दोस्तों स्वागत है आपका आज के हमारे एक और नए आर्टिकल में, तो दोस्तों क्या आप भी सोलह सोमवार के व्रत को करने के बारे में सोच रहे हैं, या फिर करना चाहते हैं। लेकिन आपको नहीं पता है कि आप सोलह सोमवार का व्रत किस प्रकार से कर सकते हैं। तो दोस्तों घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आज मैं आपके लिए इस आर्टिकल को लेकर आया हूं, जिसमें कि मैं आपको 16 सोमवार के व्रत के बारे में पूरी जानकारी देने वाला हूं। आज मैं आपको बताऊंगा कि सोलह सोमवार का व्रत क्या है, और इसे करने की क्या विधि होती है। इतना ही नहीं, आज के इस आर्टिकल में मैं आपको सोलह सोमवार व्रत में पाठ किए जाने वाले सोलह सोमवार व्रत कथा के बारे में भी बताने वाला हूं। तो इसलिए आज के इस आर्टिकल को आखिरी तक जरूर पढ़ें। इस आर्टिकल को पूरा पढ़ने के बाद आप भी आसानी से सोलह सोमवार का व्रत कर पाएंगे। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और शुरू करते हैं आज के, और जानते हैं कि आखिर सोलह सोमवार का व्रत कैसे करें।
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सोलह(16) सोमवार व्रत क्या है (16 Monday Vrat Kya hai)?
तो दोस्तों जैसा कि इसके नाम से ही समझ आ रहा है, सोलह सोमवार, यानी कि इसमें आपको सोलह सोमवार तक व्रत करना होता है। अगर बात करें यह क्यों किया जाता है, तो मैं आपको बता दू कि सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है, कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति लगातार सोलह सोमवार तक व्रत करता है, तो उसे अपने वैवाहिक जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होती, और उसी के साथ उसे शिवजी और पार्वती जी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। वैसे तो सोलह सोमवार के व्रत को पार्वती जी ने ही शुरू किया था, हम आपको बता दें कि सती माता ने ही दूसरे जन्म में पार्वती का अवतार लेकर शिवजी को फिर से जीवनसाथी के तौर पर प्राप्त किया था। इसके लिए उन्होंने सोलह सोमवार का व्रत करके कड़ी तपस्या भी की थी, तब से ही माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति सोलह सोमवार का व्रत करता है, तो उसे उसकी वैवाहिक जीवन की सारी परेशानियों से मुक्ति मिलती है, और साथ ही उसे माता पार्वती और शिव जी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
अगर आप भी पार्वती जी और शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, और आप भी चाहते हैं कि आपका भी वैवाहिक जीवन अच्छा हो। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और आपको सोलह सोमवार के व्रत की कथा और इसके पूजा विधि के बारे में जानकारी देते हैं, ताकि आपको इस व्रत को करने में किसी भी प्रकार की समस्या ना हो।
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सोलह (16) सोमवार व्रत कथा क्या है (16 Monday Vrat Katha Kya Hai)?
