सत्यनारायण व्रत कथा,नियम,फल PDF Download in Hindi

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तो दोस्तों आप सभी को पता है कि विष्णु जी के अनेक अवतार हैं, जैसे की राम, कृष्ण, कल्कि आदि, लेकिन आज के इस आर्टिकल में हम आपको भगवान विष्णु के एक ऐसे रूप के बारे में बताने वाले हैं, जिसका महत्व हिंदू धर्म में बहुत ही ज्यादा है। तो दोस्तों हम बात कर रहे हैं भगवान विष्णु यानी के सत्यनारायण रूप की। आपने कभी ना कभी सत्यनारायण भगवान के बारे में तो सुना ही होगा, असल में सत्य के रूप में नारायण भगवान की पूजा करना ही सत्यनारायण की पूजा करना कहा जाता है। सत्यनारायण भगवान विष्णु का ही एक रूप है, जिनकी कृपा से हमें अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। तो दोस्तों कहा जाता है कि सत्यनारायण का व्रत करने से और सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ करने से व्यक्ति को बहुत ही ज्यादा सौभाग्य की प्राप्ति होती है, तो आज के इस आर्टिकल में हम आपको सत्यनारायण व्रत और व्रत कथा के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं, ताकि आप भी सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ कर सकें। वैसे तो सत्यनारायण व्रत करने का कोई भी निश्चित समय नहीं होता, आप किसी भी महीने की पूर्णिमा के दौरान सत्यनारायण व्रत करके व्रत कथा का पाठ करते हुए अपने व्रत को पूरा कर सकते हैं, ऐसा करने से हमें सत्यनारायण भगवान यानी की साक्षात भगवान विष्णु की आशीर्वाद प्राप्त होता है, और हमारी हर मनोकामना भी पूर्ण होती है, क्योंकि पूर्णिमा का दिन भगवान सत्यनारायण को ही समर्पित होता है। तो चलिए बिना किसी देरी के इस आर्टिकल में आगे बढ़ते हैं, और सीधे आपको सत्यनारायण व्रत कथा के बारे में बताते हैं।

सत्यनारायण व्रत कथा (Satyanarayan Vrat Katha)

तो दोस्तों सत्यनारायण व्रत के दौरान सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ करना बहुत ही ज्यादा आवश्यक माना गया है, कहा जाता है कि इस व्रत के दौरान इस कथा का पाठ करें बिना आपको कभी भी इस व्रत का पूरा फल नहीं मिल सकता। तो दोस्तों सत्यनारायण की जो व्रत कथा है उसके कुल पांच अध्याय हैं, इसके बारे में आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताने वाले हैं। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और आपको एक-एक करके उन सभी पांच अध्याय के बारे में बताते हैं, ताकि आप भी इस कथा का पाठ करके विधि विधान से इस व्रत को पूरा कर सके।

सत्यनारायण व्रत कथा अध्याय एक (Chapter 1)

यह बात है बहुत समय पहले की, जब  शौनिकादि ऋषि एक बार सूत जी के आश्रम में पहुंचे, और सभी ऋषिगण ने सूत जी से यह प्रश्न किया की है महाराज जी इस संसार में सभी कष्टों से मुक्ति पाने के लिए तथा सभी सुखों को प्राप्त करने के लिए कोई सरल उपाय के बारे में हमें बताएं, जिसके बाद सूत जी ने ऋषिगढ़ से कहा कि तुमने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया है, ऐसा ही प्रश्न एक बार साक्षात नारद मुनि ने भगवान विष्णु से किया था। नारद जी के ऐसे ही प्रश्न करने के बाद विष्णु जी ने स्वयं नारद जी को यह बताया था कि इस संसार में सभी सुखों को प्राप्त करने तथा सभी कष्टों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए सिर्फ एक ही मार्ग है वह है सत्यनारायण की व्रत करना, इसके बाद सुत जी  ऋषिगण से कहते हैं कि मैं तुम्हें कथा के माध्यम से इस व्रत के बारे में बताऊंगा तुम्हे इसे ध्यान से सुनना।

कथा शुरू करते हुए सूत जी ऋषिगण से कहते हैं कि एक समय की बात है कि नारद जी विष्णु जी के पास जाते हैं, और उनकी स्तुति करने लगते हैं। जब विष्णु जी यह देखते हैं कि नारद जी उनकी स्तुति कर रहे हैं, तब विष्णु जी नारद जी से कहते हैं कि है नारद जी आप किस कारण से मेरे पास आए हैं, क्या आपके मन में कोई दुविधा है, अगर है, तो आप उसे मुझे बताइए मैं उसका समाधान अवश्य करूंगा।

इसके बाद नारद जी ने विष्णु जी से कहा, की हे भगवान, मैने मृत्यु लोक में यह देखा है कि वहां लोग पाप कर्मों के कारण विभिन्न योनियों से उत्पन्न होने के कारण कई प्रकार के कष्ट एवं दुविधा का सामना कर रहे हैं, क्या आपके पास उनके इन सभी दुखों के निवारण का कोई समाधान है, अगर आपके पास है, तो आप उसे मुझे बताइए, क्योंकि मैं यह सब जानना चाहता हूं।

