हरतालिका तीज व्रत कथा, विधि, नियम, फायदे PDF Download in Hindi

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दोस्तों स्वागत है आपका आज के हमारे एक और नए आर्टिकल में, तो दोस्तों आप सभी ने शिव जी और पार्वती जी से संबंधित कई प्रकार के व्रत और व्रत कथा सुने होंगे, जैसे कि सावन सोमवार व्रत कथा 16 सोमवार व्रत कथा आदि, लेकिन क्या आपने कभी हरतालिका व्रत कथा के बारे में सुना है? अगर नहीं, तो आज के इस आर्टिकल में आपको हरतालिका तीज व्रत कथा के बारे में जानकारी मिलने वाली है, आज के इस आर्टिकल में मैं आपको बताऊंगा कि हरतालिका व्रत कथा क्या है इसका महत्व क्या है, और इसका नाम हरतालिका व्रत कथा क्यों रहा रखा गया।

इतना ही नहीं इसी के साथ में आपको हरतालिका तीज के व्रत कथा के बारे में भी बताऊंगा, और यह भी बताऊंगा कि आप हरतालिका तीज के दिन व्रत रखकर कथा का पाठ करके पूरी विधि विधान से कैसे शिव जी और पार्वती जी की पूजा कर सकते हैं। तो आज के इस आर्टिकल में आपके लिए खासकर अगर आप एक महिला है तो बहुत कुछ है, इसलिए हमारे इस आर्टिकल को आखिरी तक जरूर पढ़ें, तो चलिए आगे बढ़ते हैं, और शुरू करते हैं और जानते हैं हरितालिका तीज व्रत और व्रत कथा के बारे में।

हरतालिका तीज व्रत क्या है (Hartalika Teej Vrat Kya Hai)?

दोस्तों अगर बात करें हरतालिका व्रत क्या है, तो हम आपको बता दें कि हरतालिका व्रत को तीज व्रत या फिर तीजा व्रत के नाम से भी जाना जाता है। जिसे की भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हस्त नक्षत्र के दिन मनाया जाता है। इस दिन खासकर महिलाएं व्रत रखती हैं, आपने करवा चौथ के व्रत के बारे में तो सुना ही होगा, जिसमें कि महिलाओं को दिन भर व्रत रखना होता है, जिसमें कि वह रात को चांद को देखकर अपना व्रत तोड़ती है।

लेकिन हम आपको बता दें, कि हरतालिका तीज व्रत करवा चौथ के व्रत से भी बहुत ही ज्यादा कठिन होता है, ऐसा इसलिए, क्योंकि इसमें जो भी व्यक्ति यह व्रत करता है, उसे दिन भर में अन्न का एक दाना और पानी की एक बूंद भी ग्रहण करना निषेध होता है, और अगर बात करें व्रत के उद्यापन यानी की व्रत को खोलने की, तो हरतालिका तीज व्रत में व्रत के अगले दिन पूजन के बाद ही आप व्रत खोल सकते हैं, यानी कि एक दिन आपको पूरी तरह से बिना खाना और पानी के बिना रखकर इस व्रत को करना होता है।

दोस्तों हम आपको बता दें की इस व्रत को ज्यादातर महिलाएं या फिर कुंवारी लड़कियां ही करती हैं, वह इस व्रत के दौरान भगवान शंकर और पार्वती जी की पूजा करती है, क्योंकि हम आपको बता दें कि हरतालिका व्रत शिव जी और पार्वती जी से ही संबंधित है। हम आपको बता दें कि इस व्रत की शुरुआत पार्वती जी ने ही की थी, पार्वती जी ने इस व्रत को शिव जी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए किया था। आप इसके बारे में और अच्छे से तब जान पाएंगे जब आप इस आर्टिकल को पूरा पढ़ेंगे, क्योंकि हम इस आर्टिकल में इस व्रत की कथा के बारे में भी बताएंगे, जिससे कि आपको इस व्रत के बारे में पूरी जानकारी हो जाएगी।

इस व्रत को शादीशुदा महिलाएं अपने पति के लंबी उम्र के लिए रखती हैं, और मान्यता है कि अगर कोई कुंवारी लड़की हरतालिका तीज का व्रत करती है, तो उसे उसका मनचाहा वर मिलता है। तो ऐसे में कुंवारी लड़कियां मन चाहे वर की चाह में इस व्रत को करती हैं, और शिव जी और पार्वती जी की पूजा करती हैं। तो अगर आप भी हरतालिका तीज के व्रत को करना चाहते हैं, और व्रत कथा का पाठ करना चाहते हैं, तो चलिए आगे बढ़ते हैं और आपको हरितालिका व्रत कथा के बारे में बताते हैं।

