तो दोस्तों आप सभी हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) के बारे में तो जानते ही होंगे, और आपको यह तो पता ही होगा कि हनुमान चालीसा में आपको शुरू में दोहा उसके बाद 40 चौपाई और उसके बाद अंतिम में फिर से दोहा देखने को मिलता है। तो आज के इस आर्टिकल में हम आपको उन सभी दोहे और चौपाइयों के भावार्थ और व्याख्या बताने वाले हैं, ताकि आपको हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) के अर्थ के बारे में पूरी जानकारी हो, और आपको यह पता चल सके कि आप रोज जिस हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, आखिर इसका अर्थ क्या होता है। तो चलिए इस आर्टिकल में आगे बढ़ते हैं और जानते हैं हनुमान चालीसा(Hanuman Chalisa) का भावार्थ और व्याख्या।
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दोहा
श्री गुरु चरण सरोज रज,निज मन मुकुरु सुधारी, बरनऊ रघुवर विमल जसु, जो दायक फल चारि।
भावार्थ: इस दोहे का भावार्थ है यह है कि श्री गुरुदेव जीके पवित्र चरण कमल की धूल से मैं अपने मन रूपी दर्पण को निर्मल या कोमल करके, श्री राम जी के उस सुंदर यश का वर्णन करता हूं या करना चाहता हूं, जो चारो फल अर्थात धर्म काम मोक्ष और अर्थ को प्रदान करता है।
व्याख्या: अगर बात करें इस दोहे की व्याख्या की, तो इस दोहे का अर्थ है यह है कि इसमे हमारे मन रूपी दर्पण में चढ़ी हुई मेल के बारे में बताया गया है। वह चढ़ी हुई मैल है शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंधरूपी विषयों की पतवाली। और इस दोहे के माध्यम से हमें यह पता चलता है कि हमारे मन रूपी दर्पण में चढ़ी हुई यह कई अर्थात मैल साधारण रज से साफ नहीं हो सकती, इसके लिए श्री गुरु चरण सरोज रज की ही आवश्यकता है। यानी की गुरुदेव जी के पवित्र चरणों की यानी कि स्वयं महादेव जी के कृपा की। यानी कि महादेव जी की कृपा के बिना श्री राम जी के यश का वर्णन करना संभव नहीं है।
बुद्धिहीन तनु जानी के, सुमिरौ पवन कुमार, बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार
भावार्थ: अगर इस दोहे के भावार्थ की बात करें, तो इस दोहे का भावार्थ यह है कि हे पवन कुमार अर्थात पवन पुत्र हनुमान जी, मैं अपने आपको शरीर और बुद्धि दोनों से ही हीन मानकर आपका ध्यान कर रहा हूं। कृपा करके आप मुझे बल बुद्धि और विद्या देकर मेरे सारे क्लेश यानी की कष्ट और दुखों को दूर करें।
व्याख्या: अगर बात करें इस दोहे की अर्थ की तो इसमें स्वयं पवन पुत्र यानी कि हनुमान जी से यह प्रार्थना की गई है, कि हे पवन पुत्र हनुमान जी, मैं अपने आपको देही न मानने के बजाय देह मान चुका हूं, इसलिए मैं मानता हूं कि मैं मुर्ख हूं। इसलिए मैं पवन पुत्र हनुमान जी से यह आग्रह करता हूं कि वह मुझे बल बुद्धि और विद्या प्रदान करके मेरी इस मूर्खता को दूर करें, और मेरे सारे क्लेश अर्थात मेरे सारे दुख दर्द को हमेशा के लिए दूर कर दें।
चौपाई:1
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
भावार्थ: अगर बात करें इस चौपाई की भावार्थ की तो इसमें ज्ञान और गुण के सागर अर्थात हनुमान जी की जय हो, इसी के साथ-साथ तीनों लोग अर्थात भूलोक, स्वर्ग लोक, और पाताल लोक को अपनी कीर्ति से प्रकाश प्रदान करने वाले कपिश्वर हनुमान जी की जय हो कहां गया है।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हनुमान जी की तुलना सागर से की गई है। इस चौपाई में हनुमान जी को ज्ञान और गुण का सागर कहा गया है, क्योंकि हनुमान जी के अंदर सारे प्रकार के ज्ञान और गुण समाहित है। इस चौपाई के माध्यम से श्री हनुमान जी जिनके अंदर सारे प्रकार के ज्ञान और गुण समाहित है, उनका जयकार किया गया है, क्योंकि हनुमान जी ही है। जोकि तीनों लोगों को अपने कीर्ति से प्रकाशित करते हैं।
चौपाई:2
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥
भावार्थ: हे अतुलित बल के धाम अर्थात अतुलित बल के भंडार राम जी के दूत अर्थात हनुमान जी आप इस पूरे संसार में अंजनी पुत्र और पवनसुत हनुमान के नाम से जाने जाते हैं।
व्याख्या: अगर बात करें इस चौपाई की व्याख्या यानी कि अर्थ की, तो इसमें हनुमान जी को प्रसन्न करने हेतु उन्हें पुकारने हेतु नाम के बारे में बताया गया है, क्योंकि जब किसी से कोई कार्य सिद्ध करवाना होता है, यानी कि किसी को प्रसन्न करना होता है, तो अगर आप उसमें उस व्यक्ति या फिर उन देवता के शुभ परिचित या फिर पूज्य का नाम लेते हैं, तो कार्य सिद्ध होने में देरी नहीं लगती है। इसलिए इस चौपाई के माध्यम से हनुमान जी को प्रसन्न करने हेतु माता अंजनी एवं उनके पिताजी पवन देव का नाम लिया गया है, ताकि हनुमान जी प्रसन्न हो। और हमारा कल्याण हो।
चौपाई:3
महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥
भावार्थ: हे महावीर अर्थात हनुमान जी बजरंगी अर्थात वज्र के समान अंग धारण करने वाले, आप बहुत ही ज्यादा पराक्रमी है। आप कुमति का निवारण करने वाले हैं और इसी के विपरीत सुमति अर्थात सद्बुद्धि के सहायक यानी कि साथ देने वाले हैं।
व्याख्या: जब भी आप किसी देवी देवता को प्रसन्न करना चाहते हैं तब आपको उनके गुणों का वर्णन सर्वप्रथम करना चाहिए। इसलिए इस चौपाई में हनुमान जी के गुणों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि हे महावीर बजरंगबली, आप बहुत ही ज्यादा पराक्रमी है। इस चौपाई के माध्यम से हनुमान जी के इस गुण का भी वर्णन किया गया है, कि हनुमान जी लोगों को संकटों से बचने के लिए उनकी कुमति को दूर करते हैं, ताकि उनके ऊपर कोई संकट ना आ जाए, और इसी के साथ बुद्धिमानो यानी कि सुमति के संगी अर्थात बुद्धिमान लोगों के सहायक एवं साथी हैं, और उनके ऊपर हमेशा कृपा करते हैं।
चौपाई:4
कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४
भावार्थ: हे हनुमान जी आप सुनहरे रंग, सुंदर वस्त्र और इसी के साथ-साथ कानों में कुंडल तथा घुंघराले बालों के साथ बहुत ही ज्यादा सुशोभित हो रहे हैं।
व्याख्या: अगर बात करें इस चौपाई के अर्थ यानी की व्याख्या की, तो इस चौपाई के माध्यम से हनुमान जी की सुंदरता का वर्णन किया गया है। इस चौपाई के माध्यम से कहा गया है कि है हनुमान जी आपके शरीर का सुनहरा रंग साथ ही साथ आपका सुंदर वस्त्र, और कानों में सुंदर कुंडल और इसी के साथ आपका यह घुंघरालू बाल बहुत ही ज्यादा सुंदर दिख रहे हैं, यानी कि यह सारी चीज आपके ऊपर बहुत ही ज्यादा सुशोभित हो रहे हैं।
चौपाई:5
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥
भावार्थ: हे श्री राम भक्त हनुमान जी, आपके हाथों में वज्र के समान कठोर गदा, इसी के साथ-साथ धर्म का प्रतीक ध्वज विराजमान है, और आपके कंधे में मूज का जनेऊ भी सुशोभित है।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से भी हनुमान जी के गुणों का ही वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि हनुमान जी के हाथों में वज्र यानी कि वज्र के समान उनके कठोर गदा इसी के साथ-साथ धर्म का प्रतीक चिन्ह है यानी की ध्वजा विराजमान है। जिससे कि हनुमान जी के गुणों का पता चलता है। क्योंकि हम आपको बता दें कि हाथ में वज्र के समान गदा होना साथ ही साथ ध्वज होना सर्वथा विजय प्राप्त करने वाली की निशानी है, और कंधे में जनेऊ धारण करने का अर्थ है ब्रह्मचारी होना, और यह सारे गुण हनुमान जी के अंदर समाहित है।
चौपाई:6
शंकर सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥
भावार्थ: हे हनुमान जी आप साक्षात महादेव जी के अवतार हैं, जोकी केसरी नंदन के नाम से जाने जाते हैं। आप बहुत ही ज्यादा महान तेजस्वी और प्रतापी हैं और इस सारे जग के द्वारा वंदनीय हैं।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हनुमान जी के गुण को को बताते हुए यह बताया गया है, कि आखिर क्यों हनुमान जी को इस पूरे जग के द्वारा पूजा जाता है। इस चौपाई के माध्यम से बताया गया है की हे हनुमान जी आप साक्षात महादेव जी के ही अवतार हैं, जोकि इस जग में केसरी नंदन के नाम से जाने जाते हैं, और पूजे जाते हैं। क्योंकि हनुमान जी बहुत ही ज्यादा प्रतापी तेजस्वी और महान है।
चौपाई:7
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥
भावार्थ: हे हनुमान जी आप सभी प्रकार के विद्यायो से संपन्न है, इसी के साथ-साथ आप बहुत ही ज्यादा गुणवान और चतुर है। आप हमेशा अपने भगवान श्री राम जी के कार्यों को करने के लिए तत्पर रहते हैं।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से भी हनुमान जी के गुणों का वर्णन किया गया है, इस चौपाई में बताया गया है कि हनुमान जी इस दुनिया के सभी विद्यायों से परिपूर्ण है। वह सभी गुणों को धारण करने वाले हैं, और बहुत ही ज्यादा चतुर भी है। इतना ही नहीं वह अपने भगवान श्री राम जी के सभी कार्यों को करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं, क्योंकि हनुमान जी का जन्म ही श्री राम जी के सभी कार्यों को संपन्न करने के लिए हुआ है, और हनुमान जी इस कार्य को बखूबी पूरा भी करते हैं। इसलिए उन्हें पूजा जाता है।
चौपाई:8
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८
भावार्थ: हे हनुमान जी आप सदा प्रभु श्री राम जी के मंगल कथा को सुनने के लिए तत्पर ललाईत रहते हैं, और उनके कथा में पूरी तरह से मंत्र मुक्त हो जाते हैं। इतना ही नहीं श्री राम, सीता, एवं लक्ष्मण सभी यह आपके हृदय में निवास करते हैं।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से यह बताया गया है कि जहां भी प्रभु श्री राम जी की मंगल कथा होती है, यानी कि जहां भी श्री राम जी का पाठ होता है, वहा हनुमान जी हमेशा उपस्थित होते हैं। यानी कि उस कथा में हनुमान जी मौजूद होते हैं, और उस कथा में पूरी तरह से मंत्र मुक्त हो जाते हैं, और इसी के साथ श्री राम जी, सीता जी, एवं लक्ष्मण जी यह सभी आपके हृदय में बसते हैं, और आप भी इन सभी के हृदय में निवास करते हैं।
