अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Vrat Katha PDF Download)

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हमारे हिंदू धर्म में व्रत का एक अलग ही महत्व है, खासकर महिलाएं व्रत को बहुत ही ज्यादा विधि विधान से और सख्त नियमों का पालन करते हुए पूरा करती हैं ताकि उन्हें उस व्रत का पूरा फल मिले। वैसे तो हमारे हिंदू धर्म में एक नहीं बल्कि अनेक व्रत है, जिनका महत्व भी अलग-अलग होता है, लेकिन आज हम इस आर्टिकल में जिस व्रत के बारे में बात करने वाले हैं, उस व्रत का नाम अहोई अष्टमी व्रत है।

तो दोस्तों क्या आपने कभी इस व्रत के बारे में सुना है? अगर नहीं, तो आज के इस आर्टिकल में हम आपको अहोई व्रत और अहोई व्रत कथा के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं, इसलिए अगर आप भी इस व्रत के बारे में जानना चाहते हैं, तो हमारे इस आर्टिकल को आखिरी तक जरूर पड़े, तो चलिए शुरू करते हैं।

दोस्तों अगर बात करें अहोई अष्टमी व्रत की, तो इसे कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है, यह व्रत विशेष तौर पर हमारी माताओ के लिए होता है, क्योंकि इस दिन सभी माताए अपने संतानों की खुशी एवं उनके समृद्ध जीवन की मनोकामना तथा इसे पूरा करने के लिए निर्जला व्रत रखती है, जिसके लिए आज के दिन यानी की अष्टमी व्रत के दिन अहोई माता की पूजा की जाती है। इस दिन माताएं अपने संतानों की सुख प्राप्ति की मनोकामना अहोई माता से करती हैं ताकि उनकी संतान अपने जीवन में हमेशा सुखी रहे, और अहोई माता उनकी संतानों की रक्षा करें, और उनकी आयु भी लंबी हो।

तो अगर आप भी चाहते हैं कि आपकी संतान सुरक्षित रहें, और हमेशा अपने जीवन में सुखी रहे, तो आप भी इस व्रत के दौरान माता की पूजा करके व्रत कर सकते हैं।

इतना ही नहीं इस व्रत के दौरान एक कथा का भी पाठ किया जाता है, जिसे की अहोई अष्टमी व्रत कथा के नाम से जाना जाता है, और इसका पाठ इस दिन बहुत ही ज्यादा विशेष और आवश्यक माना गया है, कहा जाता है कि इसका पाठ किए बिना व्यक्ति को इस व्रत का फल नहीं मिलता, तो चलिए आगे बढ़ते हैं और आपको अहोई अष्टमी व्रत कथा के बारे में बताते हैं।

अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Vrat Katha PDF Download)

यह बात बहुत समय पहले की है, एक नगर था जिसमें की एक बहुत ही अच्छा साहूकार रहा करता था, उस साहूकार का परिवार बहुत ही अच्छे से रह रहा था, जोकि बहुत बड़ा परिवार भी था उस साहूकार के परिवार मे साहूकार के सात लड़के इसी के साथ साहूकार की सात बहुएं और साहूकार की एक बेटी रहती थी। साहूकार का परिवार हर दिपावली से पहले ही अपने घर की मिट्टी से लिपाई पुताई करता था, इस बार भी ऐसा ही हुआ, जब दीपावली का समय आया, तब साहूकार की बेटी ने अपनी सभी भाभियों के साथ जंगल जाकर लिपाई पुताई करने हेतु मिट्टी लाने का फैसला किया, और वह सभी जंगल मिट्टी लेने हेतु चले गए।

