जीवित्पुत्रिका व्रत कथा, पूजा विधि, नियम, फायदे, पारण विधि PDF Download Hindi

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दोस्तों क्या आप भी हिंदू धर्म से हैं, यानी कि क्या आप भी एक सच्चे हिंदुस्तानी हैं, अगर हां, तो आपको हमारे हिंदू धर्म में व्रत के महत्व के बारे में तो बताने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह सभी को मालूम है कि हमारे हिंदू धर्म में यानी कि सनातन धर्म में व्रत का कितना ज्यादा महत्व होता है। खासकर महिलाएं तो व्रत को पूरा विधि विधान से पूरी करती है। हर एक व्रत का अलग-अलग फायदा और महत्व होता है, हर एक व्रत से उन्हें अलग-अलग फल प्राप्त होते हैं। आज हम आपको आज के इस आर्टिकल में जीवित्पुत्रिका व्रत के बारे में बताने वाले हैं, क्या आपने इससे पहले कभी जीवित्पुत्रीका के व्रत के बारे में सुना है? अगर नहीं सुना, तो हम आपको बता दें कि यह भी हमारे हिंदू धर्म में किए जाने वाले महत्वपूर्ण व्रत में से एक हैं, अगर आपको भी इसके बारे में पूरी जानकारी चाहिए, तो इस आर्टिकल को आखिरी तक जरूर पढ़ें। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और शुरू करते हैं।

जीवित्पुत्रिका व्रत क्या है और इसे कब मनाया जाता है (Jivitputrika Vrat Katha Kya Hai aur isko Kab Manayajata hai)?

तो दोस्तों अगर बात करें जीवित्पुत्रिका व्रत की, तो हम आपको बता दें कि इसे और कई नामो से जाना जाता है, जैसे कि से जितिया व्रत और इसे जिउतिया व्रत भी कहा जाता है। खासतौर पर इसे महिलाएं ही करती है, अगर बात करें कि इसे किस दिन मनाया जाता है, तो हम आपको बताना चाहेंगे कि इसे आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, वैसे तो नियमानुसार इस व्रत को तीन दिनों तक किया जाता है, शुरू वाले दिन आपको सिर्फ नहाना और खाना होता है, दूसरे दिन आपको निर्जला व्रत रखना होता है, और तीसरे दिन आपको अपने व्रत का पारण यानी कि अपने व्रत को खोलकर इस व्रत को पूरा करना होता है, और एक और बात, की इस व्रत के दौरान आपको जीवित्पुत्रीका व्रत कथा का भी पाठ करना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है, तब जाकर आपको इस व्रत का पूरा फल मिलता है।

इस व्रत को महिलाएं अपने संतान की लंबी आयु और अपने संतानों की खुशी के लिए करती हैं। तो अगर आप भी एक विवाहित महिला है, और आपका भी कोई पुत्र है, तो आपको भी इस व्रत को जरूर करना चाहिए। तो अगर आप इस व्रत को करना चाहते हैं, तो आपको इसके लिए कई चीजों के बारे में ध्यान रखना होगा, इसके बारे में भी हमने आपको आगे बताया है। इसलिए इस आर्टिकल में आखिरी तक बन रहे चलिए आगे बढ़ते हैं।

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा (Jivitputrika Vrat Katha)

दोस्तों जैसा कि ऊपर हमने आपको इस व्रत के बारे में बताया, और हमने आपको यह भी कहा कि इस व्रत के दौरान आपको आवश्यक रूप से जीवित्पुत्रिका व्रत कथा की पाठ करना चाहिए, ऐसा इसलिए, क्योंकि इस कथा के बारे में शिव जी ने स्वयं पार्वती जी को बताया था, और कहा जाता है कि जो भी महिला इस व्रत को करके इस कथा का पाठ करती है, उसकी संतान की आयु लंबी रहती है, और उसे किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होती है। तो चलिए अगर आप भी इस कथा का पाठ करना चाहते हैं, तो नीचे हमने इस कथा के बारे में आपको पूरी जानकारी दी है।

कथा:

दोस्तों यह कहानी है गंधर्व राज जीमूतवाहन की,

असल में यह गंधर्वों के एक राजकुमार थे, जोकी बहुत ही ज्यादा परोपकारी और बहुत ही ज्यादा दयालु थे, उन्हें किसी भी बात का घमंड नहीं था। एक दिन की बात है, जब जीमूतवाहन के पिता जी ने जीमूतवाहन को सिंहासन पर बिठाकर जंगल में रहने का फैसला किया, और उन्होंने ऐसा ही किया, वे जीमूतवाहन को सिंहासन पर बिठाकर खुद जंगल में रहने लगे।

