तो दोस्तों कैसे हैं आप लोग, स्वागत है आपका आज के हमारे एक और नए आर्टिकल में। क्या आप भी अलग-अलग देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए व्रत आदि करते हैं। अगर हां, तो आज का यह आर्टिकल सिर्फ और सिर्फ आपके लिए है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस आर्टिकल में मैं आपको भगवान विष्णु यानी कि गुरुवार व्रत कथा के बारे में पूरी जानकारी देने वाला हूं, तो दोस्तों क्या आपको पता है कि गुरुवार व्रत कथा क्या होता है,इसे क्यों किया जाता है? अगर नहीं, तो आज आप बिल्कुल सही जगह आए है, क्योंकि आज के इस आर्टिकल में मैं आपको बताऊंगा कि भगवान विष्णु की व्रत कथा क्या है, इसे किस दिन और किस प्रकार से किया जाता है।
इतना ही नहीं, इस से होने वाले फायदे और इसके नियमों के बारे में भी आज आपको पूरी जानकारी मिलेगी। इसलिए इस आर्टिकल में अंत तक बने रहे। क्योंकि अगर आपने अपने जीवन में विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया, तो आपको और किसी भी चीज की जरूरत नहीं होगी, आपका जीवन का कल्याण हो जाएगा। इसलिए जरूरी है कि आप भगवान विष्णु के इस व्रत कथा यानी की गुरुवार व्रत और गुरुवार व्रत कथा के बारे में जाने, ताकि आप आसानी से इस व्रत की मदद से विष्णु जी को प्रसन्न कर सके। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि आखिर गुरुवार व्रत और इसकी कथा क्या है।
भगवान विष्णु व्रत क्या है (God Vishnu Vrat Kya Hai)?
Brihaspati Dev Vrat Katha Kya Hai
दोस्तों आपको यह तो मालूम ही होगा कि हिंदू धर्म के अनुसार हर एक दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित होता है। तो अगर बात करें भगवान विष्णु की, तो हिंदू धर्म के अनुसार उन्हें गुरुवार का दिन समर्पित होता है। इस दिन अगर आप इनकी आराधना करते हैं, तो इससे विष्णु जी बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होते हैं, और आपको अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस दिन व्रत रखने का अलग ही महत्व है, कहा जाता है कि इस दिन अगर कोई व्यक्ति व्रत रखता है, और विष्णु जी की आराधना करते हैं, और साथ ही साथ भगवान विष्णु की व्रत कथा का पाठ करता है। तो उसे बहुत ही ज्यादा सौभाग्य की प्राप्ति होती है, और उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।
तो अगर आप भी गुरुवार के दिन व्रत रखकर विष्णु भगवान की व्रत कथा का पाठ करने के बारे में सोच रहे हैं, तो हमारे इस आर्टिकल को आखरी तक जरूर पढ़ें, क्योंकि आज हम आपको उस कथा के पूरे पाठ को भी इस आर्टिकल में बताने वाले हैं, ताकि आपको और कहीं जाना ना पड़े, और इसी आर्टिकल के मदद से भी आप उस कथा का पाठ कर पाए। तो चलिए आगे बढ़ते हैं।
विष्णु भगवान की व्रत कथा (Bhagvan Vishnu Ki Vrat Katha)
बृहस्पतिवार (Brihaspativar) व्रत कथा (Brihaspativar Vrat Katha PDF Download)
कहां जाता है कि जो व्यक्ति गुरुवार के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु जी की पूजा करता है, उसे इस व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए। इससे विष्णु जी बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होते हैं, व्यक्ति को बहुत ही ज्यादा सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हम आपको बता दें कि विष्णु भगवान की व्रत कथा को बृहस्पतिवार व्रत कथा के नाम से भी जाना जाता है, तो ऐसे में अगर आप भी विष्णु जी के भक्त हैं और गुरुवार को व्रत रखकर भगवान विष्णु को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो हमने आपको नीचे पूर्ण व्रत कथा के बारे में जानकारी दी है, इसका पाठ करके आप आसानी से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर सकते है।