इतना कहने के बाद विष्णु की मुस्कुरा कर नारद जी से कहने लगे की नारद जी आपने सभी मनुष्यों की भलाई के लिए एक बहुत ही अच्छा प्रश्न किया है, मैं आज आपको एक ऐसे ही महत्वपूर्ण व्रत के बारे में बताऊंगा, जो की बहुत ही ज्यादा पुण्य देने वाला होगा  जिससे मृत्यु लोक में सभी को उनके दुखों से मुक्ति मिलेगी। आज मैं तुम्हें स्वर्ग और मृत्यु लोग के एक ऐसे व्रत के बारे में बताऊंगा, जो की बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है, जो की सत्यनारायण व्रत है। यह व्रत बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है, जो कि लोगों को उनके सभी कष्टों से मुक्ति दिला सकता है, जिसे करने से लोगों को बहुत ही ज्यादा पुण्य की भी प्राप्ति होती है, तो अब मैं आगे तुम्हें इस सत्यनारायण व्रत के बारे में बताने जा रहा हूं, जिससे कि सभी मनुष्य अपने सभी समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं।

इसके बाद नारद जी ने विष्णु जी से कहा, कि धन्यवाद भगवन मैं जानना चाहता हूं कि यह व्रत क्या है, इससे क्या फल मिलता है, इसे करने की विधि क्या है, और इसे सबसे पहले किसने किया था, कृपा करके आप मुझे यह सभी बातें विस्तार से बताइए।

इसके बाद भगवान विष्णु से नारद जी से कहा कि सत्यनारायण व्रत लोगों की सुख में वृद्धि करने वाला, लोगों की समस्याओं का समाधान करने वाला तथा लोगों की धन संपत्ति धैर्य एवं ख्याति में वृद्धि करने वाला है। इससे उन्हें उनके शत्रुओं पर विजय भी प्राप्त होती है। इसके आगे बोलते हुए विष्णु जी ने कहा, कि इस व्रत को करने के लिए व्यक्ति को अपने पूरे परिवार एवं ब्राह्मणों के साथ शाम के समय सत्यनारायण भगवान की पूजा करनी चाहिए, और उन्हें विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का भोग लगाना चाहिए, जिसमें की केले, दूध, घी, गेहूं का चूर्ण शक्कर या गुण आदि का भोग बना कर सत्यनारायण भगवान को अर्पित करना चाहिए।

इतना करने के बाद पूरे परिवार को एक साथ बैठकर सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा का पाठ करना चाहिए, जिसके बाद उन्हें ब्राह्मण को भोजन करवाना चाहिए। इसके पश्चात उन्हें खुद को भोजन करना चाहिए, इतना करने के बाद उन्हें भगवान की गीत भजन आदि का पाठ करना चाहिए, और भगवान की अच्छे से भक्ति करनी चाहिए, और अंत में भगवान सत्यनारायण का स्मरण करके पूजा को समाप्त करना चाहिए।

ऐसा करने से हर व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है, और उन्हें उनके सभी प्रकार के समस्याओं से मुक्ति भी मिलती है। यही सबसे आसान उपाय है जिससे की मृत्यु लोक में लोग अपने समस्या का समाधान कर सकते हैं।

सत्यनारायण व्रत कथा अध्याय दो (Chapter 2)

कथा के दूसरे अध्याय में सूत जी सभी ऋषियो से कहते हैं कि अब मैं तुम्हें उस व्यक्ति के बारे में बताने जा रहा हूं, जिसने इस व्रत को सबसे पहली बार किया था, यानी कि जहां से इस व्रत की शुरुआत हुई थी, ऐसा कहते हुए वह बताते हैं की बहुत समय पहले की बात है, काशी में एक व्यक्ति रहता था, जो की बहुत ही ज्यादा निर्धन था। वह यूं ही मृत्यु लोक में भ्रमण करता रहता था, एक दिन भगवान को उस पर दया आई, जिसके बाद भगवान ने एक वृद्ध का रूप धारण किया, और जाकर उस निर्धन व्यक्ति से पूछा कि तुम आखिर दिन भर इस मृत्यु लोक में इस तरह भ्रमण क्यों करते रहते हो, जिसके बाद उस निर्धन व्यक्ति ने उस वृद्ध ब्राह्मण से कहा कि मैं बहुत ही ज्यादा निर्धन हूं, और किस्मत का मारा भी हूं। मैं सिर्फ भिक्षा के आस में ही इधर-उधर भटकते रहता हूं, अगर आपके पास मेरे इस समस्या का कोई समाधान है, तो कृपया आप मुझे इसके बारे में बताइए, मैं आपका बहुत ही ज्यादा आभारी रहूंगा।

