परिवर्तनी एकादशी व्रत कथा,फायदे,व्रत विधि,नियम,उद्यापन,क्या खाना चाहिए PDF Download

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दोस्तों स्वागत है आपका आज के हमारे एक और नए आर्टिकल में, तो दोस्तों वैसे तो अभी सावन का महीना चल रहा है, इस महीने में सभी लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं, और कर भी रहे हैं। तो दोस्तों आप सभी भगवान शिव के व्रत तो करते ही होंगे, सिर्फ महादेव ही नहीं, आप सभी देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए व्रत तो करते ही होंगे, और उस व्रत के दौरान आप एक कथा का भी पाठ करते होंगे, जिसे की उस व्रत की व्रत कथा कहा जाता है। तो दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम ऐसे ही एक व्रत और व्रत कथा के बारे में बात करने वाले हैं। तो दोस्तों हम बात कर रहे हैं परिवर्तनी एकादशी की, तो दोस्तों क्या आपने इससे पहले कभी परिवर्तनी एकादशी के बारे में सुना था। हो सकता है कि आप में से कई लोगों को इस व्रत के बारे में पता हो, लेकिन अगर नहीं पता, तो आज के हमारे इस आर्टिकल को पूरा पढ़ने के बाद आपको इस व्रत के बारे में पूरी जानकारी मिल जाएगी। क्योंकि इस आर्टिकल में हम आपको परिवर्तनी एकादशी के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं। इतना ही नहीं, आज के इस आर्टिकल में हम आपको परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा के बारे में भी बताएंगे, जिसका पाठ आप इस व्रत के दौरान करेंगे। इसके अलावा इस व्रत के नियम इस व्रत के फायदे, और अन्य बातें भी आपको इस आर्टिकल में जाने को मिलेगी, इसलिए आर्टिकल को आखिरी तक जरूर पढ़ें, तो चलिए आगे बढ़ते हैं और शुरू करते हैं।

परिवर्तनी एकादशी क्या है (Parivartini Ekadashi Kya Hai)?

तो दोस्तों अगर बात करें परिवर्तनी एकादशी की, तो हम आपको बता दें कि यह भी एकादशी की तरह ही है, बस इसे हम परिवर्तनी एकादशी या फिर वामन एकादशी के नाम से जानते हैं। इसके अलावा इसे हम पद्मा एकादशी के नाम से भी जानते हैं। तो दोस्तों अगर बात करें यह क्यों मनाया जाता है, तो हम आपको बता दें कि इस दिन हम भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करते हैं, और आप सभी को भगवान विष्णु के वामन अवतार के बारे में तो पता ही होगा, जो कि विष्णु जी का 10वा अवतार है, जो की एक बौने बच्चे के रूप में था, उनकी पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन वामन अवतार की पूजा करने से व्यक्ति को बहुत ही ज्यादा सौभाग्य की प्राप्ति होती है, और उसे विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अगर बात करे की इसे कब मनाया जाता है, तो हम आपको बता दें कि हर वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को इसे मनाया जाता है,। इस दिन व्रत रखकर वामन अवतार की पूजा की जाती है, साथ ही साथ व्रत कथा का पाठ किया जाता है। कहा जाता है की व्रत कथा का पाठ करे बिना आपको इस व्रत का फल नहीं मिलता, इसलिए इस आर्टिकल में हमने आपको इस व्रत यानी की परिवर्तनी एकादशी के व्रत की व्रत कथा के बारे में भी बताया है, जिसका पाठ आप व्रत के दौरान कर सकते है। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और उस कथा के बारे में जानते हैं।

परिवर्तनी एकादशी व्रत कथा (Parivartini Ekadashi Vrat Katha in Hindi)