हरतालिका तीज व्रत कथा (Hartalika Teej Vrat Katha)

तो दोस्तों जैसा कि आपको 16 सोमवार के व्रत और सावन सोमवार के व्रत में सुनने वाले व्रत कथा के बारे में तो पता ही होगा। जिसका पाठ करना या फिर जिसे सुनना व्रत के दिन अनिवार्य होता है। तो अगर बात करें हरतालिका तीज व्रत कथा की, तो हम आपको बता दें कि इसका इस कथा का भी महत्व उतना ही है जितना की 16 सोमवार व्रत और सावन सोमवार व्रत कथा का होता है। अगर आप हरतालिका तीज के दिन व्रत रखते हैं, और शिव पार्वती जी की पूजा करते हैं तो उस दिन आपको अनिवार्य रूप से इस कथा का पाठ करना चाहिए। कहा जाता है कि इस कथा का पाठ करें बिना आपके व्रत का पूरा फल नहीं मिलता, इसलिए जरूरी है कि आप इस कथा का पाठ करें। तो चलिए उस कथा के बारे में आपको बताते हैं ताकि आप बिना किसी परेशानी के इस कथा का पाठ कर सकें।

माता सती ने यज्ञ में कूद कर किया खुद को भस्म

तो दोस्तों जैसा कि ऊपर हमने आपको यह पहले ही बता दिया है, कि यह तीज का व्रत भगवान शिव और पार्वती जी से संबंधित है। तो इस कथा के माध्यम से हमें शिव जी और पार्वती जी के माध्यम से ही पता चलता है कि कैसे कठिन तपस्या करके पार्वती जी ने शिव जी को फिर से अपने पति के रूप में प्रति किया। बहुत समय पहले की बात है, जब शिव जी और सती माता बहुत ही खुशी से रहा करते थे। एक दिन सती माता के पिता जी ने एक यज्ञ का आयोजन किया था, उन्होंने उस यज्ञ के लिए सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया था। सभी देवी देवता यज्ञ में पहुंचे भी थे, लेकिन सती माता के पिता जी को शिव जी पसंद नहीं थे, इसलिए उन्होंने शिव जी को अपने इस यज्ञ के लिए आमंत्रित नहीं किया था।

इस बात से सती माता बहुत ही ज्यादा नाराज हुई, और वह यज्ञ के स्थान पर गई, उन्होंने अपने पिता जी से पूछा कि आपने शिव जी को इस यज्ञ में आमंत्रित क्यों नहीं किया है, इसके बाद सती माता के पिता जी ने शिव जी के बारे में भला बुरा कह दिया, जिससे की सती माता बहुत ही ज्यादा क्रोधित और बहुत ही ज्यादा दुखी हो गई, और उन्होंने अपने पिता के यज्ञ में ही कुदकर अपने आपको पूरी तरह से भस्म कर लिया। जब शिव जी वहां पहुंचे, तो वह यह देखकर बहुत ही ज्यादा क्रोधित हो गए, और माता के जले हुए शरीर को लेकर तांडव करने लगे। कहा जाता है कि इसी दौरान सती माता के अंग हमारे देश के विभिन्न विभिन्न 51 क्षेत्रों में गिरे थे, और इसी कारण से इन 51 स्थानो पर माता के अंग गिरे थे, वहां पर शक्तिपीठों का निर्माण किया गया, जोकि आज के समय में बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है। जिसके दर्शन के लिए लोग लाखों की संख्या में शक्तिपीठ जाते हैं।

अगले जन्म में सती माता की बाली पार्वती माता

इसके बाद हुआ यह था, कि सती माता ने अगले जन्म में उन्होंने हिमाचल जी के यहां पार्वती जी के रूप में जन्म लिया था। हम आपको बता दें की पार्वती जी बचपन से ही शिव जी को पति के रूप में चाहती थी, इतना ही नहीं वह बचपन से ही शिव जी को अपना पति मान चुकी थी, और किसी भी हालत में शिव जी को हर जन्म के लिए अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थी। पार्वती माता बचपन से ही शिव जी की तपस्या करने में लीन रहती थी, क्योंकि उन्हें शिव जी अपने पति के रूप में चाहिए थे, जिसके लिए वह हिमालय के गंगा तट पर बैठकर हरतालिका तीज का व्रत भी किया करती थी, और इस दौरान वह अन्न का एक भी दाना और जल का एक भी बूंद भी ग्रहण नहीं करती थी, भोजन के रूप में वह सिर्फ सूखे पत्ते ही चबाया करती थी।