इसके बाद उस वृद्ध ब्राह्मण यानी की साक्षात भगवान ने उस निर्धन व्यक्ति से कहा कि तुम्हें सत्यनारायण भगवान का व्रत करना चाहिए, क्योंकि वही एक ऐसी भगवान है जो कि तुम्हारी समस्या का समाधान कर सकते हैं, इसके बाद निर्धन व्यक्ति ने उस वृद्ध ब्राह्मण से इस व्रत को करने की विधि के बारे में पूछा, इसके बाद उस ब्राह्मण ने इस व्रत को करने की सारी विधि निर्धन व्यक्ति को बता दी, जिसके बाद वह उस स्थान से चले गए। वृद्ध ब्राह्मण के जाने के बाद निर्धन व्यक्ति ने सोचा कि मैं कल से ही सत्यनारायण व्रत करूंगा। वह सत्यनारायण व्रत के बारे में सोच रहा था, इसलिए उसे रात भर नींद भी नहीं आई थी, अगले दिन वह जैसे ही उठा, उसने व्रत का संकल्प लिया, और भिक्षा मांगने चल दिया। हुआ यह की चमत्कार के कारण उसे अगले दिन भिक्षा में बहुत सारे धन की प्राप्ति हुई, जिसका इस्तेमाल करके उसने अपने सभी बंधु बांधवो के साथ सत्यनारायण व्रत करने का निश्चय किया, और उसने उस व्रत को पूरा भी किया।

सत्यनारायण व्रत को विधि विधान से पूरा करने के बाद ही उसके ऊपर सत्यनारायण भगवान की कृपा होने लगी, उसे अपने सभी प्रकार के दुख वी संकटों से मुक्ति मिल गई, उसकी जिंदगी खुशहाल होने लगी, जिससे कि उसने निश्चय किया कि अब वह हर महीने सत्यनारायण व्रत को करेगा। इसलिए कहा जाता है कि अगर कोई मनुष्य सच्चे मन से सत्यनारायण व्रत को करें, तो उसे सभी प्रकार के मोह माया एवं कष्टों से मुक्ति मिलेगी और उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी।

इसके पास सूत जी ने अपने सभी ऋषिगण से कहा कि यही है वह व्रत कथा है जो कि स्वयं भगवान विष्णु ने नारद जी को बताई थी, अब मैं आगे आपको क्या कहूं?

इसके पास सभी ऋषिगण ने सूत जी से कहा कि इसके बाद हम जानना चाहते हैं कि आखिर उस निर्धन व्यक्ति के बाद पृथ्वी में इस व्रत को और किसने किसने किया, कृपया करके आप इसके बारे में भी हमें बताएं।

इसके बाद सुत जी ने कहा ठीक है, अगर तुम जानना चाहते हो कि पृथ्वी में और किन-किन लोगों ने इस व्रत को किया, तो चलो मैं तुम्हें एक और कथा के बारे में बताता हूं, जिसके बाद श्री सूत जी ने कहा कि जब वह निर्धन व्यक्ति जिसने की सबसे पहली बार इस व्रत को किया था, वह एक बार फिर से अपने बंधु बंधावों के साथ इस व्रत को करने के लिए तैयार हुआ था, तभी एक लकड़हारा जो की लकड़ी बेच रहा था, उसे अचानक से प्यास लगी, जिसके कारण वह लकड़ियों को बाहर रखकर उस ब्राह्मण के घर ही घुस गया, जिसने कि वहां देखा कि वह व्यक्ति एक व्रत कर रहा है, जिसके बाद उसने उस व्यक्ति को प्रणाम करके कहा कि आप यह कौन सा व्रत कर रहे हैं, और आखिर इस व्रत को करने से क्या फायदा होता है।

इसके बाद काशी के उस व्यक्ति ने उस लक्कड हारे को सत्यनारायण व्रत के बारे में बताया, और कहा कि यह सत्यनारायण भगवान की कृपा ही है जो कि आज मेरे साथ इतनी ज्यादा धन संपत्ति मौजूद है, जिसके बाद उस व्यक्ति ने उस लकड़हारे को व्रत के पश्चात प्रसाद दिया, जिसके बाद वहां लकड़हारा अपनी नगर की तरफ निकल गया, रास्ते में वह यही सोच रहा था कि क्यों ना मैं भी सत्यनारायण व्रत को करूं, ताकि मुझे भी सत्यनारायण भगवान की कृपा प्राप्त हो। इसके लिए उसने निश्चय किया कि अब उसे लकड़ी बेचकर जो धन प्राप्त होगा, उससे वह सत्यनारायण व्रत को पूरा करेगा, जिसके लिए वह अगले दिन उठकर एक ऐसी जगह लकड़ी बेचने जाता है, जहां की बहुत ही ज्यादा अमीर लोग रहते हैं, जिससे कि उसे लकड़ी बेचकर बहुत ही ज्यादा पैसे मिल जाते हैं।

इसके बाद वह सत्यनारायण भगवान के व्रत की सामग्री जैसे कि दूध, घी, केले का फल, गेहूं का चूर्ण और गुड़ शक्कर आदि लेकर अपने घर आता है, और अपने सभी परिवार यानी कि बांधों के साथ मिलकर इस व्रत को पूरा करता है। जैसे ही वह विधि विधान से इस व्रत को पूरा करता है, उसे भी सत्यनारायण भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है, उसे भी बहुत सारे धन संपत्ति की प्राप्ति होती है, यहां तक कि उसे पुत्र की प्राप्ति भी होती है, और उसका जीवन भी काशी के उस व्यक्ति के जैसा खुशहाल हो जाता है।

सत्यनारायण व्रत कथा अध्याय तीन (Chapter 3)

