तो दोस्तों कैसे हैं आप लोग, स्वागत है आपका आज के हमारे एक और नए आर्टिकल में। तो दोस्तों आप सभी सोमवार के दिन शिव जी के मंदिर जाकर शिवलिंग में जल अर्पित तो करते ही होंगे, ऐसा इसलिए क्योंकि सोमवार का दिन भगवान शिव को ही समर्पित होता है, इसलिए यह दिन शिव जी की पूजा के लिए बहुत ही विशेष माना जाता है। कई लोग तो सोमवार के दिन व्रत रखकर भी शिव जी को प्रसन्न करते हैं, ताकि उन्हें शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। वैसे तो शिव जी को प्रसन्न करने के लिए किसी भी प्रकार की पूजा पाठ की जरूरत नहीं होती, बस आप सच्चे मन से अगर उनका नाम भी ले ले लेते हैं तो वह आपसे प्रसन्न रहते हैं, लेकिन कई भक्त होते हैं जो की शिव जी को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार के व्रत और पूजा पाठ आदि करते हैं। तो आज का यह आर्टिकल सिर्फ और सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए है, क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम आपको सोमवार व्रत के लिए एक ऐसी कथा के बारे में बताने वाले हैं, जिसका पाठ आपको सोमवार व्रत के दौरान करना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है। कहा जाता है कि सोमवार व्रत कथा के बिना सोमवार का व्रत करने का कोई भी फायदा नहीं है, इसलिए इस आर्टिकल को आखिरी तक जरूर पढ़ें, और हम जो आपको सोमवार व्रत कथा के बारे में बताएंगे, उसका पाठ करके ही अपने सोमवार के व्रत का उपवास करें। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और आज के हमारे इस आर्टिकल को शुरू करते हैं।
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सोमवार व्रत कथा (Somvar Vrat Katha)
दोस्तों सोमवार व्रत कथा की कहानी एक शिवभक्त साहूकार की है, जो की एक बहुत अच्छा इंसान था, इसी के साथ-साथ वह बहुत ही ज्यादा धनी व्यक्ति भी था, लेकिन उसे अपने धन का बिल्कुल भी घमंड नहीं था। वह और उसका पूरा परिवार पूरी तरह से संपन्न था, बस कमी थी तो सिर्फ और सिर्फ संतान की। साहूकार की कोई भी संतान नहीं थी, जिसकी वजह से वह बहुत ही ज्यादा दुखी रहता था, लेकिन इसके बावजूद भी उसे शिवजी पर विश्वास था, वह बहुत ही बड़ा शिव भक्त था, इसलिए संतान प्राप्ति की कामना के लिए वह रोज शिव जी के मंदिर जाकर शिव जी और माता पार्वती की पूजा करता और प्रत्येक सोमवार को व्रत रखकर भी शिव जी की पूजा करता था।
यह सारी घटना और साहूकार की भक्ति शिव और पार्वती दोनों देख तो रहे थे, किंतु शिव जी उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण नहीं कर रहे थे, लेकिन एक दिन की बात है, की पार्वती जी को उस साहूकार की भक्ति पर बहुत ही ज्यादा तरस आया, और उन्होंने आखिर शिव जी से यह पूछ ही लिया, कि यह साहूकार आपका इतना बड़ा भक्त है, तो आखिर आप इसकी मनोकामना पूर्ण क्यों नहीं कर रहे हैं, आप क्यों इन्हें संतान प्राप्ति का वरदान नहीं दे रहे हैं। इसके बाद शिव जी ने बड़े प्यार से पार्वती जी को कहा, कि इस दुनिया में जो जिस चीज के लिए बना है, सिर्फ वही चीज उसे प्राप्त हो सकती है, और जो चीज जिसके भाग्य में नहीं है, वह उसे कभी भी प्राप्त नहीं हो सकती, और रही बात साहूकार की, तो साहूकार की भाग्य में संतान प्राप्ति का योग नहीं है।