तो दोस्तों अगर बात करें परिवर्तनी एकादशी की व्रत कथा की, तो हम आपको बता दें की व्रत के दौरान इस कथा का पाठ करना उतना ही ज्यादा जरूरी है, जितना कि सावन महीने में शिव जी की पूजा करना। तो दोस्तों अगर बात करें परिवर्तनी एकादशी व्रत कथा की, तो हम आपको बता दें कि हम जो आपको आगे कथा बताने वाले हैं, वह कोई ऐसी वैसी कथा नहीं है, बल्कि हम जो आपको कथा बताने वाले हैं, वह स्वयं भगवान श्री कृष्ण जी ने युधिष्ठिर को बताई थी, यानी कि श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर को बताएं गई कथा को ही हम आगे आपको बताने वाले हैं, इसलिए इस कथा को ध्यान पूर्वक पढ़ें, और व्रत के दौरान इसका पाठ अच्छे से करें।

दोस्तों एक बार की बात है, जब श्री कृष्ण जी और युधिष्ठिर एक साथ थे, तब युधिष्ठिर के मन में एक सवाल आया, जो की भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को मनाए जाने वाले परिवर्तन एकादशी को लेकर था, जिसके बाद युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण जी को कहा, कि हे भगवान, कृपया करके आप मुझे इस एकादशी व्रत के महत्व और इसकी पूजा विधि के बारे में विस्तार से बताएं, ताकि मैं भी इसकी महिमा के बारे में जान सकूं।

युधिष्ठिर के इस बात को सुनकर श्री कृष्ण जी ने मुस्कुराते हुए युधिष्ठिर से कहा, कि चलो ठीक है परिवर्तनी एकादशी जिसे की पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, जो की बहुत ही ज्यादा पवित्र और पापा का नाश करने वाली है, उसके महत्व के बारे में मैं तुम्हें बताता हूं, तुम ध्यान से सुनना। इतना कहने के बाद श्री कृष्ण जी ने युधिष्ठिर को इस व्रत कथा के बारे में बताते हुए कहा

हे युधिष्ठिर यह परिवर्तनी एकादशी है, जिसे की भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है, और इस दिन भगवान विष्णु के 10वे अवतार जो की वामन अवतार है, उनकी पूजा की जाती है, श्री कृष्ण जी ने युधिष्ठिर को यह भी बताया, कि जो भी व्यक्ति इस दिन वामन अवतार की पूजा करता है, उसे तीनों लोको की पूजा करने जितना फल मिलता है। अगर बात करें इस व्रत की कथा की, तो इस व्रत की कथा त्रेता युग की है, उस समय बालि नाम का एक दैत्य राज रहता था, जिसने की अपने बल का इस्तेमाल करके चारों तरफ आतंक मचा रखा था, उसने अपने ताकत का गलत इस्तेमाल करके सभी देवी देवताओं को परेशान कर रखा था, यहां तक कि उसने इंद्रदेव के स्वर्ग लोक पर भी कब्जा कर लिया था। सभी देवी देवता बलि से बहुत ही ज्यादा परेशान हो चुके थे

इसके बाद हुआ यह की सभी देवी देवता बली से परेशान होकर भगवान विष्णु जी के पास मदद हेतु गए, और सभी घटना के बारे में भगवान विष्णु को बताया। भगवान विष्णु ने देवी देवताओं की समस्या सुनी, इसके बाद भगवान विष्णु ने इंद्रदेव को उनका स्वर्ग लोक वापस लौटाने तथा देवी देवताओं को बलि के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए अपना वामन अवतार धारण किया, जो की एक ब्राह्मण बौने कद काठी का था।

उस समय की बात है जब बलि अपने स्थान पर यज्ञ कर रहा था, तभी भगवान विष्णु जो की वामन अवतार में थे, वह बलि के पास पहुंचे, और उन्होंने दान के रूप में बली से तीन पग भूमि देने का वचन देने को कहा। बली जो कि यज्ञ कर रहा था उसे नहीं पता था कि इस बच्चे के रूप में स्वयं भगवान विष्णु है, इसलिए अपने गुरु के द्वारा मना करने के बावजूद भी उसने भगवान विष्णु यानी कि उस बच्चों को तीन पग भूमि दान में देने का वचन दे दिया।