तो दोस्तों अगर आप सोलह सोमवार का व्रत करते हैं, तो इसमें आपको इसकी व्रत कथा का पाठ करना बहुत ही ज्यादा आवश्यक होता है, कहा जाता है कि जो व्यक्ति सोमवार व्रत कथा का पाठ करता है, उसे बहुत ही ज्यादा सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही साथ उसे शिवजी और पार्वती जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। तो अगर आप भी इस कथा का पाठ करना चाहते हैं, तो चलिए आपको सोलह सोमवार के व्रत कथा के बारे में बताते हैं।
बहुत समय पहले की बात है, जब शिवजी पार्वती जी के साथ मृत्यु लोक में भ्रमण कर रहे थे, तभी अचानक से ही घूमते घूमते वे विदर्भ देश के अमरावती नामक स्थान पर आ पहुंचे। और जब वह स्थान पर पहुंचे, तो शिवजी और पार्वती जी ने देखा, कि इस जगह के राजा ने तो इस स्थान पर एक बहुत ही बड़ा और भव्य शिव मंदिर का निर्माण करवा रखा है, जो कि देखने में बहुत ही ज्यादा सुंदर प्रतीत हो रहा है। वह मंदिर इतना सुंदर था, कि वह मंदिर शिवजी और पार्वती को देखते ही पसंद आ गया, और उन्होंने इसी मंदिर पर कुछ दिनों तक रहने का फैसला किया, और ऐसे ही कुछ दिन तक शिवजी और पार्वती जी इस मंदिर पर रहने लगे।
ऐसे ही खुशी-खुशी शिवजी और पार्वती जी उस मंदिर में रह रहे थे एल, कि तभी एक दिन अचानक से ही पार्वती जी को चौसर खेलने का मन हुआ, जिसके लिए उन्होंने शिवजी से आग्रह की कि चलिए हम चौसर खेलते हैं, और शिव जी ने भी पार्वती जी की आग्रह को स्वीकार किया और वह चौसर खेलने हेतु तैयार हो गए, और दोनों चौसर खेलने लग गए।
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जब शिवजी और पार्वती जी बहुत ही खुशी से चौसर का खेल खेल रहे थे, तभी उस समय उस शिव मंदिर का पुजारी वहां पहुंचता है, क्योंकि उसे मंदिर की पूजा करनी थी। तो वह जाकर शिवजी और पार्वती जी को चौसर का खेल खेलते हुए देखता है, तभी पार्वती जी भी उस पुजारी को देखती है, और उस पुजारी से एक सवाल करती है, कि हे पुजारी तुम यह बताओ कि इस चौसर की खेल में कौन जीतेगा? पार्वती जी के सवाल को पूछने के बाद पुजारी कुछ देर सोचता है, और कहता है कि इस खेल में तो कुछ भी हो जाए देवों के देव महादेव ही जीतेंगे। उसके बाद जब शिवजी और पार्वती जी चौसर का चाल चलते हैं, तो होता बिल्कुल विपरीत है। पार्वती जी शिवजी से विजय प्राप्त कर लेती है, यानी कि उस पुजारी की बात गलत हो जाती है।
क्योंकि पुजारी की बात गलत हो गई, इस बात से पार्वती जी पुजारी से क्रोधित हो गई थी, क्योंकि उसने झूठ बोली कही थी। इसलिए उस पुजारी से क्रोधित होकर पार्वती जी ने उस समय उस मंदिर के पुजारी को झूठ बोलने हेतु कोढ़ी होने का श्राप दे दिया, शिवजी ने पार्वती जी को रोकने की भी कोशिश की, लेकिन पार्वती जी इतनी ज्यादा क्रोधित थी कि उन्होंने शिवजी की बात माने बिना ही उस पुजारी को श्राप दे दिया। अब करना क्या था, जो होना था हो गया, बेचारे पुजारी को कोढ़ी की बीमारी हो गई, और उसके बाद शिवजी और पार्वती जी वापस अपने घर कैलाश की ओर चल दिए।