इसके बाद सूत जी ने अपने ऋषि मुनियों से कहा कि अभी मेरी कथा खत्म नहीं हुई है, मैं आगे तुम्हें एक और कथा के बारे में बताने जा रहा हूं, इसलिए तुम इसे ध्यान से सुनना। इसके बाद सुत जी कहते हैं की बहुत समय पहले की बात है, एक उल्कामुख नाम का राजा था जो की बहुत ही ज्यादा ज्ञानी था, ज्ञानी होने के साथ-साथ वह बहुत ही ज्यादा दानी भी था, वह लोगों को पैसे दान करके उनकी मदद करता था। उसकी एक धर्म पत्नी भी थी, जो की दिखने में बहुत ही ज्यादा सुंदर और सर्वगुण संपन्न थी। एक दिन की बात है, जब राजा और उनका परिवार नदी के तट पर सत्यनारायण व्रत कर रहे थे, तभी वहां पर एक साधु नाम का व्यक्ति आता है, और वह राजा को सत्यनारायण व्रत करते हुए देखकर यह पूछता है कि है राजन आखिर आप इतनी भक्ति भाव से नदी तट पर बैठकर यहां क्या कर रहे हैं।

इसके बाद राजा ने उस व्यक्ति को कहा कि मैं जो यह कर रहा हूं, वह सत्यनारायण व्रत है, इसे अपने सभी बंधु बाधवों के साथ करना होता है, यह मैं संतान प्राप्ति के लिए कर रहा हूं, जिसके बाद उस व्यक्ति ने राजा से कहा कि है राजन कृपा करके आप मुझे भी इस व्रत और इसकी विधि के बारे में बताएं, मेरी भी कोई भी संतान नहीं है, मैं भी इस व्रत को करूंगा ताकि मुझे भी संतान प्राप्ति का सुख प्राप्त हो सके। इसके बाद राजा ने इस व्रत की सारी विधि उस व्यक्ति को बता दी, जिसके बाद वह व्यक्ति खुश होकर अपने घर चला गया।

इसके बाद उस व्यक्ति ने घर जाकर अपनी पत्नी को इस व्रत के बारे में बताया, और कहा कि हमें भी सत्यनारायण भगवान की कृपा से जरूर संतान की प्राप्ति होगी, और जैसे ही हमें संतान की प्राप्ति होगी, मैं इस व्रत को विधि विधान से पूरा करूंगा। कुछ समय बाद जाकर ऐसा ही हुआ, सत्यनारायण भगवान की कृपा से उस व्यक्ति की पत्नी लीलावती गर्भवती हो गई, और उन्हें एक सुंदर सी कन्या की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उन्होंने कलावती रखा। देखते ही देखते कलावती बड़ी होने लगी, लेकिन उसके पिता को इस व्रत का ख्याल ही नहीं था, जिसके बाद जब उस व्यक्ति की पत्नी लीलावती ने अपने पति से कहा कि अब तो हमें संतान की भी प्राप्ति हो गई और हमारी बेटी बड़ी भी हो गई है, तो आखिर आप सत्यनारायण व्रत कब करने वाले है?

अपने पत्नी के इस सवाल का जवाब देते हुए वह व्यक्ति अपनी पत्नी से कहता है, कि इस व्रत को मैं अभी नहीं बल्कि अपनी पुत्री के विवाह के समय करूंगा, ऐसा कह कर वह अपने काम पर चला जाता है, और कलावती यूं ही बड़ी होते रहती है। कलावती के यूं ही बढ़ते रहने के कारण एक दिन उसके पिता को उसके शादी की चिंता होती है, जिसके लिए वह अपने दूत को अपने पास बुलाता है, और कहता है कि तुम आज से ही मेरी पुत्री के लिए एक योग्य लड़का तलाशना प्रारंभ कर दो, जिसके बाद उस व्यक्ति का दूत साधु के कहे अनुसार ही उसकी पुत्री के लिए योग्य वर देखने के लिए निकल पड़ता है। वह दूत कंचन नामक एक नगरी में पहुंचता है, जहां कि उसे एक ऐसा लड़का मिल जाता है जो की साधु के पुत्री के लिए योग्य और संपन्न था, वह दूत जाकर साधु को उस लड़के के बारे में बताता है, तब साधु अपनी पुत्री का विवाह उस लड़के के साथ कर देता है, लेकिन वह उसके विवाह के दौरान भी सत्यनारायण व्रत नहीं करता है।

क्योंकि वादे अनुसार उस व्यक्ति ने यानी कि साधु ने सत्यनारायण व्रत नहीं किया था, इसलिए भगवान सत्यनारायण उससे बहुत ही ज्यादा क्रोधित थे, और उस व्यक्ति को यह श्राप दे दिया था, कि उसे बहुत ही ज्यादा दुख झेलना पड़ेगा, और उसकी सारी धन संपत्ति समाप्त हो जाएगी। कुछ दिन बाद साधु ने अपने जमाई के साथ समुद्र तट पर एक नगर जिसका नाम रतन सारपुर था वहां जाकर व्यापार करने के बारे में सोचा, उस नगर का राजा चंद्रकेतु था। दोनों ने जाकर वहा अपना एक व्यापार प्रारंभ किया। एक दिन की बात है चंद्रकेतु राजा के धन को एक चोर चोरी करके भाग रहा था, और उसके पीछे राजा के सिपाही भाग रहे थे, जिससे कि वह चोर बहुत ही ज्यादा घबरा गया, जिसके कारण उसने वह सारी धनराशि उस स्थान पर रख दी जहां की साधु और उसका जमाई व्यापार कर रहे थे। जब राजा के सिपाहियों ने आकर देखा कि यह धनराशि साधु और उसके जमाई के पास है, तो उन दोनों ने साधु और उसके जमाई को बंदी बना लिया और राजा के पास लेकर चले गए।