यह बात है प्राचीन काल की, उस समय उस राज्य में एक बहुत ही प्रतापी राजा राज करता था, लेकिन उसे इस बात का बिल्कुल भी घमंड नहीं था कि वह राजा है, बल्कि वह बहुत ही ज्यादा परोपकारी दयालु और कर्तव्यनिष्ठ राजा था, वह हमेशा धर्म के कामों में आगे रहता था, और हमेशा गरीब दुखी और जिन्हें मदद की जरूरत है उनकी सहायता करता था। यहां तक तो सब ठीक था, लेकिन यह बात राजा की पत्नी को अच्छी नहीं लगती थी, कि राजा सबकी मदद करता है।
साधु के भेष में बृहस्पति देव का आगमन
एक दिन की बात है जब राजा बाकी दिनों की तरह ही शिकार करने गए थे, और घर में उनकी पत्नी और दासी अकेले थे, तभी बृहस्पति देव एक साधु का भेष बना लेते हैं, और भिक्षा मांगने के लिए राजा के महल में जाते हैं। जहां उनकी रानी अकेली थी। जिसके बाद वह रानी को भिक्षा देने को कहते हैं, यह सुनते ही रानी साधु जी के पास आती है, और कहती है की हे महाराज, मैं इस दान पुण्य से पूरी तरह से तंग आ चुकी हूं, अब मुझसे यह सारी चीजें नहीं होती। मेरे पति अपना सारा का सारा धन इन्हीं सभी चीजों में व्यर्थ ही नष्ट कर देते हैं। आप ही मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, कि जिससे हमारा सारा का सारा धन नष्ट हो जाए ताकि वह दान पुण्य ही ना कर पाए।
रानी की यह बात सुनकर वृहस्पति देव हैरान हो गए, और उन्होंने रानी से कहा कि तुम तो बहुत ही विचित्र हो, आखिर ऐसा कौन होता है जिसे की संतान और धन ना चाहिए हो। अगर तुम्हारे पास ज्यादा धन है, तो इसमें क्रोधित होने की क्या बात है, बल्कि तुम्हें उस धन को तो लोगों की सहायता करने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए, तुम्हें लोगों की मदद करनी चाहिए, भूखों को खाना और प्यासे को पानी पिलाना चाहिए। इस बात को सुनकर रानी क्रोधित हो जाती है, और कहती है कि मुझे यह सब नहीं चाहिए नहीं चाहिए मुझे वह धन जिसे की संभालने में ही मेरी पूरी जिंदगी निकल जाए।
साधु महाराज ने बताया उपाय
रानी की इस बात को सुनकर साधु बोले कि ठीक है अब तुम यही चाहती हो तो मैं भला क्या कर सकता हूं , मैं तुम्हें कुछ उपाय बता सकता हूं जिससे कि तुम्हारी सारी धन संपत्ति नष्ट हो जाएगी। जिसके बाद रानी साधु महाराज से कहती है कि कृपया करके मुझे उपाय बताएं ताकि हमारा यह सारा धन संपत्ति नष्ट हो जाए। उसके बाद बृहस्पति देव जोकी साधु के भेष में थे, उन्होंने रानी से कहा कि अगर तुम लगातार सात गुरुवार के दिन अपने घर को गोबर से लिप दोगी, घर के कपड़े को धोबी के यहां धुलवा दोगी, और खाने में मांस मदिरा का सेवन करोगी, तो इससे तुम्हारी सारी धन संपत्ति नष्ट हो जाएगी। उसके बाद तुम चैन से अपनी जिंदगी जी सकोगी। इतना कहते ही साधु महाराज वहां से चले गए।
साधु की बात मानकर रानी वही सारी चीजें करनी लगी, जो कि साधु जी ने उन्हें बताई थी। लेकिन हुआ यह कि रानी को यह काम करते हुए 7 गुरुवार भी नहीं हुए थे तीसरे गुरुवार तक ही उनकी सारी धन संपत्ति नष्ट हो गई, उनकी हालत इतनी बुरी हो गई कि राजा और रानी का पूरा परिवार भोजन तक के लिए तरसने लगा। अपनी हालत राजा से देखी नहीं गई, एक दिन ऐसे ही बैठे हुए राजा रानी से कहते हैं कि अब मुझे बाहर जाकर कोई छोटा कार्य करना होगा। क्योंकि मैं एक राजा हूं, और यहां मुझे सब जानते हैं। इसलिए मैं यहां कोई ऐसा कार्य नहीं कर सकता, ऐसा कहकर राजा परदेस चले जाते हैं, और वहां जाकर जंगल से लकड़ी काटकर उसे बेचकर जीवन यापन करने लगते हैं।
रानी को रहना पड़ा 7 दिनों तक भूखा
राजा इधर बहुत ही ज्यादा मेहनत करके जैसे तैसे जीवन यापन कर रहे थे, और उधर महल में रानी और दासी की हालत बहुत ही ज्यादा खराब थी। वह राजा के बिना बहुत ही ज्यादा दुखी हो गए थे, एक बार की बात है, जब रानी और दासी को लगातार 7 दिनों तक भूखा रहना पड़ा, क्योंकि उनकी सारी धन संपत्ति नष्ट हो चुकी थी। इस बात से रानी बहुत ही ज्यादा परेशान थी। इसलिए वह जल्दी से कहती है कि पास के नगर में मेरी एक बहन रहती है, वह बहुत ही अच्छी और धनवान है। वह हमारी मदद जरूर करेगी। तो उसके यहां जा और कुछ खाने पीने को ले आ कम से कम कुछ दिन हमारी जिंदगी और चल जाएगी।