पुजारी को कोढ़ी हुए बहुत दिन हो चुके थे, अब एक दिन वह ऐसे ही उस शिवजी के मंदिर में बैठा था, तभी कुछ अप्सराएं उस मंदिर में पूजा करने के लिए आती है, और वह पुजारी जी को इस हालत में देखकर उनके इस हालत के पीछे का कारण उनसे पूछती है। तब पुजारी जी भी अपनी पूरी राम कहानी उन अप्सराओं को बता देते हैं, की उनका यह हाल पार्वती जी की श्राप के वजह से हुआ है। पुजारी जी की यह हालत अप्सराओं से देखी नहीं जाती, तभी वह पुजारी जी से कहती हैं, कि हे पुजारी जी, आप अपने इस श्राप की मुक्ति के लिए सोलह सोमवार का व्रत क्यों नहीं करते, क्योंकि सोलह सोमवार का व्रत करने से शिव जी आपसे प्रसन्न होंगे, और आपको इस श्राप से भी मुक्ति मिल जाएगी। ऐसा सुनते ही पुजारी जी खुश हो गए, और उन्होंने उन्ही अप्सराओं से सोलह सोमवार के व्रत की पूरी विधि और नियमों को पूछा, और पूरे विधि और नियमानुसार सोमवार के व्रत को किया। और ऐसा ही हुआ, शिव जी की कृपा से पुजारी को पार्वती जी के द्वारा दिए कोढ़ी के श्राप से मुक्ति मिली, और वह रोग मुक्त हो गए।
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एक और दिन की ही बात है, जब फिर से पार्वती जी और शिव जी उसी शिव मंदिर में भ्रमण करते हुए आए, और पार्वती जी मंदिर में उस पुजारी को देखकर हैरान ही रह गई, क्योंकि पुजारी पूरी तरह से रोगमुक्त था। जबकि पार्वती जी ने उसे श्राप दिया था। तो ऐसे में पार्वती जी उस पुजारी से पूछती है, कि मैंने तो तुम्हें श्राप दिया था, तो तुम रोगमुक्त कैसे हुए। तो उस पुजारी ने पार्वती माता को वह सारी बात बताई, कि कैसे उन्होंने सोलह सोमवार का व्रत किया, और शिव जी की कृपा से उन्हें उनके श्राप से मुक्ति मिली। यह सुनकर पार्वती जी हैरान हो गई, और खुश भी हो गई, उसके बाद पार्वती जी ने उस पुजारी से सोलह सोमवार के व्रत को विधि पूर्वक पूर्ण करने के विधि के बारे में पूछा, पुजारी ने पार्वती जी को सारी विधि बता दी।
उस समय पार्वती जी अपने पुत्र कार्तिकेय के नाराज होकर दूर जाने की वजह से बहुत ही ज्यादा परेशान थी, और वह कुछ भी करके उन्हें वापस लाना चाहती थी, जिसके लिए उन्होंने सोलह सोमवार का व्रत करना सही समझा। जिसके बाद वह भी पुजारी के द्वारा बताए गए विधि से विधि विधान से सोलह सोमवार का व्रत करने लगी, और उन्हें इनका फायदा भी मिला। जैसे ही व्रत खत्म हुआ, वैसे ही कुछ दिनों में कार्तिकेय पार्वती जी के पास वापस लौट आए।
जब कार्तिकेय जी पार्वती जी के पास वापस आ गए, तब उन्होंने पार्वती जी से पूछा कि माता आपने ऐसा क्या किया जो मैं आपके पास वापस लौट आया, और मेरा क्रोध भी पूरी तरह से समाप्त हो गया। तब माता पार्वती ने कार्तिकेय को भी सोलह सोमवार के व्रत के बारे में बताया। उसके बाद कार्तिकेय में भी सोलह सोमवार के व्रत को करने की ठान ली, क्योंकि वह अपने एक ऐसे ब्राह्मण मित्र से मिलना चाहते थे, जोकि परदेस गया हुआ था। इसलिए कार्तिकेय ने भी सोलह सोमवार के व्रत को विधि विधान से किया, और जिसके बाद हुआ यह कि जैसे ही सोलह सोमवार का व्रत खत्म हुआ, वैसे ही उनका परदेस गया हुआ मित्र अचानक ही कार्तिकेय से मिलने आ गया।