चौपाई:9
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भावार्थ: हे पवन पुत्र हनुमान जी, आपने अपना सूक्ष्म रूप धारण करके सीता जी को दिखाया है, इसी के साथ अपना विकराल रूप धारण करके रावण के लंका को भी जला कर राख किया है।
व्याख्या: चौपाई के माध्यम से हमें हनुमान जी के इस गुण के बारे में पता चलता है, कि हनुमान जी के अंदर अति सूक्ष्म तथा अति विस्तृत होने की क्षमता है। यानी कि वह बहुत ही ज्यादा सूक्ष्म रूप धारण कर सकते हैं और पारीस्थिति आने पर अपना विकराल रूप भी इस दुनिया को दिखा सकते हैं। उन्होंने अपना सूक्ष्म रूप धारण करके सीता जी को दिखाया भी है, और विकराल रूप धारण करके लंका को भी जला दिया है, और लंका को जलाने के लिए पराक्रम की आवश्यकता थी इसलिए हनुमान जी ने अपना विकराल रूप धारण करके लंका को भस्म किया।
चौपाई:10
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥
भावार्थ: हे पवन पुत्र हनुमान जी आपने भीम रूप यानी की बहुत ही ज्यादा विशाल और भयानक रूप धारण करके कई सारे राक्षसों का वध किया है, और श्री राम जी के कार्यों को सावरा है, यानी कि श्री राम जी के कार्यों को पूरा किया है।
व्याख्या: अगर बात करें इस चौपाई के अर्थ यानी की व्याख्या की, तो इस चौपाई के माध्यम से भी हमें हनुमान जी के गुणों के बारे में ही पता चलता है। इसमें बताया गया है कि हनुमान जी बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली है, और इसी शक्ति का इस्तेमाल करके उन्होंने विशाल और भयानक रूप धारण करके कई सारे दानवो का वध किया है, और बुराई को नष्ट किया है। इतना ही नहीं उन्होंने श्री राम जी के कार्यों को करने के लिए कभी भी इनकार नहीं किया है, वह हमेशा राम जी के कार्यों को खुशी से पूर्ण करते हैं। इसलिए तो उन्हें श्री राम जी का परम भक्त कहा जाता है।
चौपाई:11
लाय सजीवन लखन जियाए ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
भावार्थ: हे हनुमान जी जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे, तब आप ही ने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जीवन प्रदान किया था। जिसकी वजह से श्री राम जी ने आपको अपने गले से लगा लिया था।
व्याख्या: आपको यह तो मालूम ही होगा कि हनुमान जी को लक्ष्मण जी का प्राणदाता भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को नया जीवन प्रदान किया था। इस चौपाई के माध्यम से उनके इसी कार्य की प्रशंसा की गई है। जिसमें कहा गया है कि हे हनुमान जी जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे, तब आप ही ने द्रोणाचल पर्वत में जाकर अनेक कष्ट का सामना करके असंभव कार्य को संभव करते हुए समय के अंदर ही जड़ी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को नया जीवन प्रदान किया था। जिससे कि स्वयं श्री राम जी के आंखों में भी आंसू आ गए थे, जो की खुशी के आंसू थे और उन्होंने आपको अपने गले से लगा लिया था।
चौपाई:12
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२
भावार्थ: रघुपति अर्थात स्वयं श्री राम जी आपकी बहुत ही ज्यादा प्रशंसा कि उन्होंने कहा कि तुम भरत के समान ही मुझे प्रिय हो।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से बताया गया है कि हनुमान जी श्री राम जी के कितने ज्यादा प्रिय भक्त हैं, क्योंकि पूरे दुनिया के द्वारा पूजे जाने वाले श्री राम स्वयं भरत जी के नाम का जाप करते हैं, इससे आप अंदाजा लगा ही सकते हैं कि भरत श्री राम जी के कितने ज्यादा प्रिया होंगे। इसलिए इस चौपाई के माध्यम से बताया गया है कि हनुमान जी श्री राम जी के कितने ज्यादा प्रिय भक्त हैं, क्योंकि इसमें कहा गया है कि श्री राम जी हनुमान जी को भरत के समान ही प्रिय मानते हैं। श्री राम जी के इस कथन के माध्यम से इस चौपाई में हनुमान जी के प्रति श्री राम जी की महिमा का वर्णन किया गया।
चौपाई:13
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥
भावार्थ: श्रीपति अर्थात स्वयं श्री राम जी ने आपको यह कह कर अपने हृदय से लगा लिया, कि आपका यश तो हजार मुख वाले शेष जी से भी सराहनीय रहेगा।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हनुमान जी के प्रशंसा का वर्णन किया गया है, इस चौपाई का अर्थ है पवन पुत्र हनुमान जी जो कि इतने ज्यादा शक्तिशाली, महान, तपस्वी, और पराक्रमी है। उनकी प्रशंसा हजारों मुख से होती रहे, ऐसा कह कर स्वयं श्री राम जी ने हनुमान जी को अपने हृदय से लगा लिया।
चौपाई:14
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥
भावार्थ: श्री सनातन, ब्रह्मा जी, नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी, आदि कई प्रकार के ऋषि मुनि सभी आपके यश का गुणगान करते हैं।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से भी हमें हनुमान जी के गुण और उनके पराक्रम और उनके चरित्र के बारे में जानकारी मिलती है। इस चौपाई के माध्यम से कहा गया है कि स्वयं ब्रह्मा जी, नारद जी, और सरस्वती जी, इतना ही नहीं शेषनाग भी हनुमान जी के गुणगान करते हैं, यानी कि वह सभी उनके यश का गुणगान करते हैं, और क्यों ना करें आखिर हनुमान जी हैं ही इतने पराक्रमी महान और बलवान।
चौपाई:15
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
भावार्थ: स्वयं यमराज, कुबेर और सभी दिशाओं के रक्षक और इसी के साथ-साथ बड़े से बड़े विद्वान कवि भी आपके यश का सही वर्णन एवं समस्त वर्णन नहीं कर सकते हैं।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हनुमान जी की महानता को बताया गया है, इस चौपाई के अर्थ की बात करें, तो इसका अर्थ है कि स्वयं यमराज, कुबेर और सभी दिशाओं के रक्षक, इतना ही नहीं बड़े से बड़े विद्वान और कवि गढ़ भी हनुमान जी का गुणगान करने में असमर्थ हैं। अर्थात हनुमान जी का यश अवर्णनीय है। इसलिए इनके यश का वर्णन कोई भी नहीं कर सकता है। बड़े से बड़े देवी देवता भी इनके यश का वर्णन करने में असमर्थ है तो हम भला क्या चीज है।
चौपाई:16
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६
भावार्थ: हे हनुमान जी आपने स्वयं बाली के भाई अर्थात वानर राज सुग्रीव का बहुत ही ज्यादा उपकार किया है, उन्हें श्री राम से मिलकर इतना ही नहीं बल्कि बाली के मृत्यु के बाद उन्हें राज पद भी दिलाकर।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हमें हनुमान जी के पराक्रम के बारे में जानकारी मिलती है। इस चौपाई में हमें बताया गया है कि किस प्रकार से वानर राज सुग्रीव अपने ही भाई बाली से डरा हुआ रहता था, और उसका हरण कर लिया गया था। जिसके बाद राम भक्त हनुमान जी ने ही सुग्रीव की मित्रता श्री राम जी से करवाई थी, और उसके बाद श्री राम जी ने ही सुग्रीव को उसका छूटा हुआ राज्य वापस दिलाया, और उसे राज्य पद वापस किया, और यह सब सिर्फ और सिर्फ हनुमान जी के वजह से ही संभव हो पाया। हनुमान जी के बिना ना तो सुग्रीव श्री राम जी से मिल पाता, और ना ही उसे उसका राज पाठ वापस मिलता।
चौपाई:17
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥
भावार्थ: आपका आदर्श मूल मंत्रों को विभीषण ने भी माना है, यानी कि ग्रहण किया है, और उसी के बल बोट पर ही विभीषण लंका के राजा बन गए, और यह बात पूरा संसार जानता है।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हमें हनुमान जी के महिमा के बारे में पता चलता है। इस चौपाई के माध्यम से हमें बताया गया है, कि किस प्रकार से हनुमान जी ने विभीषण को शरण दिया, और उन्हें अपने मूल मंत्रों को बताया, इतना ही नहीं विभीषण ने हनुमान जी के इन मूल मंत्रों को ग्रहण भी किया, और इसी के वजह से वह लंका का राजा बन पाया, और इस बात को सिर्फ हम नहीं बल्कि यह पूरा संसार जानता है। तो इससे हमें हनुमान जी के महिमा के बारे में यह पता चलता है, कि कैसे हनुमान जी की कृपा से कोई साधारण व्यक्ति भी राजा बन सकता है।
चौपाई:18
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
भावार्थ: हे हनुमान जी आपने अपने बचपन के समय में ही 2000 योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को एक मीठे फल की भांति अपने मुंह पर धारण करके निगल लिया था।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से भी हमें हनुमान जी की शक्तियों के बारे में पता चलता है, इस चौपाई का अर्थ हनुमान जी के बचपन से संबंधित है। क्योंकि हनुमान जी को बचपन से जन्म के समय से ही आठ सिद्धियां प्राप्त थी, वह आसमान में जितना ऊपर चाहे उतना ऊपर उड़ सकते थे। इतना ही नहीं वह अपने शरीर का आकार को अपने मन के मुताबिक छोटा या बड़ा कर सकते थे। हनुमान जी की शक्तियों के बारे में हमें तब पता चलता है, जब वह 2000 योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को एक मीठा फल समझकर उसे खाने की इच्छा में निगल गए थे। तो इससे हमें यह पता चलता है कि हनुमान जी बचपन से ही बहुत ही ज्यादा तेजस्वी बुद्धिमान और बलवान थे।
चौपाई:19
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
भावार्थ: आप अपने भगवान श्री राम जी के आज्ञा का पालन करने हेतु श्री राम जी के अंगूठी को अपने मुंह पर धारण करके 100 योजन तक फैले हुए समुद्र को भी लांघ गए थे, लेकिन आपकी महानता को देखते हुए आपके लिए कोई बड़ी या आश्चर्य की बात नहीं है।