रानी की आज्ञा पाकर दासी उसकी बहन के यहां चली गई, जब उसके घर पहुंची तो वह दासी ने देखा की रानी की जो बहन है, वह गुरुवार व्रत कथा को बैठकर सुन रही है। लेकिन दासी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया, और वह रानी का संदेश उन्हें देने लगती है। लेकिन उस समय रानी की बहन दासी को कोई भी जवाब नहीं देती है, जिसे देखकर दासी को बहुत ही ज्यादा गुस्सा आ जाता है, और वह वापस रानी के पास चली जाती है, और रानी को यह सारी बात बताती है, कि उनकी बहन ने उनके प्रश्न का कोई भी उत्तर नहीं दिया, जिसके बाद रानी सोचती है कि हमारी किस्मत ही खराब है।
बृहस्पतिवार व्रत कथा (Thursday Vrat Katha)
दूसरी तरफ रानी की बहन यह सोच रही थी कि मेरी बहन ने दासी से कोई संदेश भिजवाया था, लेकिन मैंने उसका उत्तर नहीं दिया। कहीं वह मुझसे नाराज तो नहीं हो गई होगी। यह सोचकर उसने जल्दी-जल्दी कथा सुनी, और पूजा संपन्न किया, और भागी भागी अपने बहन के महल में आई, और जाकर अपनी बहन को सारी बात बताई कि बहन माफ करना कि मैं तुम्हारी दासी को कोई उत्तर नहीं दे पाई। मैं गुरुवार व्रत कथा सुन रही थी, और जब गुरुवार व्रत कथा सुनते हैं उस वक्त न ही बोलना होता है, और ना ही अपने स्थान से उठना होता है, इसलिए मैंने कोई उत्तर नहीं दिया। अब बताओ कि तुमने क्या संदेश भिजवाया था, और मैं तुम्हारी क्या सहायता कर सकती हूं।
अनाज से भरा घड़ा
यह सुनकर रानी अपनी बहन से कहती है कि बहन तुम्हें तो मालूम ही है कि हमारी सारी धन संपत्ति नष्ट हो चुकी है, और अब हमारे पास खाने को एक दाना भी नहीं है, हम भूख से तड़प रहे हैं, तो अब तुम ही बताओ कि हम क्या करें, ऐसा कहते कहते रानी की आंखों में आंसू आ जाते हैं। उसके बाद रानी की बहन रानी से कहा कि तुम चिंता मत करो, बृहस्पति भगवान अपने भक्तों की हमेशा मदद करते हैं, वह तुम्हारी भी मदद जरूर करेंगे। क्या पता तुम्हारे घर में अभी अनाज मौजूद हो, तुम जाकर देखो तो सही। अपनी बहन की यह बात सुनकर रानी को हैरानी होती है, लेकिन वह एक बार अपने घर के रसोई में अपनी दासी को भेजती है, जहां की दासी को अनाज से भरा हुआ एक घड़ा मिल जाता है, जिसे देखकर रानी बहुत ही ज्यादा आश्चर्य हो जाती है।
गुरुवार व्रत कथा विधि (Thursday Vrat Katha Vidhi)
यह देख कर दासी रानी से कहती है कि रानी जी वैसे भी हमारे पास खाने को भोजन नहीं है, तो क्यों ना हम आपकी बहन से गुरुवार व्रत कथा की विधि ही जाने, ताकि हम व्रत करते हुए गुरुवार व्रत कथा का पाठ कर सकें। हो सकता है बृहस्पति देव हमारी भी मनोकामना पूरी कर दें। यह सुनकर रानी अपनी बहन से गुरुवार व्रत कथा की विधि के बारे में पूछने लगती है, जिसके बाद रानी की बहन रानी को बताती है कि गुरुवार के दिन चने की दाल और गुड़ को केले के जड़ में अर्पित करके दीपक जलाकर व्रत कथा सुनना चाहिए, इससे बृहस्पति देव और विष्णु जी बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होते हैं, और हां इस दिन व्रत करने वाले को सिर्फ पीला भोजन ही करना चाहिए, इस प्रकार से तुम गुरुवार व्रत कथा का पाठ करके व्रत रख सकती हो।