जिससे कि कार्तिकेय जी बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हो गए। जब उनके मित्र को इस राज के बारे में पता चला कि कार्तिकेय ने सोलह सोमवार का व्रत करके उसे अपने पास मिलने हेतु बुलाया है, तो कार्तिकेय का मित्र भी बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुआ, उसने भी इस व्रत को करने की इच्छा जताई, क्योंकि वह चाहता था कि उसका विवाह हो जाए, इसलिए कार्तिकेय जी ने सोलह सोमवार की सारी विधि अपने मित्र को बता दी, जिसके बाद उनके मित्र ने भी पूरी विधि विधान से सोलह सोमवार के व्रत को किया।
1 दिन ऐसा हुआ, कि जैसे ही कार्तिकेय जी का मित्र विदेश गया, वहां एक राजा की कन्या का स्वयंवर हो रहा था, जहां शर्त यह थी कि एक हथिनी को माला पकड़ाई जाएगी और वह माला हथिनी जिसके गले में डालेगी, उसी व्यक्ति से मेरी बेटी की शादी होगी। कार्तिकेय जी का मित्र भी स्वयंवर देखने गया हुआ था, और शिव जी की कृपा देखो हथिनी ने कार्तिकेय जी के मित्र के ऊपर ही उस माला को पहना दिया। जिसके बाद राजा ने बड़ी धूम-धाम से अपनी राजकुमारी और ब्राह्मण का विवाह करवा दिया।
राजकुमारी और ब्राह्मण के विवाह के बाद दोनों ही अपने जीवन में बहुत ही ज्यादा खुश थे, और खुशी से अपनी जिंदगी बिता रहे थे। लेकिन लेकिन एक दिन अचानक ही राजकुमारी ने ब्राह्मण से यह सवाल किया कि है मेरे पतिदेव आखिर तुमने ऐसे कौन से पुण्य किए थे, जो हथिनी ने तुम्हें ही चुना, और तुम्हें ही माला पहनाई। तो इस बात को सुनकर ब्राह्मण थोड़ा सा मुस्कुराए, और उन्होंने सोलह सोमवार के व्रत वाली बात अपनी पत्नी को बता दी, जो कि ब्राह्मण को उनके परम मित्र कार्तिकेय जी ने बताया था। उसके बाद सोलह सोमवार व्रत के बारे में जानकर, उसने भी ब्राह्मण को इस व्रत को करने की इच्छा बताई, तो जब ब्राह्मण ने पूछा कि तुम यह व्रत क्यों करना चाहती हो, तो राजकुमारी ने कहा कि मुझे एक ऐसा पुत्र चाहिए जो कि सर्वगुण संपन्न हो। उसके बाद ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को सोलह सोमवार करने की पूरी विधि बताई, जिसके बाद राजकुमारी ने सोलह सोमवार व्रत को पूरी विधि से किया, जिसके बाद उसे सच में एक सत्य पुत्र की प्राप्ति हुई जोकि सर्वगुण संपन्न था। उसका नाम गोपाल रखा गया।
जब वह पुत्र बड़ा हो गया तो उसे भी उसकी माता से इस व्रत के बारे में पता चला, तो उसने भी राजपाट की इच्छा के लिए इस व्रत को करने के बारे में सोचा। उस समय एक राजा अपनी पुत्री के लिए एक अच्छा सा वर ढूंढ रहे थे, तो उन्होंने अपनी शादी ब्राह्मण के पुत्र गोपाल से करवा दी, कुछ साल ऐसे ही खुशी से गुजरे सब शांति से जीवन यापन कर रहे थे, लेकिन अचानक राजा की मृत्यु हो जाती है, और उनकी कोई भी संतान ना होने के कारण उनकी बेटी के पति यानी कि गोपाल को ही राजपाट प्राप्त हो गया।
वैसे तो ब्राह्मण के बेटे को राजपाट प्राप्त हो गए थे लेकिन वह फिर भी सोलह सोमवार का व्रत लगातार करता था। 1 दिन की बात है जब वह अपना सोमवार का व्रत कर रहा था, तब उसने अपनी पत्नी यानी की राजकुमारी को भी अपने साथ यह व्रत करने हेतु मंदिर आने को कहा था, लेकिन राजकुमारी ने ऐसा नहीं किया। बल्कि उन्होंने अपनी जगह दासियों को वहां भेज दिया। वहां ब्राह्मण के बेटे गोपाल सोलह सोमवार के व्रत को करके जैसे ही उठे, उन्हें एक आकाशवाणी सुनाई दी, जिसमें कि कहां जा रहा था कि तुम अपनी पत्नी को अपने से दूर रखो, वरना तुम्हारा विनाश निश्चित है। यह सुनकर गोपाल बहुत ही ज्यादा आश्चर्यचकित हो गए, और दुविधा में पड़ गए कि आखिर मैं उसे अपने से दूर कैसे रखूं जिसकी वजह से मुझे यह राजपाट प्राप्त हुआ है। लेकिन वह आकाशवाणी पर विश्वास करके अपनी पत्नी का त्याग कर देता है, और उसे अपने महल से भी बाहर निकाल देता है।