व्याख्या: जैसा कि हमने आपको ऊपर के चौपाई में यह बताया था कि हनुमान जी को जन्म से ही आठ सिद्धियां प्राप्त थी, जिससे कि वह आसमान में जितना चाहे ऊपर उड सकते थे, और अपना आकार छोटा और बड़ा कर सकते थे। इस चौपाई के माध्यम से हमें हनुमान जी के शक्तियों के बारे में पता चलता है कि, किस प्रकार से श्री राम जी के एक आज्ञा का पालन करने हेतु हनुमान जी राम जी की अंगूठी को अपने मुख में धारण करते हुए 100 योजन के समुद्र को भी लांघ गए थे, ताकि वह उनकी अंगूठी को माता सीता तक पहुंचा सके। इससे हमें हनुमान जी के शक्ति और उनके कर्तव्य परायणता के बारे में पता चलता है।
चौपाई:20
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०
भावार्थ: हे हनुमान जी आप इतने ज्यादा महान हैं कि हमारी दुनिया में जितने भी प्रकार के कठिन कार्य हैं, वह सिर्फ और सिर्फ आपकी कृपा से ही सरल हो पाते हैं।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हमें हनुमान जी की कृपा के बारे में पता चलता है, कि कैसे किस प्रकार से हमारे इस दुनिया में कठिन से कठिन कार्य भी हनुमान जी की कृपा से सरल लगता है। अगर हनुमान जी की कृपा ना हो, तो सरल से सरल कार्य भी हमें कठिन लगने लगेगा, और इस दुनिया में सबसे कठिन कार्य है मोक्ष की प्राप्ति करना, यानी कि सभी मोह माया से दूर जाना, और यह सभी कार्य हनुमान जी की कृपा के बिना असंभव है।
चौपाई:21
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
भावार्थ: हे श्री राम भक्त हनुमान जी, आप ही श्री राम जी के दरबार के रखवाले हैं, और आप ही उनके दरबार के द्वारपाल भी हैं। आपके अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति लाख कोशिश करके भी श्री राम जी के दरबार में प्रवेश नहीं कर सकता।
व्याख्या: यह चौपाई की मदद से हमें हनुमान जी की शक्तियों के बारे में पता चलता है, कि किस प्रकार से उनकी अनुमति के बिना कोई भी श्री राम जी के दरबार में प्रवेश नहीं कर सकता, क्योंकि हनुमान जी ही श्री राम जी के दरबार के रखवाले हैं, और द्वारपाल हैं। तो इसलिए जब तक हनुमान जी की कृपा यानी कि हनुमान जी की अनुमति नहीं होगी, तब तक किसी भी व्यक्ति को श्री राम जी की कृपा प्राप्त नहीं होगी। इसलिए श्री राम जी की कृपा प्राप्त करने से पहले हनुमान जी की कृपा प्राप्त करना जरूरी है।
चौपाई:22
सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥
भावार्थ: जो भी आपकी शरण में आता है, उस व्यक्ति को इस दुनिया के सारे सुख प्राप्त हो जाते हैं, और आप जिस व्यक्ति की रक्षा करते हैं उस व्यक्ति को दुनिया में किसी भी चीज का भय नहीं रहता है।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हमें हनुमान जी की महानता और उनके महिमा के बारे में पता चलता है। इस चौपाई में कहां गया है कि जो भी व्यक्ति हनुमान जी की शरण में आता है, यानी कि जो जिस व्यक्ति के ऊपर हनुमान जी की कृपा होती है, उस व्यक्ति को इस दुनिया के सारे परम सुख प्राप्त होते हैं। चाहे वह सुख अभीदैविक हो अभीभौतिक हो या आध्यात्मिक हो। इतना ही नहीं जो व्यक्ति हनुमान जी के शरण में आते हैं, उस व्यक्ति की रक्षा हनुमान जी हमेशा करते हैं, और यह सब को मालूम है कि जिस व्यक्ति की रक्षा स्वयं हनुमान जी करते हैं, उस व्यक्ति को किसी भी संकट से घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम रक्षक काहू को डरना।
चौपाई:23
आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥
भावार्थ: हे हनुमान जी आप अपने शक्ति पराक्रम बल और तेज को स्वयं ही संभाल सकते हैं, और दूसरा कोई इसे संभाल नहीं सकता। इतना ही नहीं आपके सिर्फ एक हुंकार मारते ही तीनों लोक अर्थात स्वर्ग लोक, पाताल लोक, भी लोक भय से काप उठते है।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हमें हनुमान जी की शक्तियों के बारे में पता चलता है। जिसमें कहा गया है कि हनुमान जी में इतनी ज्यादा ताकत इतना ज्यादा पराक्रम और इतनी ज्यादा तेज है, कि उसे सिर्फ वही संभाल सकते हैं। उनके इन शक्ति को संभालने की क्षमता ना ही किसी देवता में है, और ना ही किसी दानव में है। तो हम मनुष्य भला क्या चीज है। इतना ही नहीं हनुमान जी की गर्जना ही इतनी ताकतवर होती है कि उनके हुंकार मात्र से ही तीनों लोक में खलबली मच जाती है, और सभी लोग कांपने लग जाते हैं।
चौपाई:24
भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४
भावार्थ: जब लोग आपके महावीर नाम का उच्चारण करते हैं, तो महावीर का नाम सुनते ही भूत पिशाच आदि कोई भी व्यक्ति के निकट नहीं आता है।
व्याख्या: जैसा कि आपको मालूम है कि हनुमान जी को महावीर के नाम से भी जाना जाता है। तो इस चौपाई के माध्यम से हमें हनुमान जी के इस नाम की ताकत के बारे में पता चलता है, कि हनुमान जी के नाम में ही इतनी ज्यादा ताकत है, कि उनका महावीर नाम का जाप करने से ही कोई भी बुरी शक्ति या फिर भूत पिशाच हमारे निकट नहीं आते है। महावीर के नाम से सभी भूत पिशाच डर कर दूर भागते हैं, और कोई भी संकट हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाता है। इसलिए आपको भी हमेशा महावीर नाम का जाप करते रहना चाहिए।