गुरुवार व्रत कथा की सारी विधि बता कर रानी की बहन वापस अपने घर आ जाती है। एक हफ्ते गुजर जाते हैं, जब गुरुवार का दिन आता है तब रानी और दासी उनकी बहन के द्वारा बताए हुए तरीके से ही गुरुवार व्रत करने लगती हैं, वह गुड़ और चने की दाल लाती हैं, और केले के पेड़ के जड़ में उन्हें अर्पित करती हैं, और भगवान विष्णु की आराधना करके कथा का पाठ करती हैं। लेकिन चिंता वाली बात थी, पीले भोजन की, क्योंकि उनके पास खाने को कुछ नहीं था, और इस दिन पीला भोजन करना शुभ होता है। तो दोनों ही यूं ही चिंता करते हुए बैठे थे। लेकिन वृहस्पति देव दासी और रानी से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न थे, इसलिए उन्होंने एक साधारण व्यक्ति का वेश धारण किया और रानी और दासी को दो थालियों में पीला भोजन देकर चले गए, जिससे की रानी और दासी बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हो गए। फिर दोनों ने एक साथ बैठकर कुछ भोजन को ग्रहण किया।
बृहस्पति देव की कृपा से हुई धन संपत्ति की प्राप्ति
इसके बाद हर गुरुवार को ही रानी और दासी मिलकर ऐसा ही करने लगे, वह हर गुरुवार को व्रत रखते और बृहस्पतिवार व्रत कथा का पाठ किया करते थे, धीरे-धीरे उनकी सारी धन संपत्ति उनके पास वापस लौट आई, और वह फिर से पहले की तरह बहुत ही ज्यादा अमीर हो गए। लेकिन जैसे ही उनके पास धन संपत्ति आई रानी का आलस पन फिर से शुरू हो गया, जिसके बाद दासी ने रानी को कहा कि तुम पहले भी इस तरह आलस में काम किया करती थी, तुम्हें धन को संभालने में बहुत ही ज्यादा कष्ट होता था, इसलिए हमारी यह हालत हुई थी। लेकिन बृहस्पति देव की कृपा से हमें फिर से धन संपत्ति की प्राप्ति हुई है, अब हमें इस धन का उपयोग अच्छे काम के लिए करना चाहिए। हमें लोगों को दान पूर्ण करना चाहिए, भूखों को खाना और प्यासे को पानी पिलाना चाहिए। इससे हमें पु या मिलेगा। रानी को दासी की यह बात अच्छी लगती है, और वह दासी के कहे अनुसार ही अपने पैसों का दान पुण्य करने लगती है, जिससे कि पूरे नगर में रानी और दासी की इज्जत बढ़ने लगती है लोग उन्हें आशीर्वाद देने लगते है।
बृहस्पति देव पहुंचे लकड़हारे राजा के पास
इधर खुशी-खुशी रानी और दासी अपनी जिंदगी बिताने लगते हैं, लेकिन राजा उधर जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ इस बात को याद करके रोता रहता था, कि उसके पहले के दिन कितने अच्छे हुआ करते थे। 1 दिन की बात है कि वह ऐसे ही एक सुनसान जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठा था, कि तभी बृहस्पति देव फिर से साधु का रूप धारण करके राजा के पास जाते हैं, और उससे पूछते हैं कि तुम इतने सुनसान जंगल में बैठकर क्या कर रहे हो। यह सुनकर राजा साधु महाराज को कहता है, कि अब मैं आपको क्या बताऊं महाराज, मेरी तो पूरी जिंदगी ही बर्बाद हो गई। यह कहते हुए राजा के साथ जो हुआ वह साधु महाराज को बता देते हैं।
राजा की यह बात सुनकर साधु का वेश धारण किए हुए बृहस्पति देव राजा से कहते हैं, कि तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव का अपमान किया था, इसलिए तुम्हें यह सब फल भोगना पड़ा। लेकिन अब तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है, तुम्हारी सारी समस्याओं का हल मेरे पास है। मैं तुम्हें एक उपाय बताऊंगा जिसे करके तुम पहले से भी ज्यादा धनवान बन जाओगे। ऐसा कहने के बाद साधु महाराज लकड़हारे को कहते हैं कि तुम हर गुरुवार के दिन गुरुवार व्रत कथा का पाठ करो, थोड़े से चने के दाल और थोड़े से गुड को लेकर केले के जड़ में उसे अर्पित करो, और उस दिन पीला भोजन करो। ऐसा करने से यह बृहस्पति देव तुमसे प्रसन्न होंगे, और तुम्हारी हर मनोकामना पूर्ण होगी।
ऐसा सुनकर लकड़हारा महाराज से कहता है कि हेम महाराज मुझे लकड़ी बेचकर इतने पैसे नहीं मिलते, कि मैं भोजन के बाद कुछ बचा सकूं, और मैंने कल रात को सपने में अपनी पत्नी को व्याकुल भी देखा है, मैं इतना बेबस हूं कि मैं उसका हाल-चाल भी नहीं पूछ सकता क्योंकि मेरे पास कोई साधन भी नहीं है तो मैं क्या करू।
यह सुनकर साधु महाराज बोले कि तुम किसी बात की चिंता मत करो, तुम ऐसे ही मेहनत करके लकड़ी काट कर ले जाकर बेचो तुम्हें इसके दुगने दाम प्राप्त होंगे। जिससे कि तुम भोजन भी कर सकोगे, और व्रत भी कर सकोगे।