स्याहु ने दिया श्राप

जब वह जंगल पहुंचे तो साहूकार की बेटी खुरपी की मदद से मिट्टी निकालने लगी, तब गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी स्याहू के एक बच्चे के ऊपर लग गई, जिसकी वजह से स्याहुं का बच्चा वहीं पर मर गया, इस बात से साहूकार की बेटी बहुत ही ज्यादा दुखी हुई, उसे इस बात का पश्चाताप भी था, लेकिन अपने पुत्र की मृत्यु को देखकर स्याहू को बहुत ही ज्यादा क्रोध आया, और उसने साहूकार की बेटी को कभी भी मां ना बन पाने का श्राप दे दिया, यानी की स्याहू ने साहूकार की बेटी की कोख बांध दी।

छोटी बहु ने अपनी श्राप अपने ऊपर ले लिया

स्याहू के मुंह से ऐसे कटु वचन सुनकर साहूकार की बेटी बहुत ही ज्यादा उदास हो गई, और अपने सभी भाभियों से यह विनती करने लगी की भाभी आप में से कोई मेरी जगह अपनी कोख बंधवा लीजिए, मैं अपनी कोख बांध कर नहीं रखना चाहती, जब साहूकार की बेटी ने अपने सभी भाभियों से यह विनती की, तो उसकी जो सबसे छोटी भाभी थी, वह इस बात के लिए तैयार हो गई, और उसने साहूकार की बेटी की जगह अपनी कोख बंधवा ली।

इसके बाद हुआ यह, की स्याहू से मिले श्राप के वजह से सबसे छोटी वाली भाभी की संतान 7 दिनों में ही मृत्यु को प्राप्त हो गई, इतना ही नहीं वह आगे अगर किसी भी संतान को जन्म देती, तो उसकी मृत्यु सिर्फ 7 दिनों में ही हो जाती। इस बात से वह बहुत ही ज्यादा परेशान हो गई, जिसके बाद उसने एक पंडित से मिलने का फैसला किया, साहूकार की बेटी की सबसे छोटी भाभी ने पंडित से कहा, कि महाराज स्याहू के द्वारा मिले श्राप की वजह से मेरी संतान 7 दिन से ज्यादा जीवित नहीं रह पाती, कृपया आप इसका कोई समाधान बताइए।  पंडित जी ने उन्हें सलाह दी, कि उन्हें सुरही गाय की सेवा करनी चाहिए, इसके बाद पंडित की सलाह को मानते हुए उसने पूरे सच्चे मन से सुरही गाय की पूजा की, कुछ दिन तक यह ऐसे ही चला रहा, एक दिन सुरही गाय उनकी सेवा से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुई, और उन्हें अपने साथ स्याहु की माता के पास चलने को कहती है, गाय और वह दोनों ही स्याहू की माता के पास जाने के लिए निकल जाते हैं।

वह ऐसे जा ही रहे थे, कि बीच में साहूकार की सबसे छोटी बहू यह देखती है कि एक गरुण का बच्चा जिसे सांप मारने की कोशिश कर रहा है, तब वह उस सांप को मार कर गरुड़ के बच्चे को बचा लेती है, इस समय उस गरुण के बच्चे की मां उस स्थान पर आती है, और उस स्थान पर आने के बाद उसे पता चलता है कि साहूकार की सबसे छोटी बहू ने ही उसके बच्चे की जान सांप से बचाकर उसके प्राणों की रक्षा की है। यह सुनकर वह साहूकार की छोटी बहू का बहुत ही ज्यादा धन्यवाद करती है, और उसकी समस्या सुनकर उसे स्याहू की माता के पास ले जाती है।

सबसे छोटी बहू स्याहू की माता के पास पहुंचती है, और जब स्याहू की माता को साहूकार की सबसे छोटी बहू की करुणा, परोपकारिता एवं दयालुता के बारे में पता चलता है, तो वह उनसे बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होती हैं और अपने बेटे के द्वारा दिए गए श्राप को वापस लेकर साहूकार की छोटी बहू को सात संतान प्राप्त होने का वरदान देती है, जिससे कि वह बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होती है। आगे जाकर भविष्य में ऐसा ही होता है, साहूकार की सबसे छोटी बहु को कुल 7 बेटे होते हैं, और उनका परिवार एक खुशहाल परिवार बन जाता है।

