पशुपतिनाथ व्रत कथा और पशुपतिनाथ व्रत की विधि PDF Download in Hindi

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हॅलो ! इस पोस्ट में हम आपको पशुपतिनाथ व्रत कथा और पशुपतिनाथ व्रत की विधि के बारे में जानकारी देने वाले हैं । पशुपतिनाथ व्रत भगवान शिव को समर्पित है । यह व्रत किसी भी सोमवार से शुरू कर सकते हैं । जिस तरह से सोमवार और प्रदोष का व्रत होता हैं उस तरह से यह पशुपतिनाथ का व्रत भी होता हैं ‌। इस पशुपतिनाथ व्रत में छह दियों का और मीठे प्रशाद का बहुत महत्व होता है । पशुपतिनाथ का व्रत करने से मनुष्य की मनोकामनाएं बहुत ही जल्दी पुरी हो जाती हैं । यह व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता हैं । इस व्रत से लोगों के संकट दूर हो जाते हैं और मनुष्य का वैवाहिक जीवन भी सुखी हो जाता हैं । पशुपतिनाथ का व्रत पांच सोमवार किया जाता हैं ‌। पशुपतिनाथ व्रत में पशुपतिनाथ व्रत के कथा का पठन करने का भी विशेष महत्व होता है । आज तक बहुत लोगों को यह व्रत करने से लाभ मिला हैं । इस पोस्ट में हम आपको पशुपतिनाथ व्रत की कथा और पशुपतिनाथ व्रत की विधि के बारे में जानकारी देने वाले हैं । हमारी यह पोस्ट अंत तक जरुर पढ़े ।

पशुपतिनाथ व्रत की विधि (Pashupatinath Vrat Vidhi in Hindi)-

  • आपको जिस सोमवार से पशुपतिनाथ व्रत (Pashupatinath Vrat) करना हैं उस सोमवार को जल्दी उठें और स्नान करके पूजा की थाली लेकर भगवान शिव के मंदिर जाएं । पूजा की थाली में बेलपत्र , दूध , पंचामृत जरूर लें ‌। इसके अलावा आप भगवान शिव की और पसंद की पूजा की सामग्री लेकर जा सकते हैं ।
  • मंदिर जाकर भगवान शिव की पूजा करें और आप किस मनोकामना से पशुपतिनाथ का व्रत कर रहे हैं वह भगवान शिव को बता दें ।
  • अब घर वापस आएं और वह पुजा की थाली स्वच्छ जगह पर रख लें । इस दिन फलाहार करें ।
  • शाम के समय वहीं पुजा की थाली लें और उसमें छह दिपक लें और मीठा प्रशाद लें और भगवान शिव के मंदिर में जाएं ।
  • उधर जाकर आपको भगवान शिव के सामने छह दिपक रखने हैं । लेकिन प्रज्वलित सिर्फ पांच दिए करने हैं । अब मीठे के प्रशाद के भगवान शिव के सामने तीन हिस्से करने हैं । दो हिस्सों का भोग भगवान शिव को लगाना हैं और तीसरा हिस्सा और छठा दिया थाली में घर लेकर आना हैं ।
  • घर आकर मुख्य प्रवेशद्वार पर प्रवेश करते समय दाहिने हाथ को वह दिया प्रज्वलित करना हैं और मन ही मन अपनी मनोकामना फिर एक बार बोलनी हैं ।
  • अब घर आकर जो मंदिर से मीठे का प्रशाद लाया हैं वह पहले खाना हैं और इसके बाद भोजन करना हैं ।
  • इसी तरह से आपको पांच सोमवार यह व्रत करना हैं । पांचवें सोमवार को आपको 108 बेलपत्र , मुंग या चावल शिवलिंग पर चढ़ाना हैं । कोई भी चीज तुटी हुई नहीं होनी चाहिए । भगवान शिव को पांचवे सोमवार नारियल समर्पित करें और भगवान शिव को यह व्रत पुरा किया हैं हमारी मनोकामना जल्दी पुरी किजिए ऐसा बोलना हैं ।
  • पांच सोमवार आपको यह व्रत एक ही मंदिर में करना हैं ।

पशुपतिनाथ व्रत कथा (Pashupatinath Vrat Katha in Hindi)

साहुकार का भक्तीभाव

एक नगर में एक साहुकार रहता था । यह साहुकार बहुत ही धनवान था । लेकिन उसको संतान नहीं थी । इसलिए वह दुखी रहता था । उसे हमेशा इसी बात की चिंता रहती थी । इसी चिंता में वह हर सोमवार भगवान शिव का पुजन और व्रत करता था । माता पार्वती ने साहुकार के भक्ती भाव को देखा और भगवान शिव से कहा की यह साहुकार बहुत ही भक्ती भाव से आपका पूजन और व्रत करता हैं । यह आपका बहुत ही बड़ा भक्त हैं । आपको इसकी मनोकामना पुरी करनी चाहिए ।