इसके बाद राजा ने उन दोनों को कारावास में डालने का फैसला किया, और उनसे उनका सारा धन भी छीन लिया। सत्यनारायण भगवान की प्रकोप की वजह से उनके परिवार में बचा हुआ सारा धन भी एक चोर चुरा कर भाग गया। जिससे की कलावती को भी अपने पति और अपने पिता की बहुत ही ज्यादा चिंता होने लगी।

उनके घर में अब बिल्कुल भी धन नहीं था, जिससे कि परेशान होकर कलावती रात के समय एक ब्राह्मण के घर जाती है, और वह वहां जाकर देखती हैं कि ब्राह्मण सत्यनारायण व्रत कथा कर रहा है, और व्रत कथा करने के बाद व्रत कथा का पाठ भी कर रहा है, वह इस सभी चीजो को बहुत ध्यानपूर्वक देख रही थी, जिसके बाद वह उस ब्रह्मन से प्रसाद ग्रहण कर वापस अपने घर आ जाती है।

इसके बाद हुआ यह की लीलावती ने अपनी पुत्री कलावती से घर आने पर यह पूछा, की पुत्री तुम इतनी रात को इतनी देर तक बाहर क्या कर रही थी, तुम क्या सोच रही हो, जिसके बाद कलावती ने लीलावती को बताया, कि माता में अभी-अभी ही एक ब्राह्मण के घर से आ रही हूं, और वहां मैंने उस ब्राह्मण को सत्यनारायण के व्रत और व्रत कथा का पाठ करते हुए देखा, क्यों ना हम भी इस व्रत को करें जिससे कि हमारी भी मनोकामना पूर्ण हो जाए।

इसके बाद दोनों मां बेटी ने सत्यनारायण व्रत का विधि विधान से पूरा किया, और भगवान से यह मन्नत मांगी कि उनके पति और जमाई दोनों घर वापस आ जाए। इसके बाद हुआ यह की सत्यनारायण भगवान लीलावती और कलावती के इस व्रत से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुए, और उन्होंने उनकी मनोकामना पूरा की। उस रात सत्यनारायण भगवान ने चंद्र केतु राजा को सपने में दर्शन देकर कहा, कि तुमने जिन दोनों को अपराधी के रूप में अपने यहां रखा हुआ है, वह अपराधी नहीं है, तुम उन्हें छोड़ दो, अगर तुमने ऐसा नहीं किया, तो मैं तुम्हारे पूरे राज्य और तुम्हारे धन संपत्ति को नष्ट कर दूंगा।

भगवान विष्णु के इस भविष्यवाणी से राजा घबरा गया, और जैसे ही वह सुबह उठा उसने तुरंत ही अपने सिपाहियों को उन दोनों कैदियों को उनके सामने प्रस्तुत करने को कहा, जैसे ही साधु और उसके जमाई, राजा के सामने आए उन्होंने राजा को प्रणाम किया, जिसके बाद राजा ने उन दोनों से क्षमा मांगी, और कहा कि मुझे क्षमा कर दीजिए। मेरी वजह से आपको इतनी कठिन परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन यकीन मानिए अब आपको किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होगी, यह कह कर राजा ने उन दोनों की अच्छी तरह से खातिरदारी कि, उन्हें नए-नए वस्त्र दिए, इतना ही नहीं, राजा ने जितना धन उन दोनों से लिया था, उसे दुगना करके उन्हें लौटया, इसके बाद दोनों ससुर और जमाई, राजा का धन्यवाद करके अपनी नगर की तरफ चल पड़े।

सत्यनारायण व्रत कथा अध्याय चार (Chapter 4)

इसके पास सूत जी ने अपने ऋषिगण से कहा, की साधु, राजा से धन प्राप्त करके ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देते हुए नाव से अपनी नगर की तरफ जा ही रहा था, कि रास्ते में सत्यनारायण  भगवान ने सोचा कि क्यों ना इस साधु के सत्यता की परीक्षा ली जाए, इसके लिए उन्होंने एक दंडी का रूप धारण कर लिया। सत्यनारायण भगवान दंडी का रूप धारण करके साधु के पास पहुंचे, और उससे कहा कि तुम्हारे नाव में क्या है। जिसके बाद साधु ने हंसते हुए कहा, कि हमारे नाव में क्या है, यह तुम क्यों जानना चाहते हो, क्या तुम भी इस नाव से धन लेना चाहते हो, हमारी नाव में तो सिर्फ बेल पत्ते ही भरे हुए हैं। यह सुनकर सत्यनारायण भगवान को बहुत ही ज्यादा गुस्सा आ गया, और उन्होंने साधु को ही श्राप दे दिया, कि तुमने जो अभी कहा है, वह सत्य हो जाए, इसके बाद सत्यनारायण भगवान समुद्र के समीप में जाकर ही बैठ गए।