जीमूतवाहन ने भी जंगल जाने का फैसला लिया।

ऐसे ही दिन बीतने लगे, लेकिन जीमूतवाहन को राज गद्दी बिल्कुल भी पसंद नहीं आई, तो उन्होंने अपनी राजगद्दी अपने भाइयों को शौप दी और वह भी इस जंगल में आ गए, जहां की उनके पिता जी निवास करते थे, ताकि वह उनकी सेवा कर सकें। इतना ही नहीं जीमूतवाहन ने विवाह भी जंगल में ही किया उनका विवाह एक मलयवती नामक कन्या से हुआ था।

जीमूतवाहन ने जंगल में नाग माता को रोते हुए देखा

एक दिन की बात है, जब जीमूतवाहन जंगल में भ्रमण कर रहे थे। जब वह जंगल में भ्रमण कर रहे थे तो उन्हें कहीं से रोने की आवाज सुनाई दी, उन्होंने उस आवाज का पीछा किया, तो उन्होंने देखा कि आगे नाग माता रो रही है। उन्हें देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि आखिर इस जंगल के बीच में नाग माता रो क्यों रही है। वे नाग माता के पास गए, और उन्होंने नागमता से उनके रोने का कारण पूछा। इसके बाद नाग माता ने जीमूतवाहन को बताया, कि मैं नाग माता हूं, मेरा एक पुत्र है, आप गरुण के बारे में तो जानते ही होंगे, वह हमेशा अपने खाने के लिए हमारे साम्राज्य का सामूहिक रूप से शिकार करते हैं।

इसलिए हमारे नागवंशों ने हमारे वंश को बचाने के लिए गरुण से एक सौदा किया है, जिसके बदले वह गरुण को रोज एक नाग उन्हें खाने हेतु देंगे, जिससे कि गरुण हमारा सामूहिक रूप से शिकार नहीं करेंगे। नाग माता ने यह भी कहा की नागवंशों के वादों के अनुसार आज मेरे पुत्र को गरुण को समर्पित करना होगा, इसलिए मैं रो रही हूं।

जीमूतवाहन मैं नाग माता को दिया पुत्र की रक्षा करने का आश्वासन

इतना सुनने के बाद जीमूतवाहन को बहुत दुख हुआ, उन्होंने नाग माता को कहा कि हे नाग माता, आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। मैं आपके पुत्र को कुछ भी नहीं होने दूंगा। मैं आपकी पुत्र की रक्षा जरूर करूंगा। यह मैं आपको विश्वास दिलाता हूं। उसके बाद नाग माता ने कहा, की बेटा तुम आखिर मेरे पुत्र की रक्षा कैसे करोगे। इसके बाद जीमूतवाहन ने कहा, कि आज मैं उस शीला पर आपके पुत्र की जगह लेट जाऊंगा, और आपकी पुत्र की रक्षा करूंगा। उसके बाद जीमूतवाहन ने ऐसा ही किया, उन्होंने नाग माता के पुत्र से लाल रंग का कपड़ा लिया, और उसे अपने ऊपर ढक कर उसी शीला ऊपर लेट गए जहां की गरुड़ आकर अपना खाना लेकर जाता था।

गरुण जीमूतवाहन को उड़ाकर ले गया

उसके बाद वैसा ही हुआ, रोज की तरह ही गरुण उस शीला के पास आया, और शीला में उस लाल कपड़े के अंदर ढके हुए जिमुतवाहान को अपने पंजों में दबाकर उड़ाकर ले गया। लेकिन जब वह पंजे में अपने शिकार को लेकर उड़ रहा था, तब उसे मार्ग में ही शंका हुई, क्योंकि उसका शिकार बिल्कुल भी छटपटा नहीं रहा था, और ना ही किसी प्रकार की आवाज आ रही थी। इसलिए उसने शंका में उस लाल कपड़े को हटाकर देखा, तो उसने देखा तो लाल कपड़े के अंदर कोई नाग नहीं बल्कि यह तो जीमूतवाहन है, इसके बाद उसने से पूछा कि आखिर तुम इसके अंदर क्या कर रहे हो, जिसके बाद जीमूतवाहन ने गरुण को सारी बातें बता दी, कि वह नाग माता के पुत्र की रक्षा करने के लिए अपनी बलि देने को तैयार है।

गरुण को हुआ अपनी गलती का एहसास

यह सुनकर गरुण को अपनी गलती का एहसास हुआ, उसका मन द्रवित हो गया, उसने सोचा कि आखिर यह कैसा मनुष्य है, जो किसी दूसरे को बचाने के लिए अपनी बलि देने को तैयार है। जीमूतवाहन के इस साहसी कार्य को देखकर गरुड़ बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुआ, जिसके बाद वरुण ने जीमूतवाहन को वादा किया, कि तुम्हें अपनी बलि देने की कोई भी जरूरत नहीं है, मैं तुमसे वादा करता हूं मैं आज के बाद नागों को ना ही परेशान करूंगा और ना ही उनका शिकार करूंगा। इस प्रकार से जीमूतवाहन के साहसी कार्य की वजह से नागवंशों के सभी नागों की रक्षा हुई तथा नागमाता ने अपने पुत्र को भी वापस प्राप्त कर लिया।

