वट सावित्री व्रत कथा, नियम, फल PDF Download in Hindi

Spread the love

तो दोस्तों हमारे हिंदू सनातन धर्म में व्रत का एक अलग ही महत्व होता है, तो दोस्तों आपने करवा चौथ व्रत के बारे में तो सुना ही होगा, जिसमें की सभी शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं, और कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए इस व्रत को रखती हैं। तो दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम आपको करवा चौथ व्रत के बारे में नहीं, बल्कि इसी के जैसे यानी कि इसी के समान एक व्रत के बारे में बताने वाले हैं, जिसे करने से आपको करवा चौथ जैसा ही फल मिलता है। तो दोस्तों हम बात कर रहे हैं वट सावित्री व्रत की, इस व्रत के दौरान वट वृक्ष यानी कि बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है, तो दोस्तों हमने ऐसा इसलिए कहा कि इस व्रत को भी करने से आपको करवा चौथ जैसा ही फल प्राप्त होगा, क्योंकि वट सावित्री व्रत को शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु एवं संतान प्राप्ति की कामना के लिए करती हैं, इसी के साथ-साथ अगर कोई कुंवारी लड़की इस व्रत को करती है, तो उसे उसका मनचाहा वर प्राप्त होता है। इसलिए इसे करवा चौथ के जितना महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है।

वट सावित्री व्रत को ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को किया जाता है, इस दिन सभी महिलाएं व्रत रख के बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं, और अंत में जाकर भोजन ग्रहण करके अपना व्रत पूरा करती हैं। इस व्रत के दौरान एक कथा का भी पाठ किया जाता है, जिसे कि वट सावित्री व्रत कथा कहा जाता है, तो आज के इस आर्टिकल में हम आपको इस व्रत कथा के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं, तो अगर आप भी वट सावित्री व्रत कथा के बारे में जानना चाहते हैं, तो इस आर्टिकल को आखिर तक जरूर पढ़ें। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और शुरू करते हैं।
[wpdm_package id=’348′]

वट सावित्री व्रत कथा

तो दोस्तों वट सावित्री की व्रत कथा है भद्र देश के एक राजा की, जिसका नाम अश्वपति था, वह भद्र देश के राजा थे, उन्हें किसी भी प्रकार की कोई भी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी, जिससे कि वह बहुत ही ज्यादा दुखी रहते थे। संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करने के लिए वह प्रतिदिन मंत्र उच्चारण करके एक लाख आहुतियां देते थे, ताकि उन्हें संतान की प्राप्ति हो सके। ऐसा उन्होंने लगातार 18 वर्ष तक किया, जिसके बाद आखिर वह दिन आ गया जिसका की अश्वपति को इंतजार था, आखिरकार सावित्री देवी  अश्वपति से प्रसन्न हुई, और उन्होंने अश्वपति को दर्शन दिए।

सावित्री देवी ने प्रकट होकर अश्वपति से यह कहा, कि मैं तुम्हारी तपस्या से और तुम्हारी आहुति से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हु, मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि जल्द ही तुम्हें एक तेजस्वी कन्या की प्राप्ति होगी। कुछ दिनों बाद सावित्री माता के कहे अनुसार राजा को एक बहुत ही सुंदर और तेजस्वी कन्या की प्राप्ति हुई, क्योंकि यह कन्या सावित्री देवी की कृपा से ही जन्मी थी इसलिए अश्वपति ने अपनी इस कन्या का नाम सावित्री ही रखा।

देखते ही देखते सावित्री बड़ी होती गई, और उसके पिता को उसकी शादी की चिंता होने लगी। वैसे तो सावित्री दिखने में बहुत ही ज्यादा सुंदर थी, लेकिन फिर भी उसे कोई भी वर नहीं मिल रहा था, जिससे कि उसके पिता यानी कि अश्वपति बहुत ही ज्यादा परेशान हो चुके थे। आखिरी में उन्होंने अपनी बेटी सावित्री से ही कहा कि वह अपने पसंद का कोई वर ढूंढ कर उससे शादी कर ले।