शिव जी के इन बातों को सुनकर पार्वती जी को यह बात समझ तो आ गई, लेकिन पार्वती जी से साहूकार कि ये हालत देखी नहीं गई, इसलिए पार्वती जी ने शिव जी से बहुत ही ज्यादा आग्रह की, कि कृपा करके आप इन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दे दीजिए, पार्वती जी के इतना ज्यादा आग्रह करने के बाद शिव जी आखिरकार मान गए, लेकिन उन्होंने पार्वती जी और साहूकार से पहले ही यह कह दिया, कि मैं तुम्हें संतान प्राप्ति का वरदान तो दूंगा, लेकिन तुम्हारी संतान सिर्फ और सिर्फ 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगी।
क्योंकि साहूकार को यह पता था, कि उसकी पुत्र ज्यादा वर्ष तक जीवित नहीं रहेगी, इसलिए वह संतान प्राप्ति की वजह से खुश तो था, लेकिन इस बात से वह चिंतित भी था। लेकिन उसने फिर भी शिव भक्ति नहीं छोड़ी, वह ऐसे ही शिव और माता पार्वती की पूजा करता रहा, और कुछ दिन बीतने के बाद उसे एक पुत्र की प्राप्ति हो गई, जिससे कि वह और उसका परिवार बहुत ही ज्यादा खुश हुआ।
जब साहूकार का बेटा 11 वर्ष का हुआ था, तब साहूकार के पिता ने अपने बेटे की शिक्षा पर ध्यान देने हेतु उसे काशी भेजने का फैसला किया, लेकिन वह उसे अकेला नहीं भेज सकता था, इसलिए साहूकार ने अपने बेटे के मामा को अपने पास बुलाया, और उन्हें बहुत सारे पैसे दिए, और उनसे कहा, कि तुम मेरे बेटे को लेकर काशी जाओ, ताकि यह वहां शिक्षा प्राप्त कर सके। लेकिन एक बात का ध्यान रखना, की मार्ग में तुम दोनों जिस स्थान पर भी रुकोगे, वहां तुम्हें यज्ञ करवाना होगा, और यज्ञ के बाद तुम्हें ब्राह्मणों को भोजन भी करवाना होगा।
इसके बाद दोनों मामा और भांजा काशी के लिए रवाना हो गए, दोनों यूं ही काशी की तरफ जा रहे थे और जहां भी वह रास्ते में रुकते तो साहूकार के कहे अनुसार यज्ञ करवाते, ब्राह्मणों को भोजन करवाते, और उन्हें दक्षिण देखकर आगे बढ़ जाते। वह ऐसे ही चलते जा रहे थे, तभी वह एक नगर में पहुंचते हैं, और वह वहां देखते हैं कि यहां तो किसी की शादी हो रही है, और जिसकी शादी हो रही है वह एक राजकुमारी है, किंतु उन्होंने यह भी देखा की राजकुमारी जिस व्यक्ति से शादी कर रही है वह एक आंख से अंधा था।
राजकुमार यानी कि एक आंख से अंधे लड़के का जो पीता था, उसने सोचा की क्यों ना मैं साहूकार के बेटे को अपने बेटे की जगह शादी में बिठा दूं, और जब विदाई का समय आएगा तब मैं अपने बेटे को विदा करके इस लड़के को पैसे देकर काशी भेज दूंगा। ऐसा सोचकर उसने साहूकार के बेटे को अपने बेटे के स्थान पर राजकुमारी के बगल में शादी करने हेतु बैठा दिया, यह पूरी बात साहूकार के बेटे को समझ आ चुकी थी, क्योंकि वह बहुत ही ज्यादा ईमानदार था इसलिए उसने चुपके से राजकुमारी की चुन्नी में सारी सच्चाई बता दी, कि तुम्हारे साथ जिसकी शादी हो रही है वह मैं नहीं बल्कि एक अंधा है। इसके बाद शादी की रस्म पूरी हुई और साहूकार का बेटा और उसकी मां फिर से काशी के लिए चल पड़े।
इसके बाद राजकुमारी का ध्यान अपनी चुन्नी पर लिखे उन शब्दों पर गया, जिसे पढ़कर उसे सभी सच्चाई पता चल गई, और राजकुमारी ने उस व्यक्ति के साथ जाने हेतु मन कर दिया। जब राजकुमारी ने अपने पिता को यह सारी सच्चाई बताई, तो उसने भी अपने बेटी को विदा करने हेतु मन कर दिया, और बारात को वापस भेज दिया, और वह दोनों उस व्यक्ति का इंतजार करने लगे जिस व्यक्ति से राजकुमारी की असल में शादी हुई थी, यानी कि साहूकार के बेटे की।
इधर साहूकार का बेटा और उसके मामा काशी पहुंच चुके थे। काशी पहुंच कर भी उन्होंने यज्ञ करवाया, ब्राह्मणों को भोजन करवाया, और उन्हें दक्षिण भी दी। ऐसे ही दिन बीतते गए, जब साहूकार का बेटा 12 वर्ष का हो गया, उस दिन भी उसके और उसके मामा के द्वारा एक यज्ञ रखा गया था, यज्ञ के दौरान नहीं अचानक से साहूकार के बेटे की तबीयत बिगड़ गई, वह अंदर पंडाल में जाकर सो गया। थोड़ी देर बाद जब यज्ञ समाप्त करके उसके मामा पंडाल में पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि साहूकार का बेटा मृत जमीन में पड़ा हुआ है, उसे देखकर वह बहुत ही ज्यादा रोने लगे, और दुख में विलाप करने लगे, आसपास लोगों की भीड़ भी लग चुकी थी।