इसके बाद रानी को जब महल से निकाल दिया गया, वह ऐसे ही अपने राज्य में भूखी प्यासी गरीबों की तरफ भटकती रही। तब जाकर राजकुमारी को एक बुढिया दिखाई दी जो कि सुत काटकर बाजार में बेचने के लिए ले जा रही थी, लेकिन उसे उस काम में परेशानी आ रही थी, तभी वह बुढ़िया राजकुमारी से कहती है कि अगर तुम इस सूट को मेरे साथ बाजार लेकर चलोगी और इसे बेचने में मेरी सहायता करोगी, तो मैं भी तुम्हारी सहायता करूंगी और बदले में तुम्हें कुछ पैसे भी दूंगी। जिसके बदले राजकुमारी तैयार हो जाती है।
जैसे ही राजकुमारी ने उस सूट की टोकरी को उठाई, वैसे ही आंधी चली और सारी सूत हवा में उड़ गई, जिससे कि वह बुढ़िया औरत नाराज हो गई ,और क्रोधित होकर राजकुमारी को भगा दिया। जिससे कि वह फिर से ऐसे ही घूम रही थी उसके बाद वह एक तेली के घर में गई, जहां जाने पर शिव जी जी के नाराज होने के कारण तेली के घर की सारी तेल से भरी मटकिया फूटने लगे जिससे कि तेली भी बहुत ही ज्यादा क्रोधीत हुआ और उसने भी राजकुमारी को भगा दिया।
उसके बाद राजकुमारी ऐसे ही अपने राज्य में भटकने लगी, उन्हें अचानक से प्यास लगी, लेकिन उन्होंने जैसे ही नदी के जल को हाथ लगाया, उनके स्पर्श से ही वह नदी सूख गई। तो इस तरह से वह अपनी किस्मत को कोसती हुई आगे चल दी, और आगे जाने पर उन्हें एक आश्रम दिखाई दिया, जो कि गुंसाई जी का था, वह उस आश्रम में चली गई, जहां की गुंसाई ही इन्हें देखकर समझ गए कि राजकुमारी एक ऊंचे घराने की है, और इन्हें कुछ समस्या है। तो गुंसाई जी ने राजकुमारी को कहा कि तुम यहां रह सकती हो, लेकिन समस्या ये थी कि राजकुमारी के छूते ही सारी चीजें खराब हो जा रही थी, तब गुंसाई जी ने राजकुमारी से इसका कारण पूछा तो राजकुमारी ने इसका कारण बताया। जिसके बाद गुंसाई जी ने राजकुमारी को सोलह सोमवार के व्रत करने को कहा था,ताकि उसे शिव जी की कृपा प्राप्त हो और उसे श्राप से मुक्ति मिल सके। गुंसाई जी की आज्ञा का पालन करते हुए राजकुमारी ने सोलह सोमवार के व्रत को विधि विधान से पूरा किया, जिसके बाद अचानक ही ब्राह्मण के बेटे को अपनी पत्नी की याद आने लगी और उसने अपने सैनिकों को राजकुमारी को ढूंढने के लिए भेज दिया। जब ब्राह्मण के बेटे को पता चला कि महारानी गुंसाई जी के आश्रम में है, तो वह तुरंत ही भागे भागे आश्रम में गए, और वहां के महाराजा जी से यह आग्रह की कि यह मेरी पत्नी है, जिसका मैंने त्याग कर दिया था, जिसके लिए मैं बहुत ही ज्यादा शर्मिंदा हूं, कृपा करके आप मुझे इन्हें अपने साथ ले जाने की आज्ञा दें। इस तरह से ब्राह्मण के बेटे और उनकी पत्नी के बीच फिर से सुलह हो गया, और दोनों ऐसे ही खुशी की जिंदगी बीताने लगे, दोनों हर साल सोलह सोमवार का व्रत भी करने लगे।
सोलह (16) सोमवार व्रत कब से शुरू करें (16 Monday Vrat Kab se Start Kerne chiye)?