इसके बाद हुआ यह की साधु की जो नाव थी वह पानी में ऊपर उठने लगी, और जब साधु ने अपने नाव में देखा तो उसकी सारी जो धन दौलत थी, वह सारे बेल और पत्तो के रूप में बदल चुके थे, जिसे देखकर वह बेहोश हो जाता है, जब वह बेहोशी की हालत से उठता है, तब उसका दामाद साधु से कहता है, कि यह उस दंडी के श्राप के वजह से ही हुआ है, अगर हमें अपने धन दौलत वापस चाहिए, तो हमें उस दंडी के शरण में ही जाना होगा, तभी हमें इसका समाधान मिल पाएगा। ऐसा कह कर दोनों उस दंडी यानी कि सत्यनारायण भगवान के पास जाकर क्षमा मांगते हैं, कि हे भगवान हमें क्षमा कर दीजिए, हमने आपसे जो भी झूठ बोले उसके लिए हमें कृपा करके माफ कर दीजिए।

इसके बाद सत्यनारायण भगवान ने साधु से कहा कि तुम हमेशा मुझसे दूर भागते रहे हो, और तुमने कभी भी मेरी पूजा नहीं की है, जिसकी वजह से ही तुम्हें यह सब भोगना पड़ रहा है। जिसके बाद भगवान से क्षमा मांगते हुए साधु ने भगवान सत्यनारायण से कहा, कि हे भगवान आपकी माया से तो स्वयं ब्रह्मा जी भी आपको नहीं पहचान पाए थे, भला मैं अज्ञानी और मामूली इंसान आपको कैसे पहचान पाता। कृपया करके आप मुझे माफ कर दीजिए, और मेरी नौकरी को वापस पहले जैसा करके मेरे ऊपर कृपा कर दीजिए, मैं विधि विधान से आपका व्रत किया करूंगा, और आपकी पूजा भी किया करूंगा। साधु के इस वचन को सुनकर सत्यनारायण भगवान ने साधु को माफ कर दिया, और उसकी नौका को पहले जैसे ही धन-धान्य से पुण्य करके चले गए।

साधु ऐसे ही नाव में अपनी नगरी की तरफ बढ़ रहा था, कि जैसे ही वह अपनी नगरी के पास पहुंचा, उसने अपने दूत को खबर दे दी, कि वह उसके पत्नी के पास जाकर यह खबर दे दे कि वह नगरी में लौट रहे हैं, जिसके बाद साधु का जो दूत था वह लीलावती के पास जाकर उन्हें प्रणाम कर कहता है कि साधु और उनके जमाई दोनों ही नगर के निकट आ पहुंचे हैं, दूत के मुख से इस समाचार को सुनकर लीलावती और कलावती दोनों ही बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हो जाते हैं, दोनों ही विधि पूर्वक सत्यनारायण भगवान की पूजा करते हैं, जिसके बाद लीलावती कलावती से कहती है की पुत्री में जा रही हूं, अपने पति के दर्शन करने, तू भी पूजा का काम खत्म करके वहां आ जाना। ऐसा कहकर लीलावती चली जाती है, इधर कलावती को भी अपने पति के दर्शन की जल्दबाजी थी, जिससे कि वह सत्यनारायण भगवान की पूजा करके प्रसाद ग्रहण करें बिना ही अपने पति के दर्शन के लिए चली जाती है, जिससे कि सत्यनारायण भगवान नाराज हो जाते हैं, जिसके कारण वह साधु के जमाई को ही नाव सहित समुद्र में डुबो देते हैं।

जब लीलावती समुद्र किनारे पहुंची, तब उसके जमाई अचानक से गायब हो गए, जिसे देखकर वह बहुत ही ज्यादा शोक मनाने लगी, और यह देखकर रोने लगी कि अभी उनके पति नगरी आए थे, और अचानक से यह क्या हो गया। इसके बाद कलावती भी जब वहां पहुंची, तो वह अपने पति को वहां न देखकर बहुत ही ज्यादा रोने लगी, साधु को यह पता चल चुका था कि सत्यनारायण भगवान हमसे नाराज हो गए हैं, जरूर हमसे कुछ गलती हुई है, और उन्होंने उनकी जमाई का अपहरण कर लिया है। जिसके बाद साधु ने सत्यनारायण भगवान से यह प्रार्थना की मेरे की मेरे पास जितना भी धन है, मैं उससे सत्यनारायण भगवान की विधि विधान से पूजा करूंगा, व्रत रखूंगा कथा का पाठ करूंगा और ऐसा कह कर उसने सत्यनारायण भगवान को दंडवत प्रणाम किया, जिससे कि सत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए, और एक आकाशवाणी हुई, कि तुम्हारी पुत्री ने मेरा प्रसाद ग्रहण नहीं किया है, जिसकी वजह से मैंने ऐसा किया, अगर तुम्हारी पत्नी घर जाकर वह प्रसाद पुन: ग्रहण कर लेती है, तो तुम्हारी पुत्री को उसके पति की प्राप्ति हो जाएगी। इसके बाद कलावती भागती हुई अपने घर जाती है और उस छोड़े हुए प्रसाद को ग्रहण करती है, जिससे कि सत्यनारायण भगवान पुनः प्रसन्न हो जाते हैं, और उसे उसका पति लौटा देते हैं, जिससे की कलावती बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होती है, और सत्यनारायण भगवान का धन्यवाद करती है। इसके बाद में सभी लोग मिल कर सत्य नारायण भगवान की पूजा करते हैं, और अंत में सभी को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