इसके बाद हुआ यू की जिस समय वह लड़का जमीन पर मृत पड़ा था, उसी समय शिव और पार्वती पृथ्वी लोक का भ्रमण कर रहे थे, तभी उन्होंने किसी की रोने की आवाज सुनी, और उस स्थान पर आए जिस स्थान पर साहूकार का बेटा मृत पड़ा हुआ था। लड़के के मां की रोने की आवाज सुनकर पार्वती जी ने शिव जी को कहा, कि हे प्राणनाथ, यह यहां क्या हुआ है, मुझसे इनका दुख देखा नहीं जा रहा है, कृपया आप उनके दुख का समाधान निकालिए। जिसके बाद शिव जी ने कहा की ध्यान से देखो, यह वही साहूकार का बेटा है, जिसे कि मैंने तुम्हारे आग्रह करने पर संतान प्राप्ति का वरदान दिया था, और यह भी कहा था कि यह सिर्फ 12 वर्ष तक जीवित रहेगा, और आज इसके 12 वर्ष पूरे हो चुके हैं।
यह सुनकर पार्वती जी रोते हुए बोली, कि हे प्राणनाथ, मुझे इनकी हालत नहीं देखी जा रही है, जरा आप इनके मां बाप के बारे में सोचिए, उन्होंने यह प्रण लिया है कि अगर उनकी बेटे की मृत्यु हो गई तो वह भी अपने प्राण त्याग देंगे, जब वह अपने बेटे की मृत्यु के बारे में जानेंगे तो वह भी इसके विलाप में रोते-रोते तड़प तड़प कर मर जाएंगे। कृपा करके आप कुछ कीजिए। पार्वती जी की इन बातों को सुनकर शिव जी का भी मन भोर विभोर हो गया, और उन्होंने पार्वती जी की बात मानकर साहूकार के बेटे को पुनः एक नया जीवन दान दिया, इसके बाद हुआ यह कि वह लड़का जो की मृत पड़ा था, वह अचानक से ही उठकर बैठ गया। यह देखकर पहले तो उसके मामा को बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उसके बाद वह बहुत ही ज्यादा खुश हुआ, और उसने शिव जी को धन्यवाद दिया।
इसके बाद साहूकार के बेटे ने काशी में ही अपनी शिक्षा समाप्त की, शिक्षा समाप्त करने के बाद दोनों मामा भांजे ने वापस अपने नगर जाने के बारे में सोचा, और वह वैसे ही अपने नगर की ओर चल पड़े, जिस प्रकार से वह काशी आए थे। रास्ते में वह फिर उसी नगर में पहुंचे, जहां की साहूकार के बेटे का विवाह राजकुमारी से हुआ था, क्योंकि वहां वह रुके थे, इसलिए उन्होंने वहां फिर से एक यज्ञ करवाया, जिसकी वजह से राजकुमारी के पिता यह समझ गए कि यह वही लड़का है जिससे कि मेरी बेटी की शादी हुई है। इसके बाद वह उस लड़के के पास जाते हैं और उसे और उसके मामा को अपने राजमहल आमंत्रित करते हैं, और उन दोनों मामा भांजे की अच्छे से खातेदारी करते हैं, इतना ही नहीं अंत में राजा अपनी बेटी को साहूकार के बेटे के साथ पूरे ठाट बाट से विदा भी करते हैं।
उस नगर से निकलने के बाद साहूकार और उसका बेटा वापस अपने नगर पहुंचे, तब गांव वालों ने साहूकार को यह खबर दी कि उनका बेटा और उनके मामा नगर में आ चुके हैं, तो वह यह जानकर बहुत ही ज्यादा खुश हुए, क्योंकि उन्होंने यह कसम खा रखी थी कि अगर उन्हें उनके पुत्र की मृत्यु का समाचार मिलता है, तो वह दोनों भी अपने प्राण त्याग देंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, वह इस बात से बहुत ही ज्यादा खुश हुए, और बहुत ही खुशी पूर्वक ही दोनों मामा भांजे और उनकी बहू का स्वागत किया। उसी रात की बात है, जब साहूकार सोया था, तब साहूकार को शिव जी ने सपने में दर्शन दिए और साहूकार से कहा, कि तू हर सोमवार को मेरा व्रत करता था, जिससे कि मैं बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हूं। इसलिए मैंने तेरे पुत्र को दीर्घायु रहने का वरदान दिया है, और आज के बाद से जो भी व्यक्ति सोमवार का व्रत करेगा, उसे मेरा आशीर्वाद प्राप्त होगा, और उसकी संतान की आयु भी लंबी होगी।