बृहस्पति देव हुए राजा से नाराज
फिर जिस दिन गुरुवार का दिन आया उस दिन लकड़हारा लकड़ी काटकर शहर बेचने गया जहां उसे उसके लकड़ी के दुगने पैसे मिले, जिसके बाद वह उन पैसों से गुड़ और चना लाकर साधु महाराज के द्वारा बताए तरीके से ही गुरुवार व्रत किया और कथा का पाठ किया। जिससे कि धीरे-धीरे उसके पास धन आने लगा, लेकिन जब दूसरा गुरुवार आया, तब राजा व्रत करना भूल गया जिससे कि बृहस्पति देव बहुत ही ज्यादा नाराज हो गए।
राजा को जाना पड़ा कारागार
1 दिन की बात है कि जहां राजा रहता था उसी शहर के राजा ने घोषणा की कि आज हमारे घर में यज्ञ है, इसलिए कोई भी अपने घर में न ही आग जलाएं और ना ही कोई भोजन पकाए। सभी हमारे यहां भोजन करने के लिए आए और जो इस आज्ञा का पालन नहीं करेगा, उसे फांसी लगा दी जाएगी। इस प्रकार की घोषणा राजा ने की।
राजा के घोषणा को सुनकर सभी राज्य के लोग उनके यहां भोजन करने चले गए, लेकिन लकड़हारा वहां कुछ देर से पहुंचा, इसलिए राजा ने लकड़हारे को कहा कि तुम मेरे घर चलो वहां भोजन कर लेना। राजा की बात मानकर लकड़हारा उनके घर चल देता है, तभी राजा की रानी उस खूंटी में देखती है जहां कि उनका हार टंगा हुआ था, लेकिन उनका हार वहां उन्हें नजर नहीं आता, तो उन्हें लगता है कि लकड़हारे ने ही उनकी हार को चुराया है, इसलिए वह सिपाहियों को बुलाकर लकड़हारे को कारागार में डलवा देती है।
राजा कारागार में पड़े हुए यह सोच रहा था की न जाने मैंने कौन सा ऐसा पाप किया था जिसकी वजह से मुझे यह सजा मिल रही है। वह उस साधु महाराज को याद करता है जो कि उसे जंगल में मिले थे। उसी समय फिर से बृहस्पति देव साधु के वेश में लकड़हारे के सामने आए, और उससे कहा कि है मूर्ख तूने गुरुवार व्रत कथा का पाठ क्यों नहीं किया। इसलिए तुझे यह सब भोगना पड़ रहा है, लेकिन उसके बाद वह साधु कहते हैं, कि तू फिर भी चिंता मत कर, अब तुझे हर गुरुवार के दिन कारागार के दरवाजे पर चार पैसे मिलेंगे, तो उन्हीं पैसों की मदद से गुरुवार का व्रत कर। तुझे अपनी सारी समस्या से मुक्ति मिलेगी।
राजा को गुरुवार को कारागार के सामने चार पैसे मिले, जिसकी मदद से उसने व्रत कथा की, उसी रात बृहस्पति देव राजा के सपने में आए और उनसे कहा कि तूने जिस व्यक्ति को कारागार में डाल रखा है, वह निर्दोष है और रानी का हार उसी खूंटी में टंगा है जा कर देख। अगर तूने ऐसा नहीं किया, तो मैं तेरे राज्य को बर्बाद कर दूंगा। सपना के बाद राजा जब सुबह उठे तो उन्होंने देखा कि रानी का हार तो खूंटी में ही टंगा है, उसके बाद उन्होंने लकड़हारे को अपने पास बुलाया, उनसे क्षमा मांगी, और उन्हें सुंदर वस्त्र पहनाकर वापस उन्हें उनके घर के लिए विदा किया।
वृहस्पति देवा ने दी राजा को राज्य जाने की आज्ञा
तभी वृहस्पति महाराज ने लकड़हारे को वापस अपने राज्य जाने को कहा, जिसके बाद लकड़हारा वापस अपने राज्य गया। लेकिन जब वह राज्य पहुंचा, तो उसे देखकर बहुत ज्यादा हैरानी हुई, उसने देखा कि नगर में सुंदर सुंदर बाग बगीचे, कुएं, मंदिर और धर्मशाला बने हुए हैं। यह देखकर जब राजा ने पूछा कि यह सब किसने बनवाया। तो सभी गांव वाले ने कहा कि यह सभी रानी और दासी की कृपा है, जिसे सुनकर राजा को बहुत ही ज्यादा गुस्सा आया।
जब रानी को यह पता चला, कि राजा नगर में वापस लौट आए हैं, तो वह तुरंत दासी को बोलती है कि जा तू दरवाजे पर खड़े रहना, कहीं राजा वापस ना चले जाएं। जब वह आए तो तू उसे उन्हें अपने साथ यहां ले आना। ऐसा ही हुआ राजा वहां आए, तब दासी उन्हें रानी के पास ले आई, लेकिन राजा ने गुस्से में रानी से पूछा कि यह सब कैसे हुआ, तुम्हें इतनी धन-संपत्ति कैसे मिली। तब रानी ने बताया कि यह सब भी हमें बृहस्पति देव की कृपा से मिली है,उनकी कृपा से ही हम फिर से यहां तक पहुंचे हैं।