चौपाई:25
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
भावार्थ: जो भी मनुष्य हनुमान जी के नाम का निरंतर जाप करता है, हनुमान जी उस व्यक्ति के सारे रोग और सारी पीड़ा हर लेते हैं।
व्याख्या: इस चौपाई में फिर से हनुमान जी के नाम के जाप करने के महत्व के बारे में बताया गया है, इसमें कहा गया है कि जो भी मनुष्य हनुमान जी के नाम का जाप करता है, उसे अपने जीवन में कभी भी किसी प्रकार की समस्या नहीं होती। क्योंकि हनुमान जी उस व्यक्ति के सारे रोग और सारी पीड़ा हर लेते हैं। हनुमान जी के नाम का जाप करने से दैहिक दैविक और भौतिक सभी प्रकार की पीड़ा दूर होती है।
चौपाई:26
संकट तै हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥
भावार्थ: हे हनुमान जी आप इतने ज्यादा महान है कि अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से और सच्चे हृदय से आपकी आराधना करें, तो आप इस व्यक्ति को उसके सारे संकटों से मुक्ति दिला देते हैं।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हमें व्यक्ति के मन के बारे में पता चलता है, इसमें कहा गया है कि जो भी व्यक्ति जो सोचता है और जो बोलता है और फिर वही कार्य करता है वही सच्चा मनुष्य होता है, और ऐसे मनुष्य से हनुमान जी सदा प्रसन्न होते हैं, और उस व्यक्ति को हनुमान जी उसके सारे संकटों से मुक्ति दिलाते हैं। लेकिन इसी के विपरीत अगर कोई व्यक्ति सोचता कुछ और है बोलता कुछ और है और कर्म कुछ और करता है, तो ऐसे व्यक्ति के ऊपर हनुमान जी कभी भी अपनी कृपा नहीं दिखाते हैं, और उसकी रक्षा भी नहीं करते हैं।
चौपाई:27
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥
भावार्थ: हे हनुमान जी आपने उन प्रभु के समस्त कार्यों को पूरा किया है, जो कि इस पूरे जगत के राजा हैं यानी कि स्वयं श्री राम जी।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हमें हनुमान जी के भक्ति और महिमा के बारे में पता चलता है, क्योंकि राम जी के वनवास के दौरान राम जी को जंगल का राजा बताया गया है जिसमें वह मुनिवेश धारण किए हुए थे। और हनुमान जी ही उनके उस यात्रा के साथी थे और हनुमान जी ने ही श्री राम जी के सारे कार्यों को सुंदर तरीके से संपन्न करते हुए श्री राम जी को और हमारी पूरी दुनिया को अपनी भक्ति परायणता का सबूत दिया है।
चौपाई:28
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८
भावार्थ: हे हनुमान जी आप इतने ज्यादा महान है, कि आपके पास कोई भी व्यक्ति अगर कोई मनोरथ कामना या इच्छा लेकर आता है, तो वह जरूर ही पूरी होती है। इतना ही नहीं उसे जीवन भर के लिए आपकी भक्ति भी प्राप्त होती है।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हमें यह पता चलता है कि अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन से हनुमान जी के पास अपनी इच्छा लेकर जाता है, तो हनुमान जी अपने उस भक्त की इच्छा जरुर पूरी करते हैं। इतना ही नहीं अगर किसी व्यक्ति को श्री राम जी एवं सीता जी के चरणों की भक्ति प्राप्त करनी है, तो उसके लिए हनुमान जी की अनुमति आवश्यक है। यानी कि हनुमान जी की कृपा से ही आपको सीताराम जी की भक्ति प्राप्त हो सकती है। जोकि आपका जीवन फल होता है।
चौपाई:29
चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
भावार्थ: हे हनुमान जी आप इतने ज्यादा महान है कि चारों युग अर्थात सतयुग, द्वापर युग, कलयुग, और त्रेता युग। यह सारे युग आपके प्रताप से प्रकाशित होते आए हैं और यही हमारे लोक में प्रसिद्ध भी है।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से भी हमें हनुमान जी के महानता के बारे में पता चलता है। इस चौपाई का अर्थ यह है कि चाहे कोई भी युग हो, अर्थात सतयुग हो या द्वापर युग हो या कलयुग हो या चाहे त्रेता युग हो, उन सभी में हनुमान जी विराजमान रहेंगे ही, और उनका प्रताप हर युग को प्रकाशवान करता रहेगा। यानी कि उनका यश हर युग में फैला होगा। हर युग में हनुमान जी का राज होगा, और हर युग में हनुमान जी को पूजा जाएगा।
चौपाई:30
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥
भावार्थ: हनुमान जी आप राम जी के बहुत ही ज्यादा प्रिय हैं, क्योंकि आप सभी साधु संत लोगों की रक्षा करते हैं, और इसी के विपरीत आप सभी राक्षसों का संहार भी करते हैं।
व्याख्या: जो भी व्यक्ति सच का साथ देता है और बुराई को दूर करता है, वह श्री राम जी को बहुत ही ज्यादा प्रिय होते हैं। इसी तरह हनुमान जी भी हमेशा अच्छाई यानी की साधु संत लोगों की रक्षा करते हैं, और बुराई यानी की राक्षसों और दानवो का संहार करते हैं। इसलिए यह श्री राम जी के बहुत ही ज्यादा प्रिय है। इसका तात्पर्य यह है कि अगर आपको श्री राम जी की कृपा पानी है, तो इसके लिए सबसे पहले आपको हनुमान जी की कृपा प्राप्त करना आवश्यक है।