सत्यनारायण व्रत कथा अध्याय पांच (Chapter 5)

पांचवें अध्याय में सूत जी अपने ऋषिगण से कहते हैं कि यह इस व्रत का अंतिम अध्याय है, तो तुम इस कथा को भी बहुत ही ज्यादा ध्यान से सुनना ऐसा कहते हुए सूत जी ऋषिगढ़ से कहते हैं की बहुत समय पहले की बात है एक और राजा था जिसका नाम तुंगध्वज था, उसने भी सत्यनारायण भगवान के प्रसाद को ग्रहण न करने के कारण बहुत ही ज्यादा दुख भोगा था। असल में हुआ यह था कि एक दिन वह राजा जंगल में शिकार करने गया था, उसने वहां कई सारे जानवरों का शिकार किया था, जिसके बाद वह राजा थककर एक वृक्ष के नीचे बैठ जाता है, वह राजा देखता है कि पास में ही कुछ ग्वाले भक्ति पूर्वक सत्यनारायण व्रत करके सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ कर रहे हैं, राजा बहुत ही ज्यादा घमंडी और अहंकारी था, जिसकी वजह से वह उठकर उनके पास भी नहीं जाता है। अंत में जब सभी ग्वाले जाकर राजा को भगवान का प्रसाद देते हैं, तो राजा उस प्रसाद को इनकार करके वापस अपने राज्य को चला जाता है, जिसकी वजह से सत्यनारायण भगवान उस राजा से बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं। जब वह राजा अपने राज्य आता है, तब वह देखता है कि उसके राज्य में सब कुछ तहस-नहस हो चुका होता है, उसके सारी धन संपत्ति लूट गई होती है, और उसके पुत्र पत्नी भी उसे दिखाई नही देते, यह देखकर वह समझ जाता है कि यह सभी इसलिए हो रहा है क्योंकि मैने सत्यनारायण भगवान के प्रसाद को मना किया था, उन्हीं के प्रकोप के कारण मुझे यह स्थिति देखनी पड़ रही है, जिसके बाद वह सोचता है कि क्यों ना मैं अभी फिर से जंगल जाऊं और जाकर विधि विधान से सत्यनारायण भगवान की पूजा करके प्रसाद ग्रहण करूं। इसके बाद वह तुरंत जंगल जाता है और ग्वालो के साथ मिलकर विधि विधान से सत्यनारायण की पूजा करता है, और प्रसाद ग्रहण करता है। जिससे कि सत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो जाते हैं, और उस राजा को उसका राज्य उसकी धन संपत्ति उसके पुत्र सब कुछ लौटा देते हैं, जिससे कि वह फिर से पहले की तरह ही हो जाता है और सत्यनारायण भगवान का धन्यवाद भी करता है।

इतना कहने के बाद सुत जी अपने ऋषियो से कहते हैं कि यही वह महत्वपूर्ण सत्यनारायण व्रत है, जिसे करने से व्यक्ति को विशेष प्रकार के फल प्राप्त होते हैं, उसे सत्यनारायण भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे कि उसे बहुत ही ज्यादा धन संपत्ति की प्राप्ति होती है, और उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को किसी भी प्रकार का भय नहीं होता, वह पूरी तरह से भय मुक्त हो जाता है, और उसे इस संसार में समाहित सभी प्रकार के सुखों के भोगी बनने का सुख प्राप्त होता है। तो यही है सत्यनारायण व्रत की महिमा इसके बारे में मैंने तुम्हें आज बताया है।

इसके बाद सूत जी कहते हैं कि भगवान विष्णु को ही सत्यनारायण के रूप में जाना जाता है, और यही मृत्यु लोक यानी कि पृथ्वी लोक में लोगों को उनके पुण्य के अनुसार फल देने का कार्य करते हैं, और यही लोगों की सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं, और यही लोगों की सभी समस्याओं का समाधान भी करते हैं। इन्हीं को लोग सत्य के नाम से पूछते हैं, इसलिए जो भी इस व्रत का पाठ करता है, उसे उनकी कृपा प्राप्त होती है, और उसके सारे पाप समाप्त हो जाते हैं, और वहां व्यक्ति हमेशा के लिए पवित्र हो जाते हैं, और उसे मृत्यु के पश्चात स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इसके बाद सूत जी ऋषियो से कहते हैं कि चलो मैं तुम सभी को उन लोगों के दूसरे जन्म के बारे में बताता हूं, जिन लोगों की कथा मैने अभी तुम्हें सुनाई है।