तभी राजा कहता है, कि हर गुरुवार के दिन तो सभी गुरुवार व्रत करते हैं, और कथा का पाठ करते हैं, लेकिन अब मैं रोज व्रत रखूंगा और रोज दिन में 3 बार इस कथा का पाठ करूंगा। इसके बाद राजा हमेशा अपने दुपट्टे पर चने के दाल और गुड़ रखा करते थे, और दिन में तीन बार इस कथा का पाठ करते थे।
ऐसे ही राजा प्रतिदिन कथा का पाठ करते रहे, एक दिन उन्होंने सोचा कि चलो मैं अपनी बहन से मिलकर आता हूं। यह सोच करके वह घोड़े पर सवार होकर निकल गए, रास्ते में उन्होंने देखा कि कुछ लोग एक मुर्दा आदमी को कहीं लेकर जा रहे हैं, राजा ने घोड़े से उतरकर उन्हें रोका और कहा कि भाइयों तुम मेरी बृहस्पति देव की कथा सुन लो।
कुछ लोगों ने कहा कि यहां एक आदमी मरा पड़ा है, और तुम्हें तुम्हारी कथा की पड़ी है, लेकिन एक आदमी ने कहा कि चलो तुम्हारी कथा सुन ही लेते हैं, देखें तो तुम्हारी कथा में आखिर है क्या, तब राजा अपने हाथ में गुड़ और दाल के चने रखते हैं, और कथा का पाठ करने लगते हैं। जैसे ही राजा आधा कथा का पाठ करते हैं, मुर्दा आदमी हिलने लगता है, और जैसे ही कथा समाप्त होती है, वैसे ही वह मुर्दा आदमी उठ कर बैठ जाता है। यह देखकर सब बहुत ही ज्यादा हैरान हो जाते है।
उसके बाद राजा थोड़ा और आगे जाता है, जहां वह देखते हैं कि एक किसान खेत की जुताई कर रहा होता है, जिसके बाद राजा उस किसान को भी अपनी कथा सुनने को कहता है, लेकिन किसान कहता है कि मेरे पास तेरी कथा सुनने के लिए समय नहीं है, तू जा अपनी कथा किसी और को सुना। जिसके बाद राजा वहां से चला जाता है, लेकिन अचानक ही दोनों बैल खेत में ही गिर गए, और किसान के पेट में तेज दर्द शुरू हो गया।
किसान दर्द से कराह रहा था, तभी उसकी मां वहां रोटी लेकर पहुंची थी, जब उसने अपने बेटे की हालत देखी तो उसे इसकी हालत देखी नहीं गई,लेकिन जब किसान ने उसे राजा और उसके कथा के बारे में बताया, तो उसकी मां दौड़कर राजा के पास गई, और उनसे कथा सुनाने की आग्रह की, उन्होंने राजा को कहा कि तुम मेरे खेत में चल कर अपनी कथा सुनाओ, राजा ने ऐसा ही किया, कथा सुनकर बैल उठ खड़े हुए और किसान का पेट का दर्द भी ठीक हो गया।
राजा अपनी बहन के घर पहुंचा, जहां उसकी बहुत ही अच्छे से खातिरदारी की गई, जब वहां रुक कर सुबह जागा, तो उसने देखा कि सभी भोजन कर रहे हैं, तभी उसने अपनी बहन को कहा कि अगर किसी ने भोजन नहीं किया है तो वह मेरी कथा सुन ले। तो उनकी बहन ने कहा कि यहां सभी पहले भोजन करते हैं, बाद में अपना कार्य करते हैं। लेकिन मैं एक बार पड़ोस में देख आती हूं, अगर किसी ने भोजन ना किया हो तो वह तुम्हारी कथा सुन लेगा।
राजा की बहन ने पड़ोस में देखा, लेकिन उसे ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला जिसने भोजन ना किया हो, तभी वह कुम्हार के घर गई, जिसका लड़का बीमार था, और उन्होंने 3 दिन से भोजन नहीं किया था। तभी राजा की बहन ने कहा कि तुम मेरे भाई की कथा सुन लो, जिसके बाद कुम्हार कथा सुनने के लिए मान जाता है। जिसके बाद राजा उन्हें अपनी कथा सुनाता है, जिसके बाद कुमार का बेटा पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है।
तभी राजा अपनी बहन से कहता है कि मैं अपने घर जा रहा हूं, तुम भी मेरे साथ चलो, तभी राजा की बहन अपनी सास से पूछती है तो उनकी सांस कहती है कि तुझे जाना है तो चली जा, लेकिन तू अपने बच्चों को लेकर मत जाना, क्योंकि तेरे भाई की कोई औलाद नहीं है। जिसके बाद यह बात राजा की बहन राजा को बताती है, तो राजा कहते हैं कि अगर कोई बच्चा नहीं जाएगा तो तुम भी वहां जाकर क्या करोगी।