भगवान शिव का वर‌

भगवान शिव ने माता पार्वती से कहां की हे पार्वती , यह संसार कर्म क्षेत्र हैं । जो इस संसार में जैसे कर्म करते हैं उनको वैसा ही फल प्राप्त होता हैं । लेकिन माता पार्वती की जिद देखकर उनको माता पार्वती के सामने झुकना पड़ा । भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा की इस व्यक्ती के भाग्य में पुत्र नहीं हैं फिर भी में इसे पुत्र प्राप्ती का वर देता हूं । लेकिन उसका पुत्र सिर्फ बारा साल तक ही जिवित रहेगा । भगवान शिव और माता पार्वती की यह सब बाते साहुकार सुन रहा था । इसलिए उसे ना खुशी हुई ना दुख हुआ ।

साहुकार की मनोकामना पुर्ती

इसके बाद भी साहुकार ने भगवान शिव के व्रत और पूजन शुरू रखे थे और उसको सुंदर पुत्र प्राप्ती हो गई । साहुकार के घर में खुशियां आ गई । लेकिन पुत्र प्राप्ती होने पर भी साहुकार खुश नहीं था । इसके बाद उसका पुत्र 11 साल का हो गया । साहुकार ने अपने पुत्र को पढ़ने के लिए काशी भेज दिया । साहुकार ने अपने पुत्र के साथ उसके मामा को भी भेज दिया । साहुकार ने पुत्र के मामा से भी कहा की रास्ते में जाते समय यज्ञ और ब्राम्हणों को भोजन कराते जाओ । साहुकार ने जैसे बताया उसी तरह से मामा और भांजा यज्ञ और साहुकार को भोजन कराते गए ।

राजकुमारी का विवाह

जाते जाते वह दोनों एक राजधानी में पहुंच गए । उधर एक राजा के कन्या का विवाह था । जिस लड़के से राजकुमारी का विवाह होने वाला था वह भी एक राजा का बेटा था और काना था । इसलिए राजकुमार के पिता को चिंता थी की राजकुमारी उसके लड़के को देखकर शादी से मना ना कर दें ।

राजकुमारी का बारात के साथ जाने के लिए इंकार

उस वक्त राजा की नजर साहुकार के सुंदर पुत्र पर पड़ी और उसने सोचा क्यो न शादी तक इस लड़के को वर बनाया जाए ? और ऐसा ही हुआ साहुकार के लड़के से राजकुमारी का विवाह संपन्न हो गया । अब साहुकार के लड़के ने ईमानदारी दिखाई और राजकुमारी के चुनरी पर लिखा की तेरा विवाह मेरे साथ हो गया है और अब राजकुमार के साथ तुम्हें भेजेंगे वह राजकुमार एक आंख से काना हैं और में अब काशी पढ़ाई करने के लिए जा रहा हूं । राजकुमारी को सच पता चल गया और उसने बारात के साथ जाने से मना कर दिया ।

साहुकार के बेटे की मृत्यु

साहुकार के बेटे ने काशी जाकर अपनी पढ़ाई शुरू कर दी । अब साहुकार के बेटे की आयु 12 साल हो गई । 12 वें साल के दिन साहुकार के बेटे ने अपने मामा से कहां की उसकी तबीयत ठीक नहीं लग रही हैं और वह अंदर जाकर सो गया । सोने के बाद लड़के की मृत्यु हो गई । यह देखकर लडके के मामा बहुत रोने लगा । तभी माता पार्वती और भगवान शिव वहीं से जा रहे थे । तभी माता पार्वती रोने की आवाज सुनकर व्याकुल हो गई और माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा की बालक को जीवित किजिए । नहीं तो इसके माता पिता तड़प तड़प के मर जाएंगे ।

भगवान शिव का वर

माता पार्वती का आग्रह देखकर भगवान शिव ने उस पुत्र को जीवन का वरदान दिया । अब लड़का जीवित हो गया । मामा और भांजे अब घर जाने के लिए लौटे । जाते समय भी उन्होंने ब्राम्हणों को भोजन और यज्ञ करवाया । अब वह दोनों उस जगह पहुंच गए जिधर साहुकार के पुत्र की और राजकुमारी की शादी हुई थी । राजा ने लड़के को पहचान लिया और राजकुमारी की विदाई साहुकार के बेटे के साथ कर दी । जब पुत्र घर लौटा तब उसकी मां घर के छत पर बैठी थी और यह प्रण ले लिया था की अगर पुत्र घर नहीं लौटा तो वह प्रयाण त्याग देगी ।

मनोकामना पुर्ती

लड़के को देखकर उन्होंने बहुत ही प्रसन्नता से लड़के का स्वागत किया और वह प्रसन्नता के साथ रहने लगे । इस तरह से जो भी पशुपतिनाथ व्रत को पुरे भक्तीभाव से करता हैं उसकी समस्त समस्याएं पुरी हो जाती है ।

हमने इस पोस्ट में आपको पशुपतिनाथ व्रत कथा और पशुपतिनाथ व्रत (Pashupatinath Vrat)) की विधि की जानकारी दी हैं । हमारी यह पोस्ट शेयर जरुर किजिए । धन्यवाद !

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