अपने पिता का आज्ञा का पालन करने तथा अपने लिए एक वर ढूंढने के लिए सावित्री एक जंगल में गई, जब सावित्री जंगल में गई तो जंगल में उसकी मुलाकात साल्व राज्य के राजा द्युमत्सेन से हुई, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था इसलिए वह जंगल में ही रहने लगे थे। उनका एक पुत्र भी था, जिसका नाम सत्यवान था। जब सावित्री ने सत्यवान को देखा, तो सत्यवान सावित्री को पहली नजर में ही पसंद आ गया, और उसने सत्यवान को ही अपना पति बनाने का फैसला ले लिया।

यह सारी घटना नारद जी अपनी आंखों से देख रहे थे, जब उन्होंने देखा कि सावित्री सत्यवान से शादी करना चाहती है, तो वह तुरंत थी सावित्री के पिता अश्वपति के पास गए, और अश्वपति से कहा की है महाराज आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, सभी को पता है की द्युमत्सेन का बेटा सत्यवान बहुत ही ज्यादा पराक्रमी और मेहनती और सर्वगुण संपन्न है, किंतु आप अपनी बेटी सावित्री की शादी सत्यवान से मत करिए। इसके बाद अश्वपति ने नारद जी से इसका कारण पूछा, तो नारद जी ने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि सत्यवान की उम्र बहुत ही काम है, अगले वर्ष ही उसकी मृत्यु हो जाएगी, इसके बाद आपकी बेटी सावित्री का क्या होगा।

नारद जी के इन बातों को सुनकर अश्वपति ने अपनी बेटी सावित्री को अपने पास बुलाया, और उससे सत्यवान से विवाह करने हेतु मन कर दिया। जिसके बाद सावित्री ने जब अपने पिता से कहा, कि आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं, तो उसके बाद अश्वपति ने अपनी बेटी सावित्री से कहा, कि जिस सत्यवान से तुम शादी करने के बारे में सोच रही हो, उसकी अगले वर्ष ही मृत्यु होने वाली है, और मैं नहीं चाहता कि विवाह के 1 वर्ष से बाद ही तुम्हारे पति की मृत्यु हो जाए और तुम असहाय हो जाओ। इसलिए तुम सत्यवान से विवाह नहीं करोगी।

लेकिन सावित्री पर अपने पिता के इन बातों का और सत्यवान के अल्प आयु होने का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा, उसे सत्यवान पहली नजर में ही पसंद आ गया था, भले ही उसकी आयु कम हो, किंतु वह सत्यवान से ही विवाह करना चाहती थी, जिसके लिए सावित्री ने अपने पिता से कहा कि मैं आर्य समाज की कन्या हूं, मैं एक बार ही अपने पति का वर्णन करूंगी, जो कि मैने कर लिया है । मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी, सावित्री के बात ना मानने के कारण उसके पिता अश्वपति को मजबूरी में अपनी बेटी सावित्री की शादी सत्यवान से करनी पड़ी।

इसके बाद अश्वपति ने अपनी बेटी को उसके ससुराल विदा किया, ससुराल पहुंचने के बाद ही सावित्री ने अपने सास ससुर की अच्छे से सेवा करना शुरू कर दिया, और अपने पति की भी अच्छे से सेवा करने लगी, क्योंकि सावित्री को पता था कि किस दिन उसके पति की मृत्यु होने वाली है, इसलिए जैसे-जैसे वह दिन करीब आने लगा था, उसे बहुत ही ज्यादा बेचैनी और चिंता सताने लगी थी। नारद मुनि के कहे अनुसार सत्यवान की मृत्यु को सिर्फ तीन दिन ही बाकी थे, जिसके वजह से दोनों पति पत्नियों ने व्रत करना भी शुरू कर दिया था, और आखिर वह दिन भी आ गया जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होने वाली थी। उस दिन सावित्री ने अपने पितरों की पूजा भी की, ताकि वह सत्यवान की मृत्यु को टाल सके।

सत्यवान रोज जंगल जाकर लकड़ी काटकर लता था, इसलिए उस दिन भी वह जंगल गया ताकि वह लकड़ी काटकर घर ला सके, लेकिन उस दिन सावित्री ने भी सत्यवान के साथ जंगल जाने का फैसला किया। दोनों जब जंगल पहुंचे, तब सत्यवान एक वट के पेड़ पर लकड़ी काटने के लिए चढ़ा, लेकिन जैसे ही वह पेड़ पर चढ़ा उसके सिर में बहुत तेज दर्द होने लगा, जिसकी वजह से वह तुरंत ही पेड़ से उतर गया। यह देखकर सावित्री समझ गई थी, कि अब सत्यवान की मृत्यु बहुत ही ज्यादा नजदीक है, और नारद जी की कही बात भी सच होने वाली है।