तो दोस्तों इसलिए इस व्रत का महत्व बहुत ही जाता है, इसलिए महिलाएं इस व्रत को करके अपने बच्चों की लंबी लंबी उम्र और खुशी की मनोकामना मांगती है, और वह पूरी भी होती है। जीमूतवाहन के कारण ही इस व्रत को जितिया या फिर जिउतिया के नाम से जाना जाता है, साथ-साथ इस जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, तो अगर आप भी इस व्रत को करने के बारे में सोच रहे हैं, तो इस कथा का पाठ करें बिना इस व्रत को ना करें।

जीवित्पुत्रीका व्रत पूजा विधि (Jivitputrika Vrat Puja Vidhi)

तो दोस्तों अगर आप जीवित्पुत्रिका का व्रत करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको इसकी पूजा विधि जानना बहुत ही ज्यादा जरूरी है, क्योंकि यह व्रत करना थोड़ा कठिन होता है, क्योंकि इसमें आपको निर्जला व्रत रखना होता है। इसलिए इसमें आपके द्वारा की गई छोटी सी गलती भी आपकी सारी मेहनत को बर्बाद कर सकती है। इसलिए अच्छा रहेगा कि आप इस व्रत को शुरू करने से पहले इस व्रत की विधि के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर लें, ताकि आपको किसी भी प्रकार की परेशानी ना हो। तो चलिए आपको जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

1: तो दोस्तों जैसा कि हमने आपको बताया कि इस व्रत की अश्विन माह के शुक्ल पक्ष के अष्टमी तिथि को किया जाता है, तो इस दिन आपको सूर्योदय से पहले उठ जाना है, और स्नान आदि का कार्य करके साफ सुथरे वस्त्र धारण करने हैं।

2: दोस्तों जैसा कि हमने आपको बताया कि इस व्रत में आपको निर्जला व्रत करना पड़ता है, यानी कि इस पूरे व्रत के दिन के दौरान आपको न ही अन्न ग्रहण करना है, और ना ही आपको जल ग्रहण करना है। वैसे तो इस व्रत के पहले दिन आप दिन में एक बार भोजन कर सकते हैं, दूसरे दिन आपको निर्जला व्रत रखना है, और तीसरे दिन इस व्रत का आपको पारण करना है।

3: इसके बाद आपको अपने पूजन स्थान में जाना है, और हो सके तो आपको उस स्थान को गाय के गोबर से लिप देना है।

4: इतना करने के बाद आपको उस स्थान में मिट्टी की मदद से एक तालाब का निर्माण करना है, और उस तालाब के किनारे में ही आपको एक पेड़ की डाली को लगा देना है।

5: इतना करने के बाद आपको कुश यानी की घास की मदद से जिमुतवाहन का एक पुतला तैयार करना है, और उस पुतले को आपको अपने पूजा स्थान में उस जल के ऊपर ही विराजमान कर देना है। आप इस पुतले या प्रतिमा को लाल और पीले रुई से जरूर सजाए।

6: इतना करने के बाद आपको जीमूतवाहन जी की पूजा करनी है, पूजा करने के लिए आप जीमूतवाहन को विभिन्न चीज जैसे की फूल, फल, दीप, बत्ती, अक्षत यानि कि चावल, हल्दी, बाद के पत्ते आदि अर्पित करें, और साथ में उन्हें फूलों की एक माला भी चढ़ाए।

7: इतना करने के बाद आपको गाय के गोबर और मिट्टी की मदद से एक मादा चील और एक मादा सियारिन की प्रतिमा तैयार करनी है, प्रतिमा तैयार करने के बाद आपको दोनों को सिंदूर लगाना है।

8: चील और सियारिन को सिंदूर लगाने के बाद आप उन्हें खीरा का भोग अवश्य लगावे। इसी के साथ आप उन्हें चूड़ा दही भी अर्पित कर सकते हैं।

9: इतना करने के बाद आप उस कथा का पाठ करें, जिसका पाठ इस व्रत वाले दिन यानी कि जीवित्पुत्रिका व्रत वाले दिन किया जाता है, यानी कि वही जीवित्पुत्रिका व्रत कथा जो कि हमने ऊपर आपको बताई है।

10: इतना करने के बाद आपको दिन भर कुछ भी ग्रहण नहीं करना है, अगले दिन ही आपको अपने व्रत का पारण करना है जिसकी विधि भी हम आपको इस आर्टिकल में आगे बताने वाले हैं।

जीवित्पुत्रिका व्रत के नियम (Jivitputrika Vrat Ke Niyam)