बाली के वचन देते ही भगवान ने अपना विकराल रूप धारण किया, और एक पग में ही पूरा स्वर्ग लोक, और दूसरे पग में पूरी पृथ्वी को नाप लिया, और जैसा की बली ने तीन पग भूमि उन्हें दान करने का वचन दिया था, लेकिन अब भगवान विष्णु के पैर रखने के लिए किसी भी प्रकार की जगह नहीं बची थी, जिसके बाद भगवान विष्णु ने बली से कहा कि अब मैं अपना तीसरा पग कहां रखूं, तो बली आश्चर्य में पड़ गया लेकिन वह कर्तव्य निष्ठ था, उसने अपने वचन को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु से कहा कि आप अपना तीसरा पग मेरे सिर पर रख दीजिए, जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपना तीसरा पग बली के सिर पर रख दिया, जिसके बाद वह तुरंत ही पाताल लोक में जा गिरा। अपना वचन पूरा करने की इस कर्तव्य निष्ठा को देखकर भगवान विष्णु बली से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुए और उसे पाताल लोक का राजा बना दिया।

तो दोस्तों यह थी परिवर्तनी एकादशी की व्रत कथा, तो अगर बात करे की इसका नाम परिवर्तनी एकादशी व्रत क्यों कहा जाता है, तो हम आपको बता दें कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तनी एकादशी व्रत कहा जाता है। इतना ही नहीं, भगवान विष्णु के वामन अवतार से संबंधित होने के कारण इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है, व्रत रखा जाता है और व्रत कथा का पाठ किया जाता है, जिससे भक्त को हज़ारों अश्वमेध यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है। इसलिए अगली बार से भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आप भी यह व्रत करना ना भूले, और व्रत के दौरान इस कथा का भी विशेष तौर पर पाठ करें।

परिवर्तनी एकादशी व्रत करने के फायदे (Parivartini Ekadashi Vrat kerne Ke Fayde)?

तो दोस्तों अगर बात करें परिवर्तनी एकादशी व्रत करने के क्या फायदे होते हैं, तो हम आपको बता दें कि इस दिन यानी की परिवर्तनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के 10वें अवतार यानी कि वामन अवतार की पूजा की जाती है, और इस दिन व्रत रखकर व्रत कथा का पाठ किया जाता है, इसलिए इस दिन यह सभी कार्य करने से आपको भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आपको उनका आशीर्वाद मिलता है। इतना ही नहीं, इस दिन पूरे विधि विधान से पूजा पाठ करने से व्यक्ति को उसके सारे पापों से मुक्ति मिलती है, जो कि उसने जाने अनजाने में किए थे। पौराणिक कथा के अनुसार हमें यह भी पता चलता है, कि जो व्यक्ति इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करके व्रत करके व्रत कथा का पाठ करता है, उसे तीनों लोको की पूजा करने जितना और इसी के साथ हज़ारों अश्वमेध यज्ञ करने जितना ही फल प्राप्त होता है।

परिवर्तनी एकादशी व्रत विधि (Parivartini Ekadashi Vrat Vidhi)

तो दोस्तों अगर आप भी परिवर्तनी एकादशी का व्रत करके विधि विधान से भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करना चाहते हैं, ताकि आपको भी इस व्रत से मिलने वाले फायदे मिल सकें। तो हम आपको बता दें कि यह बहुत ही ज्यादा जरूरी है, कि इस दिन आप भगवान विष्णु की पूजा पूरी विधि विधान से करें, तब जाकर आपको इस व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है। तो नीचे हमने आपको इस व्रत को करने की पूरी विधि बताई है, जिससे कि आप आसानी से इस व्रत को करके कथा का पाठ करते हुए भगवान वामन अवतार की पूजा कर सकते हैं।

1: इस व्रत वाले दिन यानी कि आपको भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को सुबह जल्दी, यानी की ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाना है, और उसके बाद आपको स्नान आदि करके स्वच्छ कपड़े धारण कर लेना है।