इसके बाद सावित्री ने सत्यवान को अपनी गोद में लिटाकर उसके सर को दबाया, ताकि उसे राहत मिल सके। लेकिन कुछ देर बाद सावित्री ने यह देखा, कि यमराज तेजी से उसकी तरफ आ रहे हैं, ताकि वह सत्यवान को अपने साथ ले जा सकें। यही हुआ, यमराज जी सावित्री के पास आए, और वह सत्यवान को अपने साथ ले जाने लगे। क्योंकि सावित्री बहुत ज्यादा पतिव्रता थी और वह सत्यवान से बहुत ही ज्यादा प्रेम करती थी, इसकी वजह से वह भी यमराज जी के पीछे-पीछे अपने पति के साथ चलने लगी, जब यमराज जी ने सावित्री को अपने पीछे आते हुए देखा, तो यमराज जी ने सावित्री को समझाया, कि देखो सावित्री यह तो विधि का विधान है, जो इस दुनिया में आया है, उसे कभी ना कभी तो इस दुनिया से जाना ही है, इसलिए तुम जिद ना करके मेरे पीछे ना आओ तो ही सही होगा।

लेकिन यमराज जी के इन बातों का सावित्री पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, वह यूं ही यमराज जी के पीछे अपने पति के साथ-साथ चलती गई। यमराज जी सावित्री के इस पतिव्रता धर्म को देखकर बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुए, और यमराज जी ने सावित्री से कहा कि मैं तुम्हारे इस पतिव्रता धर्म को देखकर बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हु, कहो कि तुम्हें क्या चाहिए। जिसके बाद सावित्री ने यमराज जी से कहा कि मेरे जो सास ससुर हैं वे दोनों ही अंधे हैं, तो कृपा करके आप उनकी रोशनी उन्हें लौटा दे। इसके बाद यमराज जी ने सावित्री को यह वरदान दिया, और कहा की ठीक है मैं तुम्हारे साथ ससुर को वापस उनकी आखों की रोशनी लौटा रहा हु, अब तुम अपने घर जा सकती हो।

यह बोलकर यमराज सत्यवान को लेकर जाने लगे, लेकिन सावित्री उसके बावजूद भी उनके पीछे-पीछे आती रही। इसके बाद यमराज जी यह समझ गए की कुछ भी हो जाए, सावित्री अपने पति का साथ नहीं छोड़ेगी इससे प्रसन्न होकर यमराज जी ने सावित्री को एक और वरदान मांगने को कहा, इसके बाद सावित्री ने फिर से अपने सास ससुर के लिए वरदान मांगा, और यमराज जी से कहा कि मेरे सास ससुर जी का जो राज्य है, उस पर किसी और ने अधिकार जमा लिया है, कृपया आप उन्हें उनका राज्य वापस लौटा दें। इसके बाद यमराज जी ने ऐसा ही किया, और उनके सास ससुर को उनका खोया राज्य वापस मिल गया

इसके बाद भी जब सावित्री ने यमराज जी का पीछा करना नहीं छोड़ा तब यमराज जी ने उन्हें एक और वरदान मांगने को कहा, जिसके बाद सावित्री ने यमराज जी से 100 संतान एवं सौभाग्यवती रहने का वरदान देने को कहा, इसके बाद यमराज जी ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया। इसके बाद यमराज की सत्यवान के प्राण को लेकर जाने लगे, जिसके बाद सावित्री ने यमराज जी से कहा, कि यमराज जी आपने अभी ही मुझे संतान प्राप्ति और सौभाग्यवती रहने का वरदान दिया है, यानी कि आप मेरे पति के प्राण इस प्रकार से नहीं ले जा सकते। इसके बाद आखिरकार यमराज जी को सावित्री के पतिव्रत धर्म के आगे हार माननी पड़ी, और उन्होंने सत्यवान को पुनर्जीवनदान प्रदान किया, और सावित्री को सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद दिया।