दोस्तों अगर बात करें सोलह सोमवार व्रत को आप कब से शुरू कर सकते हैं, तो हम आपको बता दें वैसे तो आप इस व्रत को करने के लिए किसी भी सोमवार से व्रत का संकल्प ले सकते हैं। आप श्रावण,चेत्र, मार्गशीर्ष, और बैसाख आदि महीनों के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार से ही सोलह सोमवार के व्रत करने का संकल्प लेकर व्रत शुरु कर सकते हैं, आपको किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होगी। लेकिन हम आपको बता दें कि सावन का पूरा महीना शिवजी को समर्पित होता है, यानी कि सावन के महीने का हर एक दिन शिव जी को पसंद होता है, तो ऐसे में सावन के पहले सोमवार से इस व्रत की शुरुआत करना बहुत ही ज्यादा शुभ माना जाता है, और वैसे भी सावन आने ही वाला है, तो आप चाहे तो सावन के पहले सोमवार से इस व्रत का संकल्प ले सकते हैं, और लगातार 16 सोमवार तक बिना किसी परेशानी के व्रत को करते हुए व्रत उद्यापन कर सकते हैं।
सोलह(16) सोमवार की पूजा विधि (16 Monday ki Puja Vidhi)
अगर आप भी सोलह सोमवार का व्रत करना चाहते हैं, तो हमने आपको सोमवार व्रत कथा के बारे में तो बता दिया, तो इसका पाठ करके आप शिवजी और पार्वती जी दोनों का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन अगर बात करें सोलह सोमवार की पूजा विधि की, तो सोलह सोमवार में शिव जी की पूजा भी पूरी विधि विधान से करनी चाहिए, ताकि आपको इसका पूरा फल प्राप्त हो। तो चलिए आपको सोलह सोमवार की पूजा विधि के बारे में पूरी जानकारी दे देते हैं।
1: दोस्तों अगर आप भी सोलह सोमवार व्रत करके भगवान शिव की पूजा करना चाहते हैं, तो इसके लिए सबसे पहले आपको शिवजी के सामने बैठकर अपने व्रत के लिए संकल्प लेना होता है। उसके बाद आप आने वाले सोलह सोमवारो में बिना किसी समस्या के पूजा पाठ करके इस व्रत को पूर्ण कर सकते हैं।
2: अगर बात करें कि व्रत का संकल्प कैसे ले, तो व्रत का संकल्प लेने के लिए सबसे पहले एक पान का पत्ता उसी के साथ उसके साथ एक सुपारी भी ले। उसके बाद अपने हाथ में थोड़ा सा जल और थोड़ा सा अक्षत यानी कि चावल और कुछ सिक्के लेकर दोनों हाथों को जोड़ ले और उसके बाद शिवजी के प्रतिमा के सामने बैठकर अपने व्रत करने का संकल्प लें। वैसे तो सोलह सोमवार में शिवजी की पूजा शाम के समय की जाती है, इसलिए हाथ के सारे सामानों को शिव जी को समर्पित कर दे और पूजा शाम को करें।
3: अब बारी है शाम को शिवजी की पूजा करने की, तो अगर आप घर में पूजा कर रहे हैं तो आप शिव जी के शिवलिंग को एक तांबे के पात्र में रखकर उनकी पूजा कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले गंगाजल में गाय का दूध मिलाकर शिवजी का अभिषेक करें, और शिवजी की आराधना करें।
4: इसके बाद आपको शिवलिंग पर कई प्रकार की चीजें अर्पित करनी है, जैसे कि दही, पंचामृत, दूध, शहद, शक्कर, धूप ,दीप ,अष्टगंध, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र, गन्ने का रस, आदि को भी चीज आपके पास उपलब्ध हो वह शिवलिंग पर अर्पित करें, और इसी के साथ मन में ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करते रहें।
5: इसके बाद आप शिवजी के आगे में ही बैठकर महामृत्यु जाप और शिव चालीसा का पाठ कर सकते हैं, और इसके बाद आप उस कथा का पाठ करें जो हमने आपको इस आर्टिकल के शुरू में बताई है, यानी कि सोलह सोमवार व्रत कथा का पाठ करें। ध्यान रखें कि इस कथा का पाठ करना आवश्यक है।
6: इसके बाद बारी आती है शिव जी को भोग लगाने की, तो सोलह सोमवार के व्रत में शिव जी को चूरमे का भोग लगाया जाता है। इसके लिए आप आधा किलो गेहूं का आटा लें, और उसमें एक पाव जितना गुड़ मिला दे, और उससे चूरमा बना लें। आपको चूरमा की तीन लड्डू बनानी है, जिसे आपको भगवान शिव को भोग के रूप में अर्पित करना है। इसके बाद आपको एक लड्डू को अपने लिए और एक लड्डू को अपने परिवार के सदस्यों में बांट देना है, और आपको एक लड्डू को शिवजी को ही भोग लगे रहने देना है। ध्यान रहे कि आप अपने परिवार वालों के साथ ही हो ग्रहण करें और आप को भोग वही ग्रहण करना है जहां आपने शिवजी की पूजा की है। इस तरह से आप आसानी से सोलह सोमवार के व्रत को करते हुए प्रत्येक सोमवार को शिव जी की पूजा कर सकते हैं, और बिना किसी परेशानी के अपना यह व्रत पूरा कर सकते हैं।