विष्णु जी से विवाह करने हेतु नारद मुनि का प्रस्ताव

एक दिन की बात है की पार्वती जी यूं ही शिव जी की तपस्या में लीन थी, जिसके कारण उनके पिता हिमाचल जी को पार्वती जी की यह हालत देखी नहीं गई, जिसके लिए उन्होंने ऋषि मुनि नारद जी से सलाह लेना सही समझा, और उन्होंने नारद मुनि से पार्वती जी के इस स्थिति के बारे में बात की। इसके बाद हुआ यह, की नारद जी ने कहा कि आप आपकी पुत्री पार्वती जी का विवाह विष्णु जी से करवा दें। जब पार्वती जी के पिता जी ने यह बात सुनी, तो वह बहुत ही ज्यादा खुश हो गए, कि उनका विवाह स्वयं विष्णु जी से होने वाला है, उन्होंने तुरंत ही इस प्रस्ताव के लिए हां कर दी।

जिसके बाद नारद जी पार्वती जी और उनके पिता के पास विष्णु जी से विवाह का प्रस्ताव लेकर आए, लेकिन जैसा कि हमने आपको बताया कि पार्वती जी तो बचपन से ही शिव जी को अपना पति मान चुकी थी, वह किसी भी हालत में शिव जी के अलावा किसी से भी विवाह नहीं कर सकती थी। इसलिए उन्होंने नारद जी के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया, और विष्णु जी से विवाह करने हेतु मना कर दिया।

पार्वती जी की सखियां में पार्वती जी का अपहरण

दोस्तों पार्वती जी बचपन से ही शिव जी को पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थी, और उनका विष्णु जी से विवाह करने का मन नहीं था, यह बात उनकी सखी भली-भांति जानती थी। इसलिए पार्वती जी की सखियों ने यह फैसला लिया कि हम पार्वती जी को एक घने जंगल में ले जाएंगे, यानी कि उनका अपहरण करके हम उन्हें जंगल में ले जाएंगे ताकि वह विष्णु जी से विवाह न कर पाए। क्योंकि वह जानते थे कि पार्वती जी शिव जी के बिना नहीं रह पाएगी इसलिए उन्होंने वैसा ही किया। वह पार्वती जी का अपहरण करके उन्हें एक घने जंगल में ले गए, और इस घने जंगल में उन्हें शिव जी की तपस्या करने को कहा।

जंगल में ही पार्वती जी ने किया हरतालिका व्रत।

हम आपको बता दे कि इस तरह से पार्वती माता उस घने जंगल में ही निवास करने लगी, जब भाद्रपद माह का शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि का हस्त नक्षत्र का दिन आया, यानी कि जिस दिन हरतालिका तीज का व्रत किया जाता है, उस दिन पार्वती जी ने घने जंगल के बीच एक गुफा में बैठकर रेत और मिट्टी की मदद से एक शिवलिंग का निर्माण किया, और उसके बाद उन्होंने हरतालिका व्रत किया, और साथ ही साथ कथा का पाठ भी किया। उन्होंने पूरे दिन तक अन्न और जल का एक दाना भी ग्रहण नहीं किया। रात होने पर उन्होंने रात्रि जागरण भी किया, और पूरी विधि विधान से शिव जी की पूजा करती रही।

शिव जी ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में किया स्वीकार

ऐसा पार्वती जी ने एक या दो साल नहीं बल्कि पूरे 12 वर्षों तक किया। तब जाकर उन्हें उनकी मेहनत का फल मिला, 12 वर्ष की कठिन परिश्रम के बाद शिव जी पार्वती जी के इस तपस्या से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुए, और उन्होंने पार्वती जी को दर्शन दिया, और उन्हें अपनी पत्नी स्वरूप शिकार किया, और आखिरकार 12 वर्ष की इतनी कठिन परिश्रम और तपस्या करने के बाद पार्वती जी ने शिव जी को दोबारा पति के रूप में प्राप्त कर लिया।