2: इसके बाद आपको अपने घर के पूजन कक्ष में जाना है, जहां आप चाहे तो भगवान विष्णु के वामन अवतार की मूर्ति या फिर प्रतिमा या फिर चाहे तो भगवान विष्णु की मूर्ति प्रतिमा अपने सामने स्थापित कर सकते हैं।

3: भगवान विष्णु या फिर उनके वामन अवतार दोनों में से किसी की प्रतिमा या फिर मूर्ति स्थापित करने के बाद आपको अपना व्रत करने का संकल्प करना है। इसके बाद ही आपको आगे भगवान की पूजा करनी है।

4: इसके बाद आपको भगवान विष्णु या फिर वामन अवतार की पूजा करनी है, जिसके लिए सबसे पहले आप भगवान को पंचामृत से स्नान करवाये, जिसके बाद आपको भगवान को विभिन्न पूजन सामग्री जैसे कि पुष्प, धूप, बत्ती, आदि अर्पित करना है। इसी के साथ आप चाहे तो भगवान विष्णु को पीले रंग का चंदन भी लगा सकते हैं।

5: इतना करने के बाद आपको भगवान विष्णु को भोग लगाना है, भोग लगाने के बाद आपको भगवान विष्णु के सामने शुद्ध घी का एक दीपक जलाना है, जिसके बाद आपको परिवर्तनी एकादशी व्रत कथा जिसके बारे में हमने ऊपर आपको बताया है, उस कथा का पाठ शांति से ध्यान पूर्वक करना है।

6:इसके बाद आप चाहे तो भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए भगवान विष्णु चालीसा, या फिर उनकी आरती, या फिर उनके नाम का जाप भी कर सकते हैं, और उसके बाद आप भगवान विष्णु से अपनी गलतियों के लिए माफी और अपनी मनोकामना मांग सकते हैं।

तो दोस्तों इस तरह से आप परिवर्तनी एकादशी वाले दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करके आसानी से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं, तो ध्यान रहे की अगली बार से जब भी आप परिवर्तनी एकादशी का व्रत रखें, तो हमारे द्वारा बताए गए विधि से ही भगवान विष्णु और वामन अवतार की पूजा करें, ताकि आपको उसका पूरा फल प्राप्त हो।

परिवर्तनी एकादशी व्रत के दिन क्या खाना चाहिए और क्या नहीं (Parivartini Ekadashi Vrat Ke Din Kya Khana Chiye or Kya Nahi)?

कई लोगों के दिमाग में इस व्रत को लेकर यह सवाल रहता है, कि इस दिन ऐसी कौन-कौन सी चीज हैं जिसे कि वह ग्रहण कर सकते हैं, और ऐसी कौन-कौन सी चीज हैं जिन्हें उन्हें इस दिन नहीं खाना चाहिए। तो उन लोगों को हम बता दें कि इस व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, और व्रत रखा जाता है, इसलिए आपको इस व्रत के दौरान अन्न का एक दाना भी ग्रहण नहीं करना होता, लेकिन अगर बात करें इस दौरान आप क्या खा सकते हैं, तो हम आपको बता दे कि इस व्रत के दौरान आप फलाहार यानी कि फल आदि चीज जैसे की केला,सेव, संतरा, अनार आदि खा सकते हैं।

परिवर्तनी एकादशी व्रत के नियम (Parivartini Ekadashi Vrat Ke Niyam )?