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सोलह (16) सोमवार व्रत के नियम (16 Monday Vrat Ke Niyam)
सोलह सोमवार के व्रत के कुछ नियम होते हैं अगर आप इन नियमों को पालन करके अपना व्रत पूर्ण करते हैं, तो आपको इससे बहुत ही ज्यादा सौभाग्य की प्राप्ति होती है, और आपको व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है। तो चलिए जानते हैं सोलह सोमवार व्रत के नियमों के बारे में।
1: सोलह सोमवार व्रत करने के दिन सूर्य उदय के दिन जल्दी उठने के बाद आपको पानी में काले तिल डालकर ही स्नान करना चाहिए, इससे आपको अच्छा फल मिलता है।
2: जैसा कि इस दिन आपको भगवान शिव का अभिषेक करना होता है, तब आपको बता दें कि आप बिना मंत्र के उच्चारण के कभी भी शिवलिंग का अभिषेक ना करें, आप शिव जी के किसी भी मंत्र का जाप करते हुए शिवजी का अभिषेक कर सकते हैं।
3: जैसा कि सभी को पता है कि यह व्रत आपको लगातार 16 सोमवार तक करना होता है, तो हम आपको बता दें कि आपको हर सोमवार को एक ही समय में पूजा करनी चाहिए और एक ही समय में प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। आपको कभी भी समय में परिवर्तन नहीं करना है।
4: हम आपको बता दें कि सोलह सोमवार का व्रत करने के दौरान आपको ऐसा प्रसाद ग्रहण करना चाहिए, जिसमें नमक की मात्रा बिल्कुल भी ना हो, यानी की आपको नमक रहित प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।
5: जब आप इस व्रत को करने का संकल्प ले रहे हैं, तो आपको हर सोमवार के दिन किसी विवाहित जोड़े को उपहार देना चाहिए, इससे आपको बहुत ही ज्यादा पुण्य की प्राप्ति होती है आप उपहार में उन्हें कुछ भी दे सकते हैं जैसे कि वस्त्र मिठाई या फिर फल आदि।
6: वैसे तो आमतौर पर शिव जी का अभिषेक गंगाजल से किया जाता है, लेकिन अगर आपकी मनोकामना विशेष है, तो आपको विशेष तरीके से ही शिवजी का अभिषेक करना चाहिए। जिसके लिए आप दही दूध शहद आदि का उपयोग कर सकते हैं।
सोलह (16) सोमवार व्रत में क्या खाना चाहिए (16 Monday Vrat Mai Kya Khana Chiye)?
तो दोस्तों जैसा कि इसमें आपको सोमवार के दिन व्रत रखना होता है तो अब आप सोच रहे होंगे कि इस दिन आप क्या खा सकते हैं, तो हम आपको बता दें कि इस दिन व्यक्ति को अन्न ग्रहण करना निषेध होता है, यानी कि इस दिन आप किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण नहीं कर सकते, लेकिन हां आप फलाहारी कर सकते हैं, तो इसके लिए आप किसी भी प्रकार के फल जैसे कि सेब, अनार, केला, संतरा, आदि खा सकते हैं। कई लोग तो ऐसे होते हैं कि जो कि दिन भर में सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं जिसमें कि वह फल आदि खाते हैं।
सोलह (16) सोमवार व्रत के फायदे (16 Monday Vrat Ke Fayde)
1: तो दोस्तों अगर आप लगातार 16 सोमवार सोमवार तक व्रत करते हैं और पूरे विधि-विधान से व्रत का उद्यापन करते हैं, तो इससे आपको शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, और आपकी सारी मनोकामना पूर्ण होती है।
2: अगर कोई विवाहित जोड़ा है जोकि नि: संतान है और वह सोलह सोमवार व्रत करते है तो उसे जल्द ही एक सर्वगुण संपन्न संतान की प्राप्ति होती है।
3: अगर आपके विवाहित जीवन में कोई समस्या है, आप दोनों के बीच हालात ठीक नहीं है, तो आपको इस कथा का पाठ करना चाहिए, इससे आपकी विवाहित जीवन की सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी।
4: अगर आप सोलह सोमवार का व्रत करते हैं तो इससे आपको धन की कमी नहीं होती है, आपके घर में धन संपत्ति बनी रहती है।
लड़कियां सोमवार का व्रत क्यों करती है?