तो दोस्तों वैसे तो इस व्रत को करना उतना भी आसान नहीं है जितना कि आपको लगता होगा, लेकिन हम आपको बता दें कि अगर आप पूरी विधि विधान से इस व्रत को करते हैं, और साथ ही इस व्रत कथा का पाठ करते हैं, तो आपकी भी हर मनोकामना शिव जी पूर्ण करते हैं। इतना ही नहीं, जिस प्रकार से पार्वती जी ने इस व्रत का पाठ करके कठिन परिश्रम से शिव जी को पति के रूप में प्राप्त कर लिया, इस तरह अगर कोई महिला इस व्रत का पाठ पूरी विधि विधान से करती है, और इस कथा का पाठ करती है। तो उसे भी उसके मन चाहे वर का वरदान प्राप्त होता है, और इसी के साथ अगर कोई शादीशुदा महिला इसे करें तो उसे उसकी पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता है।

तो दोस्तों आप भी इस बात का ध्यान रखें कि आप जब भी हरतालिका व्रत करें, तो हमारे द्वारा बताए गए इस कथा का पाठ जरूर करें। तो चलिए कथा के बारे में तो बात कर ली, अब आपको हरतालिका तीज व्रत के पूजा विधि के बारे में भी पूरी जानकारी दे देते हैं, ताकि आप पूरी विधि विधान से शिव और पार्वती जी की पूजा करके इस कथा का पाठ कर सकें।

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हरतालिका तीज व्रत का नाम हरतालिका क्यों पड़ा?

दोस्तों हम आपको शुरू से ही हरतालिका, हरतालिका, कहकर इस व्रत के बारे में बता रहे हैं। तो इससे पहले कि हम आपको आगे इस व्रत की विधि के बारे में बताएं, उससे पहले आप यह जान ले की आखिर इसका नाम हरतालिका क्यों पड़ा। दोस्तों जैसा कि ऊपर हमने कथा में आपको बताया था, कि पार्वती जी की मन की बात को जानकर पार्वती जी की सखियों ने उनका अपहरण करके उन्हें जंगल की ओर ले आया था, और जंगल में ही पार्वती जी ने शिव जी को प्राप्त करने के लिए यह व्रत किया था।

तो हम आपको बता दें, इसी घटना के कारण ही इस व्रत का नाम हर तालिका पड़ा था। ऐसा इसलिए, क्योंकि हर का मतलब होता है अपहरण, और तालिका का मतलब सखी होता है। पार्वती जी की सखियों के द्वारा पार्वती जी को अपहरण करके जंगल में ले जाने के कारण ही इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत रखा गया।

हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि (Hartalika Teej Vrat Puja Vidhi)

तो दोस्तों अगर आप भी हारतालिका तीज व्रत रखते हैं, और चाहते हैं कि इस दिन व्रत करके विधि विधान से कथा का पाठ करके विधि विधान से ही अपने व्रत को खोलें ताकि आपको शिव जी और पार्वती जी दोनों की कृपा प्राप्त हो। तो इसके लिए आपको सभी चीजों को सही तरीके से करना बहुत ही ज्यादा जरूरी है, तो चलिए आपको हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि के बारे में बताते हैं, ताकि आप सभी कामों को अच्छी तरह से करके आसानी से अपने व्रत को पूरा कर सकें।

1: दोस्तों आपको जिस दिन यह व्रत करना है यानी की भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र के दिन, आपको सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाना है, और आपको अच्छे से स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके तैयार हो जाना है।

2: इसके बाद आपको अपने पूजा स्थान पर जाना है, और शिव जी और पार्वती जी की प्रतिमा को अपने सामने रख उनकी आराधना करनी है, और आपको उस दिन निर्जला व्रत रखने का संकल्प लेना है। ध्यान रहे की एक बार संकल्प लेने के बाद आपको किसी भी हालत में इस व्रत को पूरा करना होगा।

3: हम आपको बता हैं कि इस दिन यानी कि हरतालिका तीज व्रत वाले दिन भगवान शिव पार्वती और गणेश जी की पूजा करने का महत्व है, इस दिन प्रदोष काल में यानी कि जब दिन और रात के मिलने का समय होता है यानी कि शाम के समय, महिलाओ को रेत या फिर काली मिट्टी की मदद से भगवान शिव पार्वती और गणेश जी की मूर्तियां बनाना होता है। तो आप सोलह श्रृंगार करके इन मूर्तियों का निर्माण कर लें।