चौपाई:31
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥
भावार्थ: हे हनुमान जी माता जानकी ने आपको जन्म से यह वरदान दिया है कि आप अपने भक्तों को आठ सिद्धियां और नौ निधिया प्रदान करने में समर्थ होंगे।
व्याख्या: जैसा कि आप सभी को मालूम है कि हनुमान जी को जन्म के समय से ही आठ सिद्धियां और नौ निधिया प्राप्त है, जिनकी मदद से वह कई प्रकार के कार्य कर सकते है। किंतु उन सभी आठ सिद्धियां और नौ निधियो को अपने भक्तों तथा दूसरे व्यक्तियों को प्रदान करने की क्षमता उन्हें माता जानकी की वजह से ही मिली है। क्योंकि उन्होंने ही हनुमान जी को यह वरदान दिया है ताकि वह अपने भक्तों का कल्याण कर सकेंगे।
चौपाई:32
राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२
भावार्थ: हे हनुमान जी अनंत काल से ही आप भगवान श्री राम जी के दास है और आप ही के पास ही उनका राम नाम रूपी रसायन अर्थात औषधी मौजूद है। जो हमेशा आपके पास बनी रहेगी।
व्याख्या: तो दोस्तों आपको यह तो मालूम ही होगा कि अगर किसी औषधि का निर्माण होता है, तो उसकी सिद्धि के बाद ही उसे रसायन का रूप दिया जाता है। इस तरह राम नाम रूपी रसायन भी है, जिसकी सिद्धि पहले ही हो चुकी है, क्योंकि यह नाम रूपी रसायन हनुमान जी के पास पहले से ही उपलब्ध है, इसलिए इसकी सिद्धि की जरूरत आपको नहीं है। यानी की श्री राम नाम का जाप करने से आपको बहुत ही ज्यादा फायदे होंगे और इस बात पे कोई शक नहीं है।
चौपाई:33
तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
भावार्थ: हे हनुमान जी आपके भजन को करके लोग श्री राम जी को प्राप्त कर लेते हैं, क्योंकि आप ही उनके परम भक्त हैं। इतना ही नहीं आपके भजन को करके लोगों को अपने सभी जन्म-जन्मांतर के दुखों से भी मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
व्याख्या: यहां अगर हम देखें तो भजन का तात्पर्य गाने बजाने वाले भजन से नहीं, बल्कि सेवा करने से है। क्योंकि हनुमान जी राम जी के बहुत बड़े सेवक है, वह हमेशा राम जी की सेवा पर तत्पर रहते हैं, और श्री राम जी को ही नहीं किसी भी देवी देवता को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए निस्वार्थ भाव से उनकी सेवा करना आवश्यक है। जो की हनुमान जी ने बखूबी किया है। इसलिए अगर आप भी श्री राम जी को प्राप्त करना चाहते हैं, यानी कि उनकी कृपा प्राप्त करना चाहते हैं। तो उसके लिए आपको श्री राम जी की हनुमान जी जैसी सेवा करनी होगी।
चौपाई:34
अंतकाल रघुवरपुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥
भावार्थ: जब व्यक्ति का अंत समय आएगा, तब वह प्रभु के पार धाम जाएगा, लेकिन अगर उसे फिर से जन्म लेना भी पड़े, तो वह हरि भक्त के रूप में जन्म लेगा और श्री राम का भक्ति कहलाएगा।
व्याख्या: जो भी व्यक्ति भगवान की सेवा या फिर भजन करता है, उसे हरि भक्त की प्राप्ति होती है, और अंत समय में वह प्रभु के धाम जाता है। लेकिन अगर उसे पुनर्जन्म लेना भी पड़ता है, तो वह कोई सी तीर्थ स्थान पर जन्म लेता है, और प्रभु की भक्ति ही करता है। यानी कि श्री राम जी की भक्ति करता है, और श्री राम भक्त कहलाता है। इसलिए मनुष्य को हमेशा भगवान की सेवा और भजन करना चाहिए, ताकि उसे राम भक्त बनने का अवसर मिले।
चौपाई:35
और देवता चित्त ना धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
भावार्थ: हे हनुमान जी आप इतने ज्यादा महान है कि कोई भी व्यक्ति अन्य देवताओं को अपने हृदय में रखे बिना ही, सिर्फ आपकी सेवा करके ही जीवन के तमाम खुशियों को हासिल कर लेता है।
व्याख्या: इस चौपाई के द्वारा हमें हनुमान जी से मिलने वाली चीजों के बारे में बताया गया है। जैसा कि हमने आपको बताया था कि हनुमान जी को बचपन से ही अष्ट सिद्धि एवम नौ निधियां प्राप्त थी। लेकिन इस चौपाई से हमें पता चलता है कि हनुमान जी से अष्ट सिद्धि और 9 निधियों के अलावा हमें भक्ति और मोक्ष भी प्राप्त हो सकता है। इस चौपाई के द्वारा हमें यह कहा गया है, कि मनुष्य को अपने छोटे से जीवन में जगह-जगह नहीं भटकना चाहिए, क्योंकि मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष यह चारों चीज हनुमान जी से ही प्राप्त की जा सकती हैं, और रही बात सुख की तो वह तो हनुमान जी के बिना संभव ही नहीं है।
चौपाई:36
संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६