अगर आप भी अपने और अपने परिवार के लिए इस परिवर्तनी एकादशी व्रत को करने जा रहे हैं, तो हम आपको बता दें कि सिर्फ विधि विधान से व्रत कर लेने या फिर पूजा कर लेने से ही आपको इस व्रत का फल नहीं मिलेगा, आपको कुछ ऐसी चीज हैं जिनका ध्यान रखना होगा तभी जाकर आपको इस व्रत का पूरा फल मिलेगा। तो ऐसी कौन-कौन सी बातें हैं जिनका ध्यान आपको इस व्रत को करने से पहले रखना है, इसका जिक्र हमने नीचे किया हुआ है।

1: जिस दिन आपको यह व्रत करना है, यानी की एकादशी के दिन, उसके एक दिन पहले ही आपको पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करना है, आपको मांस मदिरा जैसे की मछली, मुर्गी आदि और इसी के साथ तापसीक भोजन जैसे कि लहसुन प्याज आदि का सेवन नहीं करना है।

2: इस व्रत के दौरान आपको घर में शांति का वातावरण रखना चाहिए, आपको घर में किसी भी प्रकार का झगड़ा या फिर वाद विवाद नहीं करना है। शांति पूर्वक व्रत पूर्ण होने से फल मिलने की ज्यादा संभावना होगी।

3: इस व्रत के दौरान ध्यान रखें कि घर के अन्य सदस्य भी नशीले पदार्थ अथवा तामसिक भोजन का सेवन न करें, और ना ही ऐसी चीज घर में लाए। क्योंकि ऐसी चीजों के घर में आने से स्थान अपवित्र हो जाता है।

4: इस व्रत के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि आप और आपके घर के सभी सदस्य ईमानदारी पूर्वक कम करें, और किसी भी प्रकार का गलत काम ना ही करें और ना ही किसी को करने दे।

परिवर्तनी एकादशी व्रत का पारण/उद्यापन कैसे करें (Parivartini Ekadashi Vrat Ke Udyapan Kaise Kare)?

तो दोस्तों जैसा कि सभी को मालूम है कि अगर हम किसी भी व्रत को करने का संकल्प लेते हैं, और उस व्रत को विधि विधान से करते हैं, तो हमें विधि विधान से उस व्रत का उद्यापन भी करना होता है, तब कहीं जाकर हम उस व्रत को सही तरीके से कर पाते हैं, और तभी जाकर हमें उसे व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है। तो अगर बात करें परिवर्तन एकादशी व्रत की उद्यापन की, तो हम आपको बता दें कि परिवर्तन एकादशी व्रत का पारण या फिर उद्यापन करना भी बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है, और इसकी भी एक विधि होती है। तो नीचे हमने आपको परिवर्तनी एकादशी व्रत के पारण की विधि के बारे में बताया है।

तो दोस्तों अगर बात करें परिवर्तनी एकादशी के पारण की, तो हम आपको बता दें की एकादशी के अगले दिन यानी की द्वादशी तिथि को ही इस व्रत का पारण किया जाता है, और हम आपको बता दें कि अगर आप एकादशी के दिन व्रत कर रहे हैं, तो विशेष तौर पर द्वादशी तिथि को यानी कि उसके अगले दिन याद से इस व्रत का पारण कर ले, क्योंकि द्वादशी तिथि को इस व्रत का पारण करना जरूरी है। कहा जाता है कि अगर इस दिन आप इस वक्त का पारण नहीं करते, तो आपको पाप लगता है। इसलिए ध्यान पूर्वक इस दिन कोशिश करें कि आप इस व्रत का पारण कर ही लें, अगर बात करें इस व्रत को पारण करने की, तो इस दिन आप ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद अपने व्रत का पारण करके भोजन ग्रहण कर सकते हैं।

Conclusion

दोस्तों उम्मीद है कि अब आपको परिवर्तनी एकादशी व्रत जिसे कि हम पद्मा एकादशी और वामन एकादशी के नाम से जानते हैं, उसके बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी, और आपको पता चल गया होगा कि इस व्रत को आपको कब कैसे और क्यों करना है। तो अब वैसे भी आप इस व्रत के बारे में सभी कुछ जान ही चुके हैं, तो अब आप भी अगली बार से भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को इस व्रत को करके व्रत कथा का पाठ कर सकते हैं, इसी के अलावा अगर आपको इस व्रत के बारे में और कुछ जानना है, तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं, हम को पूरी कोशिश करेंगे कि हम आपको आपके सवाल का जवाब दें।


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