4: इसके बाद आपको पांच फूलों को लेकर उसे गुथकर उसे एक माला का निर्माण करना है, इसे फुलेरा कहते हैं, और इस व्रत के दिन फुलेरा का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है। इस फुलेरा को बनाकर अपने पूजा स्थान पर रखें, और इस फुलेरा के बीच में थोड़ी सी रंगोली डालकर उसमें एक लकड़ी की चौकी रख दें।

5: इतना करने के बाद आपको उस लकड़ी के चौकी में एक साथ्या का निर्माण करना है, और उसके बाद आपको उस चौकी के ऊपर एक पात्र को रख देना है।

6: इतना करने के बाद आपको उस पात्र में केले के पत्ते रखकर एक मंडप तैयार करना है, और उस केले के पत्तों के ऊपर आपने जो मिट्टी की मदद से शिव पार्वती और गणेश जी की मूर्ति तैयार की है, उन्हें बिठा देना है।

7: इसके बाद आपको कलश का निर्माण करना होगा जिसके लिए आप एक लोटा ले लें, और उसके ऊपर नारियल रख दें। याद रहे की नारियल में पहले ही लाल रंग का नाडा बांध दे। उसके बाद उस नारियल को उस लोट के मुंह पर रखकर उस पर एक सथ्या निर्माण करे और उसमें थोड़े से चावल अर्पित करें।

8: दोस्तों इसके बाद सबसे पहले आपको कलश की पूजा करनी है, उसके बाद आपको भगवान गणेश की पूजा करनी है उसके बाद शिव जी की और माता पार्वती की पूजा करनी है।

9: गणेश जी की पूजा करने के लिए सबसे पहले उन्हें जनेऊ और धुर्वा चढ़ाएं, उसके बाद शिव जी की पूजा करने के लिए शिव जी का अभिषेक करें, जिसके इसलिए आप दूध, दही, घी, शहद आदि का उपयोग कर सकते हैं। इसके बाद आपको शिव जी को धतूरा, बेलपत्र, बेल का फल, आंख का पुष्प, चंदन, मौली, अक्षत, चंदन, अबीर, आदि  समर्पित करें।

10: इसके बाद आपको पार्वती माता की पूजा करनी है, इसके लिए आप माता पार्वती को सुहाग की सारी चीज अर्पित करें जैसे कि कुमकुम, बिंदी, हल्दी, कंघी, चूड़ी, आदि। ध्यान रहे की पूजा समाप्त होने के बाद आपको इन सभी चीजों को ब्राह्मण को दान देना है।

11: इसके बाद आपको शिव जी और पार्वती जी और गणेश जी को फल या फिर मिठाई का भोग का लगाना है, और उनके आगे एक घी का दीपक जलाना है, जिसके बाद आपको हमने जो ऊपर हरतालिका कथा के बारे में बताया है, आपको उसका पाठ करना है। ध्यान रहे की इस कथा का पाठ करने के बाद आपको शिव चालीसा और पार्वती चालीसा का भी पाठ करना है।

12: इसके बाद आपको रात के समय में भी शिव जी पार्वती जी और गणेश जी की पूजा करनी होती है, आपको रात्रि जागरण करना होता है, ध्यान रखें कि आप रात को ना सोए। रात भर में भी आपको पूजा और आरती करते रहना चाहिए, आपको शिव पार्वती और गणेश जी के अलावा अन्य देवी देवताओं के भी उनके भी भजन करने चाहिए।

13: इसके बाद जब आप रात्रि जागरण कर लेते हैं, उसके बाद सुबह उठकर आपको फिर से स्नान करना होता है, स्वच्छ वस्त्र धारण करना होता है, जिसके बाद आपको शिव जी और पार्वती जी की आखिरी बार पूजा करनी होती है। जिसके दौरान आपको माता पार्वती को सिंदूर अर्पित करना होता है। अगर आप एक सुहागन स्त्री है, तो उस सिंदूर से अपना सुहाग लेना ना भूले।

14: इसके बाद आपको शिव जी और पार्वती जी को ककड़ी और हलवे का भोग लगाना होता है, और इस बात का ध्यान रखें कि भोग लगाए हुए ककड़ी और हलवे को खाकर ही अपना व्रत खोलें। आप चाहे तो पानी पीकर भी अपना व्रत खोल सकते हैं।

15: यह सब क्रिया संपन्न करने के बाद यहीं पर आपका व्रत का उद्यापन हो जाता है, इसके बाद आप पूजा के सभी सामग्रियों सहित देवी देवताओं की प्रतिमा को जाकर नदी में विसर्जित कर सकते हैं।

हरतालिका तीज व्रत में क्या खाना चाहिए (Hartalika Teej Vrat Mai Kya Khana Chiye)?