प्रज्ञासम्पन्न नाम का व्यक्ति सत्यनारायण व्रत करने के कारण ही अगले जन्म में सुदामा बना और उसने श्री कृष्ण जी की सेवा की, इतना ही नहीं, लकड़हारा भी सत्यनारायण व्रत की वजह से ही अगले जन्म में केवट बना, जिसने की श्री राम जी की सेवा करके मोक्ष को प्राप्त किया।

जो राजा उल्कामुख है उन्होंने भी सत्यनारायण व्रत किया था, जिसकी वजह से उन्हें अगले जन्म में राजा दशरथ बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जो साधु नाम का व्यक्ति था, वह भी सत्यनारायण भगवान की कृपा से अगले जन्म में मोरध्वज नामक नगर का राजा बना, और विष्णु जी की कृपा से उसने मोक्ष को प्राप्त किया, और रही बात पांचवें अध्याय की तो उसमें जो तूध्वज नाम के राजा थे, उन्होंने अगले जन्म में स्वयंभू होकर भगवान विष्णु की भक्ति की और अंत में जाकर मोक्ष को प्राप्त किया।

तो दोस्तों यही है सत्यनारायण व्रत की व्रत कथा के पांच अध्याय, जिसका पाठ करना आपको बहुत ही ज्यादा जरूरी है, और कहा जाता है कि इस व्रत को करके इस कथा का पाठ करने से आपको भी सत्यनारायण भगवान की कृपा प्राप्त होती है और सत्यनारायण भगवान आपको भी धन, संपत्ति पुत्र आदि का वरदान देते है। तो अगली बार से आप जब भी सत्यनारायण व्रत को करने के बारे में सोचें, या फिर करें, तो इस कथा का पाठ आवश्यक रूप से करें, ताकि आपको इस व्रत का पूरा फल प्राप्त हो सके।

तो चलिए इस आर्टिकल में आगे बढ़ते हैं और आपको सत्यनारायण व्रत के नियम और इससे मिलने वाले फल के बारे में थोड़ी जानकारी दे देते हैं।

श्री सत्यनारायण व्रत के नियम

तो दोस्तों ऐसे कुछ नियम होते हैं जिनका ध्यान आपको सत्यनारायण व्रत के दौरान रखना चाहिए, ताकि कहीं आपसे भी सत्यनारायण भगवान नाराज ना हो जाए। तो अगर आप भी चाहते हैं कि सत्यनारायण भगवान आपसे नाराज ना हो, तो नीचे हम आपको इस व्रत के कुछ नियमों के बारे में बता रहे हैं, व्रत के दौरान उन नियमों का खास ध्यान रखें।

1: सत्यनारायण का व्रत करने का दौरान आपको व्रत कथा का पाठ आवश्यक तौर पर करना चाहिए, और इस कथा का पाठ अगर आप केले के पेड़ के नीचे बैठकर करेंगे तो बहुत ही ज्यादा शुभ होगा।

2: सत्यनारायण का व्रत करने के दौरान आपको किसी भी प्रकार के तापसिक भोजन जैसे की लहसुन प्याज और मांस मदिरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।

3: इस व्रत के दौरान आपको इस बात का ध्यान रखना है, की पूजा के पश्चात आप याद से प्रसाद ग्रहण कर ले, वरना प्रसाद इनकार करने के कारण सत्यनारायण भगवान आपसे बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो सकते है।

4: इस व्रत में आपको इस बात का ध्यान रखना है, की दूध, घी, केले का फल, गेहूं का चूर्ण और गुड़ या शक्कर यह सभी चीज सत्यनारायण भगवान के भोग में अवश्य होनी चाहिए, इसके साथ आपको भगवान के भोग में तुलसी का भी विशेष तौर पर उपयोग करना चाहिए।

5: इसी के अलावा इस दिन और भी कई प्रकार के नियम है जैसे कि इस दिन आपको क्रोध नहीं करना चाहिए, लड़कियों को बाल नहीं धोने चाहिए, लड़कों को बाल या फिर दाढ़ी नहीं कटवानी चाहिए, नाखून नहीं काटने चाहिए, आदि इन सभी नियमों का भी पालन आपको इस व्रत के दौरान करना चाहिए।

सत्यनारायण व्रत करने से क्या फल मिलता है?

अगर बात करें सत्यनारायण व्रत करने से क्या फल मिलता है, तो हम आपको बता दें कि सत्यनारायण व्रत करने से हमें साक्षात भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, क्योंकि सत्य के रूप में नारायण की पूजा करना ही सत्यनारायण की पूजा करना होता है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से हमारे सभी समस्या संकटों का समाधान हो जाता है, और स्वयं भगवान विष्णु हमारी रक्षा करते हैं। इतना ही नहीं, कहा जाता है कि इस व्रत को करने से हजार यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है, और इससे व्यक्ति की हर मनोकामना भी पूर्ण होती है। इतना ही नहीं, इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है, इसलिए इस व्रत को हिंदू धर्म में एक बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। इसलिए अगर हो सके तो आपको भी सत्यनारायण भगवान को प्रसन्न करने के लिए इस व्रत को करते हुए व्रत कथा का पाठ करना चाहिए, ताकि आप सभी को भी यह सारे लाभ मिल सके।


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