भावार्थ: हे हनुमान जी जो भी व्यक्ति आपको सच्चे मन और सच्चे हृदय से याद करता है, या स्मरण करता है, उस व्यक्ति के सारे संकट दूर हो जाते हैं, साथ ही साथ उस व्यक्ति की सारी पीड़ा भी समाप्त हो जाती है।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हमें जीवन के अंत के बारे में पता चलता है, जीवन में सिर्फ वही मनुष्य खुश रहता है जिसे जीवन मरण की यातना ना हो और जीवन मरण की यातना से दूर जाने के लिए इस बंधन से दूर सिर्फ हमें हनुमान जी ही ले जा सकते हैं। यानी कि हनुमान जी की कृपा से ही हम इन सभी बंधनों से दूर जा सकते हैं, क्योंकि हनुमान जी ही एक मात्र ऐसे देवता है, जो कि हमें इस मोह माया और बंधनों से दूर सभी संकट और पीड़ा को दूर करते हुए सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त करते हैं।
चौपाई:37
जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥
भावार्थ: हे हनुमान जी आपकी जय हो, जय हो, जय हो, आप भी गुरुदेव की भांति हम पर कृपा कीजिए।
व्याख्या: इस चौपाई के मदद से हमें गुरु और शिष्य के बीच के संबंध को बताया गया है, जैसे कि एक गुरु हमेशा अपने शिष्य का कल्याण चाहता है, और हमेशा उसके कल्याण के कार्य में लगा रहता है। इस तरह इस चौपाई में हनुमान जी से आग्रह किया गया है, कि हे हनुमान जी आप भी गुरुदेव की भांति हम पर कृपा कीजिए, यानी कि हमारा कल्याण कीजिए।
चौपाई:38
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥
भावार्थ: जो भी व्यक्ति इस हनुमान चालीसा का 100 बार पाठ करता है, उस व्यक्ति को सारे कष्ट और इस दुनिया के सारे बंधनों से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है, और उसे महान सुख की भी प्राप्ति होती है।
व्याख्या: इस चौपाई की सहायता से हमें हनुमान चालीसा के महत्व के बारे में पता चलता है, इस चौपाई के माध्यम से यह बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी बंधन से परेशान है, या उसे कोई कष्ट है, तो उसे इस हनुमान चालीसा का पाठ दिन में 100 बार करना चाहिए। जिससे कि उसे इस दुनिया के तमाम बंधनों से मुक्ति मिलती है, साथ ही साथ उसके सारे कष्ट भी समाप्त होते हैं। इतना ही नहीं उस व्यक्ति को अपने जीवन में तमाम खुशियों की भी प्राप्ति होती है। तो इसलिए अगर आप भी किसी बंधन से बंधे हुए हैं तो आपको भी हनुमान चालीसा का पाठ 100 बार करना चाहिए।
चौपाई:39
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
भावार्थ: भगवान शिव जी स्वयं इस बात के साक्षी है कि जो भी व्यक्ति इस हनुमान चालीसा का पाठ करेगा, उसे निश्चित रूप से सिद्धियों और निधियां की प्राप्ति होगी।
व्याख्या: इस चौपाई के माध्यम से हमें यह विश्वास दिलाया गया है कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से हमें निश्चित रूप से सिद्धियां और निधियों की प्राप्ति होती है, और यहां शिवजी के साक्षी होने का अर्थ यह है कि तुलसीदास जी ने शिव जी से प्रेरणा लेकर ही हनुमान चालीसा की रचना की थी, इसका मतलब यह है कि शिव जी का पूरा आशीर्वाद हनुमान चालीसा में है। इसलिए आपको निश्चित रूप से ही हनुमान चालीसा का पाठ करने का फायदा होगा, इसलिए आपको हनुमान चालीसा का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए।
चौपाई:40
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०
भावार्थ: हे हनुमान जी तुलसीदास जी हमेशा के लिए आपके भगवान श्री राम जी के सेवक हैं, यह समझकर उनके हृदय में निवास करे।
व्याख्या: जैसा कि आप सभी को मालूम है कि हनुमान चालीसा की रचना तुलसीदास जी ने की है, और पूरे चालीसा में उन्होंने हनुमान जी की स्तुति की है। तो इस चौपाई के माध्यम से तुलसीदास जी हनुमान जी से वरदान मांगना चाह रहे हैं, कि हे हनुमान जी मैं श्री राम जी का भक्त हूं, और आपकी ही तरह उनका सेवक भी हु यह समझ कर आप कृपा करके मेरे हृदय में निवास करें। यानी की स्तुति के पश्चात तुलसीदास जी हनुमान जी से अपने हृदय में निवास करने हेतु वरदान मांग रहे हैं।
दोहा
पवन तनय संकट हरण,मंगल मूर्ति रूप।
राम लखन सीता सहित,हृदय बसहू सुर भूप।।
भावार्थ: जय हनुमान जी आप सारे संकट को हरने वाले हैं, और आप कल्याण की साक्षात मूर्ति हैं। अतः आपसे प्रार्थना है कि आप राम जी लक्ष्मण जी एवं सीता जी के साथ मेरे हृदय में निवास करें।
व्याख्या: इस दोहे के माध्यम से हमें हनुमान जी के हृदय में निवास करने के बारे में बताया गया है। जैसा कि सभी को मालूम है कि भक्तों के हृदय में भगवान निवास करते ही हैं। इसलिए अगर भक्त को हम अपने हृदय में बसा लेते हैं, तो प्रभु स्वयं ही हमारे हृदय में आ जाएंगे, और अगर बात करें श्री राम जी के भक्त की, तो हनुमान जी से बड़ा भक्त श्री राम जी का कोई हो ही नहीं सकता है। इसलिए हनुमान जी के बिना श्री राम जी लक्ष्मण जी एवं सीता जी तथा इन तीनों के बिना हनुमान जी का हमारे हृदय में निवास करना संभव नहीं है। इसलिए इस दोहे के माध्यम से हनुमान जी से यह प्रार्थना की गई है, कि वह श्री राम जी, सीता जी, और लक्ष्मण जी के साथ खुद भी हमारे हृदय में निवास करें।
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