दोस्तों वैसे तो आपने अभी तक जो भी व्रत किए हैं उनमें आप दिन में एक बार अन्न ग्रहण या फिर फलाहारी तो करते ही होंगे, और उसमें आप जल का सेवन तो दिन भर में करते ही होंगे। लेकिन अगर बात करें हरतालिका तीज व्रत में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, तो हम आपको बता दें, कि इस व्रत को निर्जला व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यानी कि इस दिन आपको अन्न तो ग्रहण नहीं करना है, साथ ही साथ आपको दिनभर में पानी भी नहीं पीना है। वैसे तो अगर आपको स्वास्थ्य से संबंधित कोई समस्या हैं, या फिर आप गर्भवती महिला है। तब आप दिन भर में पानी और फलों का सेवन कर सकते हैं, वरना आपकी सेहत और आपके बच्चे दोनों पर ही बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

बाकी के व्रत में तो आप शाम को अपना व्रत तोड़ देते हैं, लेकिन इस व्रत में आपको 24 घंटे तक बिना कुछ खाए पिए व्रत को करना पड़ता है। व्रत के अगले दिन सुबह शिव जी और पार्वती जी की पूजा करने के बाद ही आप कुछ खाकर या पीकर अपना व्रत खोल सकते हैं। इसलिए इस व्रत को हमारे हिंदू धर्म में बहुत ही बड़ा और बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है, इसलिए इस व्रत को करना कठिन भी होता है।

हरितालिका व्रत विधि नियम (Hartalika Teej Vrat Ke Vidhi and Niyam)

दोस्तों अगर आप भी हरतालिका व्रत रखकर इस कथा का पाठ करना चाहते हैं, तो हम आपको बता दें कि इसके लिए ऐसी कई चीजे हैं जिसका आपको ध्यान रखना जरूरी है, तभी जाकर आपको इस कथा का पाठ करके तथा व्रत रखकर इसका पूरा फल मिल पाता है। तो चलिए जानते हैं कुछ ऐसी बातें जिसे आपको इस व्रत को करने से पहले ध्यान रखना चाहिए।

1: दोस्तों अगर आप भी हरतालिका व्रत करना चाहते हैं, तो हम आपको बता दें कि इस व्रत के दौरान आपको ना ही अन्न का एक दाना ग्रहण करना होता है, और ना ही जल की एक बूंद ग्रहण करनी होती है। यानी कि इसमें आपको निर्जला व्रत रखना होता है। अगले दिन गौरीशंकर की पूजा करने के बाद ही आप जल या फिर अन्न ग्रहण कर सकते हैं।

2: ध्यान रहे कि आप हरतालिका व्रत तभी शुरू करें, जब आप इसे हर वर्ष विधि विधान से पूरा कर सके। क्योंकि अगर एक बार आपने हरतालिका व्रत को शुरू कर दिया, तो आप इसे चाह कर भी नहीं छोड़ सकते, आपको इसे हर वर्ष विधि विधान से पूरा करना ही होगा।

3: तो दोस्तों अगर आप भी हरतालिका व्रत करने के बारे में सोच रहे हैं, तो हम आपको बता दें कि इस व्रत के दौरान आपको रातीजागा करना पड़ता है, यानी कि आपको रात भर जगना होता है, और देवी देवताओं के भजनों और शिव पार्वती की पूजा करनी होती है।  इसलिए इस रात को भूलकर भी ना सोए, ताकि आपको इस व्रत का पूरा फल मिल सके।

4: एक और बात अगर आप एक महिला है, और इस व्रत को कर रहे हैं। तो आपको इस बात का ध्यान रखना है की व्रत के दौरान आपको किसी के ऊपर भी क्रोध नहीं करना है, आपको संयम से कम लेते हुए इस व्रत को पूरा करना है।