तो दोस्तों यह है अहोई अष्टमी व्रत कथा जिसका पाठ आपको व्रत के दौरान जरूर करना चाहिए, जिस प्रकार से इस कथा में आपने देखा कि साहूकार की छोटी बहू को भी सात संतान की प्राप्ति हुई, उसी प्रकार अगर आपकी भी संतान है, और आप इस व्रत को करके इस कथा का पाठ करते हैं, तो आपके भी संतानों को सुखों की प्राप्ति होती है, और उनका जीवन अच्छे से बीतता है, इसलिए कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को इस व्रत को करके इस कथा का पाठ अवश्य करें।

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अहोई अष्टमी व्रत नियम (Ahoi Vrat Katha Niyam)

अगर आप भी अहोई अष्टमी के दिन व्रत करते हैं तो ऐसे कुछ नियम है जिनका आपको पालन करना बहुत ही ज्यादा जरूरी है, ताकि आपको इस व्रत का पूरा-पूरा फल प्राप्त हो सके, तो चलिए एक-एक करके आपको उन सभी व्रत नियमों के बारे में बताते हैं।

  • जिस दिन आप अहोई अष्टमी व्रत को कर रहे हैं, उस दिन आप सुबह जल्दी उठकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके ही इस व्रत कथा का पाठ करने बैठे, और आस पास भी साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।
  • इस दिन आपके व्रत कथा का पाठ करने के दौरान अपने बच्चों को भी अपने साथ इस कथा को सुनाना चाहिए, और कथा समाप्त होने पर उन्हें अहोई माता का आशीर्वाद लेने को कहना चाहिए।
  • इस व्रत के दौरान ध्यान रहे कि घर का कोई भी सदस्य तापसीक भोजन यानी कि लहसुन प्याज और किसी भी नशीले पदार्थ जैसे कि मदिरा आदि का सेवन न करें, और ना ही घर में ऐसी चीज लाए।
  • इस दिन महिलाओं को मिट्टी से जुड़े कार्य भूल कर भी नहीं करना चाहिये।
  • इस दिन आपको अपने बाग बगीचों में भी कार्य नहीं करना चाहिए, और ना ही किसी जीव जंतुओं को कोई नुकसान पहुंचाना चाहिए।
  • इस व्रत के दौरान आपको भूलकर भी काले या फिर नीले रंग के कपड़े नहीं पहने हैं, आप हल्के रंग के कपड़े पहन सकते हैं।
  • इस दिन आपको अहोई माता के साथ गणेश जी और उनके भाई कार्तिकेय जी की भी विधि विधान से पूजा करनी चाहिए, इससे आपको इस व्रत का पूरा फल मिलेगा।

 

अहोई अष्टमी व्रत से क्या फल मिलता है (Ahoi Vrat Katha Ka Kya Fal Milta hai)?

तो अगर बात करें इस व्रत से हमें क्या फल मिलता है, तो इस व्रत से मिलने वाला सबसे बड़ा फल हमारे संतानों की खुशी और उनकी सुरक्षा ही है, क्योंकि इस दिन सभी माताओ द्वारा अपने संतानों की खुशी और उनकी सुरक्षा के लिए ही निर्जला व्रत रखा जाता है, जिसके फल स्वरुप अहोई माता हमारे संतानों की रक्षा करती है, और उनके जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं आती है। साथ ही साथ उनकी आयु भी लंबी होती है। तो अगर आप भी चाहते हैं कि आपके संतान को आगे आने वाले जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या ना हो, और उसे अपनी जिंदगी के हर मोड़ पर खुशी मिले, तो आपको इस दिन विधि विधान से अहोई माता की पूजा करके, निर्जला व्रत रखते हुए तथा कथा का पाठ करते हुए इस व्रत को करना चाहिए, ताकि आपको भी अहोई माता का आशीर्वाद प्राप्त हो, और आपके संतानों का भविष्य उज्जवल हो।

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