तभी नाराज होकर राजा अपने राज्य चले जाते हैं, तभी रानी उनसे कहती है कि हे महाराज आप परेशान न हों, वृहस्पति देव ने हमारी इतनी सहायता की है, वह हमें एक सुंदर सी औलाद भी जरूर देंगे। उसी रात्रि वृहस्पति राजा के सपने में आते हैं, और कहते हैं कि तू खुश हो जा तेरी पत्नी पेट से है, तुझे जल्दी एक औलाद की प्राप्ति होगी, इस सपने से राजा बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हो जाते हैं, नौवें महीने में जाकर उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति होती है।
यह समाचार पाकर राजा की बहन भागी भागी उनके महल आती है, तब राजा की पत्नी उनसे कहती है कि तुम राजा के साथ तो यहां नहीं आई, लेकिन इस खबर को पाकर दौड़ी-दौड़ी यहां चली आई ऐसा क्यों, तब राजा की बहन ने कहा कि अगर मैं उस दिन राजा को ऐसा ना कहती, तो भला तुम्हें औलाद की प्राप्ति कैसे होती।
तो दोस्तों यह थी बृहस्पति देव यानी कि गुरुवार व्रत की कथा, जिसका पाठ करने से बृहस्पति देव और विष्णु जी बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होते हैं, और व्यक्ति की सारी मनोकामना पूर्ण करते हैं। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और आपको गुरुवार व्रत कथा करने की विधि के बारे में पूरी जानकारी देते हैं।
[wpdm_package id=’265′]
गुरुवार (Brihaspativar) व्रत कथा का पाठ कब से शुरू करें (Thursday Vrat Katha Ka Path Kab se Start Kare)?
वैसे तो गुरुवार का व्रत गुरुवार के ही दिन ही किया जाता है, लेकिन आपको इस व्रत को शुरू करने से पहले कुछ चीजों का ध्यान रखना चाहिए जैसे कि आप चाहे तो किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के पहले गुरुवार से ही इस व्रत का संकल्प लेकर इस व्रत को करना शुरू कर सकते हैं। लेकिन आपको कभी भी पौष मास के गुरुवार को इस व्रत को शुरू नहीं करना चाहिए, अगर आपने किसी और महीने में इस व्रत को शुरू किया है ,तब तो आप पौष महीने में यह व्रत आसानी से कर सकते हैं, लेकिन पौष महीने में आपको इस व्रत का संकल्प नहीं लेना है। अगर बात करें नक्षत्र की तो आप अनुराधा नक्षत्र वाले गुरुवार को बिना किसी परेशानी के इस व्रत का संकल्प लेकर इस व्रत को शुरू कर सकते हैं, इससे आपको भगवान विष्णु और वृहस्पति देव की विशेष कृपा प्राप्त होगी।
गुरुवार (Brihaspativar) व्रत कथा विधि (Thursday vrat katha vidhi)
1; अगर आप भी गुरुवार के दिन व्रत रखकर व्रत कथा का पाठ करके विष्णु जी को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो इसके लिए सबसे पहले गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं, और स्नान आदि का कार्य करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। अगर आप पीले वस्त्र धारण करेंगे तो बहुत ही शुभ होगा।
2: इसके बाद आपको विष्णु जी की एक प्रतिमा को केले के पेड़ के नीचे रखना है, और उन्हें प्रणाम करना है, यानी कि उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना है।
3; इसके बाद आपको विष्णु जी को पीले चीजें अर्पित करनी है, जैसे की पीले वस्त्र, पीले फूल, पीले फल आदि आपको विष्णु जी को अर्पित करने हैं।
4: इसके बाद अपने हाथ में थोड़े से चावल और शुद्ध जल लेकर अपने व्रत का संकल्प करें, और उसके बाद एक पात्र में पानी ले और उस में हल्दी डालकर उस पानी को केले के पेड़ के जड़ में डाल दें।
5: इसके बाद थोड़ा सा गुड और थोड़े से चने की दाल को लेकर भी केले के पेड़ के जड़ के पास रख दें।
6: इतना करने के बाद आप विष्णु भगवान की व्रत कथा जो हमने आपको ऊपर बताई है, उसका पाठ करें, ध्यान रहे कि सच्चे दिल और निस्वार्थ भाव से ही इस कथा का पाठ करें तभी आपको इसका फल प्राप्त होगा।
7: कथा का पाठ करने के बाद विष्णु जी की आरती करें, या फिर उनकी पूजा करें, और दिन भर में एक बार ही भोजन करें, और ध्यान रहे कि भोजन में आपको पीली चीजें ही ग्रहण करनी है।
गुरुवार (Brihaspativar) व्रत कथा के नियम (Thursday Vrat Katha Ke Niyam)