5: जिस दिन आप हरतालिका का निर्जला व्रत रखते हैं, उस दिन आपको मांस मदिरा और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए। घर के सदस्यों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह मांस और शराब का सेवन न करें, इसी के साथ आपको प्याज लहसुन जैसी चीज भी नहीं खानी चाहिए, यानी कि आपको पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

6: दोस्तों जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया था कि इस व्रत को महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए करती हैं। तो इस दौरान आपको अपने पति से किसी भी बात पर वाद विवाद नहीं करना चाहिए, आपको जितना हो सके इस व्रत को शांतिपूर्वक पूरा करना चाहिए।

हरतालिका व्रत के फायदे (Hartalika Teej Vrat Ke Fayde)

दोस्तों अगर बात करें हर तालिका तीज व्रत के फायदे की, तो हम आपको बता दें कि इस व्रत से आपको एक नहीं बल्कि अनेकों फायदे होते हैं, क्योंकि यह व्रत सीधे तौर पर शिव जी और पार्वती जी से संबंधित होता है। इसलिए अगर आप हरतालिका तीज का व्रत करते हैं, और व्रत वाले दिन कथा का पाठ करते हैं, और पूरे विधि विधान से शिव जी और पार्वती जी की पूजा करते हैं, तो इससे शिव जी और पार्वती जी बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होते हैं, और आपको अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

इस व्रत को जो भी महिला पूरी विधि विधान से पूरी करती है, उसे शिवजी उसके पति के लिए दीर्घायु और उसे अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इतना ही नहीं, अगर कोई कुंवारी लड़की व्रत को करती है, और दिनभर में अन्न और जल ग्रहण न करके इस कथा का पाठ करती है, तो उन्हें उनका मनचाहा वर प्राप्त होता है। तो इस तरह से इस व्रत को करके हर वह मनोकामना पूरी होती है जो आप चाहते हैं। तो इसलिए अगर आप भी चाहते हैं कि आपको भी यह सारे फायदे हो, और आपकी भी मनोकामना शिव जी पूर्ण करें। तो आप भी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में आने वाले इस हरतालिका तीज व्रत को करके कथा का पाठ करते हुए इस व्रत को हमारे द्वारा बताए गए तरीके से पूरा कर सकते हैं।

हरतालिका तीज व्रत का  उद्यापन कैसे करे (Hartalika Teej Vrat Ka Udhyapan Kaise Kare)?

तो दोस्तों जैसे कि किसी भी व्रत को विधि-विधान से शुरू करना जरूरी होता है, उसी प्रकार से उसे उद्यापन यानी कि पारण करना भी बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है, तभी जाकर आपको उस व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है। तो अगर आप भी हरतालिका तीज व्रत कर रहे हैं और अगर आपको नहीं मालूम है कि आप अपने व्रत का पारण किस प्रकार से कर सकते हैं, तो चलिए आगे बढ़ते हैं और आपको हर तालिका तीज व्रत के पारण करने की विधि के बारे में बताते हैं।

1: दोस्तों जैसा कि सभी को मालूम है कि हरतालिका व्रत 24 घंटे तक किया जाता है, जिसमें की पानी और अन्न ग्रहण नहीं करना होता, 24 घंटे बाद अगले दिन ही इस व्रत का पारण किया जाता है।

2: अगले दिन व्रत का पारण करने के लिए रात्रि जागरण करने के बाद आप सुबह सूर्य उदय होने से पहले स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर ले।

3: इसके बाद आप वापस से अपने पूजा स्थान पर जाएं जहां अपने गौरीशंकर की पूजा की थी, वहां जाकर आप पार्वती जी को सिंदूर अर्पित करें, और उसे अपना सुहाग ले। उसके बाद शिव पार्वती जी को भोग में खीरा ककड़ी हलवा आदि अर्पित करें।

4: इतना करने के बाद आपको भोग को छोड़कर पूजा की सारी सामग्री और मिट्टी से बनी मूर्तियों को नदी या फिर तालाब में विसर्जित करना है, उसके बाद आप भोग में लगे कड़ी खीरे या फिर हलवे को भोग के रूप में ग्रहण करके अपना व्रत खोल सकते हैं। तो इस प्रकार से आप 24 घंटे के बाद इस व्रत को आसानी से खोल यानी कि पारित कर सकते हैं।


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