अगर बात करें लड़कियां सोलह सोमवार का व्रत क्यों करती है, तो हम आपको बता दें कि कोई भी औरत या फिर कुंवारी लड़की अगर सोलह सोमवार का व्रत करती है, तो उन्हें अखंड सौभाग्यवती और अपनी मनपसंद जीवनसाथी प्राप्त होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है, इसलिए लड़कियां सोलह सोमवार का व्रत करती है।
सोलह (16) सोमवार व्रत उद्यापन विधि (16 Monday Vrat Udhyapan Vidhi)
तो दोस्तों अगर आपने सफलतापूर्वक सोलह सोमवार तक व्रत रखकर पूरी विधि से व्रत को पूरा कर लिया है, तो आप 17वे सोमवार के दिन अपने सोलह सोमवार व्रत को विधिपूर्वक उद्यापन कर सकते हैं, जिससे कि आपका व्रत पूरा माना जाता है। तो दोस्तों अगर आप अपने सोलह सोमवार विधि का उद्यापन करना चाहते हैं हम आपको कहेंगे कि आप किसी ज्ञानी पंडित से ही अपने सोलह सोमवार व्रत विधि के उद्यापन का कार्यक्रम करवाएं, क्योंकि उन्हें मंत्री के बारे में अच्छे से जानकारी होती है, लेकिन अगर आपको खुद ही व्रत का उद्यापन करना है तो आप खुद से भी इस तरीके से अपने व्रत का उद्यापन कर सकते हैं।
1: व्रत उद्यापन करने वाले दिन सुबह सूर्योदय से पहले जल्दी उठ जाए और स्नान आदि कार्य करने के बाद सफेद रंग के वस्त्र धारण कर लें।
2: इसके बाद अपने पूजा स्थल में जाएं और पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें और उस स्थान पर केले की मदद से 4 खंभों का मंडप तैयार करें।
3: इस मंडप के चारो ओर आप फूल और आम के पत्ते रख सकते हैं।
4: इसके बाद आपको पूजा की सारी सामग्रियां लेनी है, और उसे लेकर पूर्व दिशा में मुंह करके आसन बिछाकर बैठ जाना है।
5: उसके बाद आपने जो मंडप बनाया है, उसके बीचो-बीच एक चौकी को रखें ,और चौकी के ऊपर एक सफेद रंग का वस्त्र बिछा दें, और वस्त्र के ऊपर भगवान शिव और पार्वती जी के विग्रह को स्थापित करें
6: उस चौकी में किसी पात्र में चंद्रमा जी को भी रखकर भी रख दें।
7: इसके बाद बारी आती है अपने आप को पवित्र करने की, तो इसके लिए सबसे पहले आप अपने हाथ में थोड़ा सा स्वच्छ जल ले, ले और उसके बाद
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥ इस मंत्र का उच्चारण करते हुए इसे पूजा के सभी सामग्रियों के ऊपर छिड़क दें और सभी चीजों को पवित्र कर ले।
8: इतना करने के बाद आपको शिवजी और पार्वती जी की पूजा करनी होती है, जिसके लिए आप शिवजी का अभिषेक कर सकते हैं, और उन्हें कई प्रकार की चीजें जैसे की धतूरा, बेलपत्र, सुपारी, भांग, आदि अर्पित कर सकते हैं। इसके बाद पूजा हो जाने के बाद आप अपना व्रत उद्यापन कर सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि जिस दिन आप अपना व्रत उद्यापन करें उस दिन आपको दिन भर में एक बार ही भोजन करना है, और ऐसा भोजन करना है जिसमें नमक ना हो।
जरूर पढ़े : सावन सोमवार व्रत कथा, व्रत विधि, नियम, कब से शुरू – संपूर्ण जानकारी
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जरूर पढ़े : पूर्णमासी व्रत कथा,फल,नियम PDF Download