दोस्तों ऐसे कई सारे नियम होते हैं जिनका गुरुवार के दिन व्रत रखकर कथा का पाठ करने से पहले ध्यान देना जरूरी है। अगर आप इन सभी नियमों का पालन करके गुरुवार का व्रत करते हैं, तभी आपको विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है।
1: जब भी आप गुरुवार के दिन व्रत रखकर कथा का पाठ करना चाहे, तो उस दिन आपको याद रखना चाहिए कि उस दिन आपको दिन भर में केले का सेवन नहीं करना है, क्योंकि इस दिन केले की पेड़ की पूजा की जाती है, क्योंकि केले के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है, इसलिए भूलकर भी केले का सेवन ना करें।
2: जब भी आप गुरुवार के दिन व्रत और विष्णु जी की पूजा करें, तो इस बात का भी विशेष तौर पर ध्यान रखें कि उस दिन आपको अपने नाखून, बाल, और दाढ़ी को नहीं कटवाना है और ना ही खुद से काटना है। इस दिन बाल दाढ़ी और नाखून काटना मना होता है।
3: गुरुवार के दिन आपको कपड़े भी नहीं धोने चाहिए, और ना ही आपको अपने बाल धोने चाहिए। अगर आपको यह सब काम करना है तो आप अगले दिन कर सकते हैं।
4: अगर आप गुरुवार के दिन व्रत कर रहे हैं तो आपको कभी भी गुरुवार के दिन अपने घर को गोबर लिपाई नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस दिन गोबर से लिपाई करना शुभ नहीं माना जाता।
5: जैसा कि हमने आपको बताया कि इस दिन आपको पीले रंग के भोजन करना चाहिए, इसलिए आपको इस दिन उड़द की दाल और चावल खाने से परहेज करना है।
गुरुवार (Brihaspativar) व्रत के फायदे के व्रत कथा के फायदे (Thursday Vrat ke kya Fayde hai)?
जैसा कि हमने ऊपर ही आपको बताया था कि गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है, साथ ही साथ यह दिन बृहस्पति देव को भी समर्पित होता है। तो इस दिन अगर आप गुरुवार व्रत कथा का पाठ करते हैं, तो इससे आपको भगवान विष्णु की तो विशेष कृपा की प्राप्ति होती ही है, साथ ही साथ आपको लक्ष्मी जी की भी कृपा प्राप्त होती है। जिससे कि आपके घर में हमेशा धन-संपत्ति बनी रहती है, आपको कभी भी धन की समस्या नहीं होती है। इसी के साथ साथ आपके घर में हमेशा सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है, और घर में खुशी का माहौल रहता है।
इतना ही नहीं, अगर आपके जीवन में आपको विवाह से संबंधी कोई समस्या है, तो आपको इस कथा का पाठ करना चाहिए, इस कथा का पाठ करने से व्यक्ति को उनका मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है। क्योंकि गुरुवार का दिन बृहस्पतिवार को समर्पित होता है, तो इस दिन व्रत करने से आपके कुंडली में गुरु ग्रह की दशा भी मजबूत रहती है, जिससे कि आपके कार्य में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती है।
[wpdm_package id=’265′]
- सावन सोमवार व्रत कथा, व्रत विधि, नियम, कब से शुरू – संपूर्ण जानकारी
- सोलह(16) सोमवार व्रत कथा, विधि, नियम,कब से शुरू करें – संपूर्ण जानकारी
- परिवर्तनी एकादशी व्रत कथा,फायदे,व्रत विधि,नियम,उद्यापन,क्या खाना चाहिए PDF Download
- सत्यनारायण व्रत कथा,नियम,फल PDF Download in Hindi
- एकादशी व्रत क्या है, नियम, फल, दान, उद्यापन PDF Download in Hindi
- साई व्रत कथा, क्या फल,नियम,उद्यापन PDF Download
- वट सावित्री व्रत कथा, नियम, फल PDF Download in Hindi
- दुर्गा चालीसा PDF Download, फायदे, नियम, चमत्कार
- सोमवार व्रत कथा,क्या फल,नियम PDF Download
- पूर्णमासी व्रत कथा,फल,नियम PDF Download
- करवा चौथ व्रत कथा, फल,नियम PDF Download in Hindi
- अहोई अष्टमी व्रत कथा (Ahoi Vrat Katha PDF Download)
- महालक्ष्मी व्रत कथा, पूजा विधि, नियम, उद्यापन विधि, फायदे PDF Download
- हरतालिका तीज व्रत कथा, विधि, नियम, फायदे PDF Download in Hindi
- विष्णु, बृहस्पतिवार (Thursday) व्रत कथा, विधि, नियम, फायदे Pdf Download in Hindi
- पशुपतिनाथ व्रत कथा और पशुपतिनाथ व्रत की विधि PDF Download in Hindi