तो दोस्तों यही है सोमवार व्रत की कहानी, इसलिए कहा जाता है कि सोमवार व्रत के करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूर्ण होती है, और उसे शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और उसकी संतान की आयु भी लंबी होती है। तो अगली बार से आप जब भी सोमवार का व्रत करें, तो अपने व्रत का पारण करने से पहले हमारे द्वारा बताएं इस कथा का पाठ जरूर करें, ताकि आपको भी शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त हो और आपकी भी हर मनोकामना पूर्ण हो।
सोमवार व्रत करने से क्या फल मिलता है?
सोमवार व्रत करने से शिव जी बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होते हैं, साथ ही साथ माता पार्वती भी बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होती है, और हमें शिव जी और माता पार्वती दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, सोमवार का व्रत करने से व्यक्ति की हर मनोकामना शिव जी पूर्ण करते हैं, जिससे कि व्यक्ति के जीवन में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती है। इस दिन शिव जी को उनकी प्रिय चीज जैसे कि बेलपत्र और धतूरा आदि अर्पित करना बहुत ही ज्यादा शुभ माना जाता है, ऐसा करने से व्यक्ति को शिव जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। वैसे तो आप शिव जी को प्रसन्न करने के लिए किसी भी सोमवार को व्रत कर सकते हैं, लेकिन सावन महीने के सोमवार को व्रत करना बहुत ही ज्यादा फलदाई माना जाता है, क्योंकि सावन का पूरा महीना ही शिव जी को ही समर्पित होता है, इसलिए आपको हर सोमवार के दिन व्रत रखकर शिव जी की पूजा जरूर करनी चाहिए।
सोमवार व्रत के नियम (Somvar Vrat Ke Niyam)
सोमवार व्रत करने के दौरान आपको नियमों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, ताकि जाने अनजाने में आपसे कोई ऐसी गलती ना हो जाए जिससे कि आपको इस व्रत का फल ही ना मिले। इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपको भी आपके व्रत का पूरा फल प्राप्त हो, यानी कि आपको शिव जी का आशीर्वाद मिले, तो नीचे हमने आपको कुछ सोमवार व्रत के नियमों के बारे में बताया है, उन सभी नियमों को ध्यान में रखकर ही सोमवार व्रत को पूरा करें।
1: सोमवार व्रत करने के दौरान आपको शिव जी की पूजा तो करनी ही है, साथ-साथ आपको माता पार्वती जी की भी पूजा विशेष तौर पर करनी है, वरना महादेव रुष्ट हो सकते हैं।
2: सोमवार व्रत के दौरान आपको कभी भी तापसीक भोजन जैसे की लहसुन,प्याज और नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से शिव जी नाराज हो जाते हैं, आपको पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना है।
3: सोमवार व्रत के दौरान आपको काले कपड़े पहनने से बचना चाहिए, आप बाकी हल्के रंग के कपड़े इस दिन पहन सकते हैं।
4: सोमवार व्रत के दौरान आपको व्रत रखना होता है, इसलिए आपको दिन भर में सिर्फ एक बार ही भोजन करना चाहिए, आप चाहे तो फलाहार करके भी व्रत कर सकते हैं।
5: सोमवार के दिन शिवलिंग का दूध से अभिषेक किया जाता है, तो उस दौरान आपको इस बात का ध्यान देना है, कि आप जिस पात्र का उपयोग अभिषेक करने के लिए करें, वह तांबे का ना हो, क्योंकि अगर आपका पात्र तांबे का होगा, तो आपका दूध संक्रमित हो जाएगा, जो की शिव जी के अभिषेक के लिए सही नहीं माना जाता।
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