा सकते हैं और कौन सी चीज खाकर अपना व्रत खोल सकते हैं, तो हम आपको बता दें कि इस दिन गाज माता को गेहूं के दाने, पूरी और हवा भोग के रूप में लगाया जाता है, और जैसा की पूजा विधि में हमने आपको व्रत उद्यापन के बारे में भी बताया था, तो उसी प्रकार से आप सात ब्राह्मणी को अपने घर में भोजन हेतु आमंत्रित करके उन्हीं के साथ भोजन करके अपने व्रत का उद्यापन कर सकते हैं, यानी अपने व्रत को खोल सकते हैं। इस दौरान आप पूरी सब्जी और हलवे का भोजन ग्रहण करके अपना व्रत खोल सकते हैं।

गाज माता व्रत के नियम (Gaj Mata Vrat Ke Niyam)

तो दोस्तों अगर आप गाज माता व्रत करना चाहते हैं, तो इस व्रत को करने के लिए आपको कई प्रकार के नियमों का ध्यान रखना होता है उन नियमों का पालन करके इस व्रत को पूरा करने के बाद ही आपको इस व्रत का पूरा पर प्राप्त हो पाता है। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और आपको उन नियमों के बारे में बताते हैं, जिन नियमों के अनुसार आपको इस व्रत को करना चाहिए।

1: दोस्तों इस व्रत के दौरान लोग अपने कुल देवी देवताओं की पूजा करते हैं, इसलिए ध्यान रखें कि आप भी इस व्रत के दौरान अपने कुलदेवी देवताओं की पूजा करें, और पूजा करने के दौरान उन्हें अधपकी रसोई का भोग लगाकर अपने घर के सभी सदस्यों में इसे वितरित करें।

2: दोस्तों हम आपको बता दें कि इस व्रत को भाद्रपद माह में किया जाता है, आप किसी भी दिन को चयन करके इस व्रत को कर सकते हैं ज्यादातर लोग शुक्ल पक्ष की द्वितीय और अनंत चतुर्थी के दिन ही इस व्रत को करते हैं।

3: इस व्रत के दौरान आपको तापसिक भोजन जैसे कि लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए, साथ इस बात का भी ध्यान रखें की व्रत के दौरान शराब और मास जैसी चीजों से दूरी बनाकर ही रखें।

4: इस व्रत के दौरान घर की सबसे बड़ी महिला या फिर बहू को दीवार पर एक ऐसा चित्र अंकित करना चाहिए, जिसमें की एक नव विवाहित या नवजात शिशु को बैठा हुआ दर्शाया जाए, जिसके ऊपर एक पेड़ गिर रहा हो, इस चित्र में यह दिखाया जाता है कि लड़के से उस पेड़ की रक्षा गाज बीच के द्वारा की जा रही है यही इस पूजन का महत्व भी है।

5: इस व्रत को शांतिपूर्वक ढंग से ही पूरा करें आपको इस व्रत के दौरान किसी भी विवाद में नहीं उलझना है।

गाज  व्रत के फायदे (Gaj Mata Vrat Ke Fayde)

तो दोस्तों अगर बात करें राजमाता का व्रत करने से मनुष्य को कौन-कौन से फायदे होते हैं, तो हम आपको बता दें कि गाज माता का व्रत गाज माता को समर्पित होता है, जिनकी पूजा करने यानि कि इस व्रत को करके कथा का पाठ करने से हमें उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। गाज माता की कृपा से व्यक्ति को संतान धन और संपत्ति के सुख की प्राप्ति होती है। तो अगर आपको भी इन तीनों प्रकार में से किसी भी प्रकार की सुख की कमी है, तो आपको विशेष तौर पर गाज माता व्रत को करके कथा का पाठ करना चाहिए, ताकि आपके ऊपर गाज माता की कृपा बने, और आपको भी यह सुख मिले। इतना ही नहीं, अगर आपके घर में किसी पुत्र ने जन्म लिया है, या फिर आपके पुत्र का विवाह है, तब भी आपको इस व्रत को करना चाहिए इससे भी आपको बहुत ही ज्यादा सौभाग्य की प्राप्ति होती है और सब कुछ शुभ होता है।

गाज माता व्रत का उद्यापन कैसे करें (Gaja Mata Vrat Ka Udyapan Kaise Kare)

तो दोस्तों अगर आपके घर में पुत्र का जन्म हुआ है, या फिर आपके घर में पुत्र का विवाह होता है, तो ऐसे शुभ अवसर में आपको उस वर्ष के भाद्रपद माह में इस व्रत को करना होता है, और इस व्रत का विधि विधान से उद्यापन भी करना होता है। तो व्रत शुरू करने के बारे में तो हमने आपको बता दिया, चलिए आपको व्रत के उद्यापन विधि के बारे में बताते हैं।

दोस्तों वैसे तो जिस प्रकार से आप इस व्रत को शुरू करते हैं, उसी प्रकार से आप इस व्रत का उद्यापन भी कर सकते हैं, लेकिन अंत में आपको कुछ दान दक्षिणा भी करनी होती है जिससे कि आप सफलतापूर्वक इस व्रत का उद्यापन कर सकें।

1: इसके लिए सबसे पहले आपको पूजा के दौरान ही बनाए गए गाज के चित्र या फिर मिट्टी से बनाए गए गाज के सामने ही साथ अलग-अलग जगह में चार-चार पूरिया और थोड़ा सा हलवा या सिरा भोग के रूप में लगाना है, और इस बार भी आपको भोग में एक रुपए का सिक्का और कपड़ा अर्पित जरूर करना है।

2: इसके बाद आपको फिर से एक जल का कलश लेना है, जिसमें आपको सथ्या का निर्माण करना है, और उसके बाद अपने हाथों में गेहूं के सात दानों को लेकर व्रत कथा का पाठ करना है। व्रत कथा का पाठ करने के बाद विधायक जी की कथा का पाठ जरूर करें।

3: इसके बाद आपको व्रत उद्यापन का मुख्य प्रक्रिया करनी है, आपने गाज माता को सात जगह में जो भोग लगाए हैं, आपको उन सभी को एक चुनरी में एकत्रित करना है, साथ ही साथ आपको दक्षिण को भी उसी चुनरी में डाल देना है, जिसके बाद आपको आपकी सासू मां के पैरों को स्पर्श करके उन्हें यह सारी चीज दान में देनी है।

4: इसके बाद आपको कलश के जल को सूर्य देव को अर्पित करना है, उसके बाद आपको सात ब्राह्मणी को अपने घर भोजन हेतु आमंत्रित करना है, और उनके साथ बैठकर ही आपको भोजन ग्रहण करना है, और इस प्रकार से आपको अपने व्रत का उद्यापन करना है।
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