इसके बाद सावित्री पुनः उस वृक्ष के पास जाकर बैठ गई, जहां की उसके पति की लाश पड़ी थी। इसके बाद यमराज जी के वरदान के कारण सत्यवान पुनः जीवित होकर उठकर बैठ गया, जिससे कि सावित्री बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हो गई। दोनों यूं ही लकड़ी काटकर घर चले गए, घर जाकर उन्होंने देखा की सत्यवान के जो माता-पिता थे, उन्हें यमराज जी की कृपा से आंखों की रोशनी वापस मिल गई थी, और उन्हें उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया था। इस तरह उनका जीवन पूरी तरह से खुशहाल हो गया था, और सत्यवान और सावित्री दोनों खुशी-खुशी अपना जीवन बिताने लगे थे।

तो दोस्तों यही है वट सावित्री व्रत की कथा, जिसका पाठ आपको इस व्रत को करने के दौरान विशेष तौर पर करना चाहिए, क्योंकि यमराज जी से वरदान प्राप्त करने के बाद सावित्री अपने पति सत्यवान के साथ वट वृक्ष के नीचे ही बैठी हुई थी, इसलिए इसे वट सावित्री व्रत के नाम से जाना जाता है, और इस दिन सभी महिलाएं वट यानी कि बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं, और अपने व्रत को पूरा करती हैं। ऐसा करने से उनके पति की आयु लंबी होती है, उन्हें संतान प्राप्ति का सुख मिलता है, साथ ही साथ कुंवारी लड़कियों को उनका मनचाहा वर भी प्राप्त होता है।

वट सावित्री व्रत करने से क्या फल मिलता है?

तो दोस्तों अगर बात करें वट सावित्री व्रत करने से हमें क्या फल मिलता है, तो हम आपको बता दें कि इस दिन सभी शादीशुदा महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती है, जिसमें कि वह धागे लपेटकर व्रत कथा का पाठ करके इस व्रत को पूरा करती हैं, इससे उन्हें सावित्री देवी की कृपा प्राप्त होती है, और शादीशुदा महिलाओं के पति की उम्र लंबी होती है। इतना ही नहीं, अगर कोई ऐसी लड़की जिसकी अभी तक शादी ही नहीं हुई है, यानी की कुंवारी लड़की इस व्रत को करती है, तो उसे उसका मनचाहा वर प्राप्त होता है। संतान प्राप्ति के लिए भी वट सावित्री व्रत को बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि सावित्री को भी यमराज जी ने संतान प्राप्ति का वरदान दिया था। वट सावित्री व्रत को स्त्रियों के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है, इस व्रत को विधि विधान से करने से उन्हें सभी प्रकार के दुःख दर्दों से मुक्ति मिलती है, और उन्हें धन संपत्ति और खुशियों की प्राप्ति होती है।

वट सावित्री व्रत के नियम

वट सावित्री व्रत को करने से पहले ऐसे कुछ नियम होते हैं, जिनके बारे में आपको पहले ही जान लेना चाहिए, ताकि आपको व्रत करने के समय किसी भी प्रकार की समस्या ना हो, और आपको उस व्रत का पूरा फल प्राप्त हो सके। तो चलिए जानते हैं आखिर क्या है वट सावित्री व्रत के नियम।

1: तो दोस्तों इस व्रत का सबसे पहला नियम यह है, कि इस व्रत के दौरान आपको काले रंग के कपड़े नहीं पहनना चाहिए। इस दिन लाल रंग की साड़ी पहनना महिलाओं के लिए शुभ माना जाता है।

2: इस व्रत के दौरान आपको ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है, ना ही आपको तापसिक भोजन ग्रहण करना है, और ना ही आपको नशीले पदार्थों का सेवन करना है।

3: इस व्रत के दौरान आपको वट यानी की बरगद के पेड़ की पूजा करनी होती है, तो ध्यान रहे की पूजा के दौरान आप सात बार वृक्ष की परिक्रमा करें, और परिक्रमा के साथ-साथ ही वृक्ष में कलावा या फिर कच्चा धागा बांधते या लपेटते जाए।

4: पूजा के बाद आपको विभिन्न पूजन सामग्री जैसे कि फल अनाज कपड़े आदि को आपको किसी जरूरतमंद या फिर किसी ब्राह्मण को दान में देना चाहिए।

5: इस व्रत को पूरा करने के बाद आपको चने का पकवान बनाकर उसे तथा कुछ पैसे अपने सास को देखकर अपने सास का आशीर्वाद लेना चाहिए, इससे आपको सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद प्राप्त होगा।

[wpdm_package id=’348′]


Spread the love

Leave a ReplyCancel reply