जब भी आप कोई व्रत करते हैं, तो उसके कुछ नियम होते हैं, तो उसी प्रकार जीवित्पुत्रिका व्रत के भी कुछ नियम है, जिनका अगर आपने पालन नहीं किया, तो आपका व्रत व्यर्थ ही चला जाएगा, यानी कि आपको इस व्रत का कोई भी फल नहीं मिलेगा। इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपको आपके व्रत का पूरा-पूरा फल मिले, तो नीचे हमने आपको जिन बातों के बारे में बताया है, उन सभी बातों का पालन करके ही इस व्रत को पूरा करें।

1: जैसा कि हिंदू धर्म में सभी व्रत को बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है, कोई भी व्रत छोटा या बड़ा नहीं होता। और रही बात जीवित्पुत्रिका व्रत की तो बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है, इसलिए अगर आप इस व्रत को कर रहे हैं तो इस व्रत के पूरे समय अवधि आने की तीन दिनों में आपको ताप्सिक भोजन यानी कि लहसुन प्याज का सेवन नहीं करना है, आपको ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा।

2: दोस्तों अगर आपने एक बार जीवित्पुत्रिका व्रत को करने का संकल्प ले लिया है, तो कोशिश कीजिए कि हर साल आप विधि विधान से इस व्रत को पूरा करें, और इस व्रत का पालन करें। कहां जाता है की सबसे पहले घर में यह व्रत सास करती है, उसके बाद आने वाले समय में घर की बहू के द्वारा इस व्रत को विधि विधान से पूरा किया जाता है।

3: जैसा कि हमने आपको बताया था कि यह व्रत बहुत ही कठिन व्रती में से एक माना जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि यह एक निर्जला व्रत है। जिसमें की आपको जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करनी होती है, इसलिए अगर आपको स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है तो आप इस व्रत को ना करें वरना आपके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।

4: इस व्रत के दौरान आपको संयम से कम लेना चाहिए, इस दौरान आपको किसी भी लड़ाई झगड़ा या फिर विवाद में नहीं उलझना चाहिए, क्योंकि इससे नकारात्मक उर्जा उत्पन्न होती है।

5: क्योंकि किसी भी देवी देवता के व्रत में मांस मदिरा आदि सेवन करना वर्जित होता है, इसलिए इस व्रत में भी यह ध्यान रखें कि आप और आपके घर के कोई भी सदस्य मास मदिरा का सेवन न करें।

जीवित्पुत्रिका व्रत के दौरान क्या खाना चाहिए और क्या नहीं (Jivitputrika Vrat mai Kya Khana chiye aur kya nahi khana chiye)?

तो दोस्तों जैसा कि हमने आपको पहले से ही बता दिया कि यह व्रत तीन दिनों का होता है, तो अगर बात करें इस व्रत के दौरान आपको क्या खाना चाहिए, और क्या नहीं, तो हम आपको बता दें कि जिस दिन से आप इस व्रत को शुरू कर रहे हैं, उस दिन से ही आपको तापसीक भोजन यानी कि लहसुन प्याज से दूरी बनाकर रखनी चाहिए, यानी कि आपको इनका सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए, और रही बात व्रत के दौरान खाने पीने की, तो मुख्य दिन तो आपको न ही जल ग्रहण करना होता है, और ना ही अन्न। लेकिन अगले दिन सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद आप व्रत पारण करके भोजन ग्रहण कर सकते हैं। उसमें भी आपको नियम अनुसार ही भोजन करना चाहिए, व्रत पारण के बाद चावल, मरवा का रोटी और नोनी की सब्जी ही खाने का नियम है, इसलिए इस भोजन को करके आप आसानी से अपने व्रत के बाद भोजन ग्रहण कर सकते हैं। 

जीवित्पुत्रिका व्रत के फायदे (Jivitputrika Vrat Ke Fayde)

अगर बात करने जीवित्पुत्रिका व्रत करने से महिलाओं को विशेष तौर पर क्या फायदे होते हैं, तो हम आपको बता दें कि हमेशा महिलाएं इस व्रत को अपने संतानों यानी कि अपने पुत्र पुत्री के दीर्घायु यानी की लंबी आयु के लिए करती है।  ताकि उनकी आयु लंबी हो सके। इतना ही नहीं, इस व्रत को अगर विधि विधान से पूरा किया जाए, तो आपके संतानों के जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या नहीं आती है, उनका जीवन खुशी से गुजरता है।

इतना ही नहीं, अगर आप नि: संतान है, और आपको संतान चाहिए, तो भी आप इस व्रत को कर सकते हैं, कहा जाता है कि इस व्रत को करने से आपको संतान की भी प्राप्ति होती है, और उस पुत्र का जीवन भी साकार होता है। इसलिए इस व्रत के एक नहीं अनेकों फायदे हैं, बस आपको इस व्रत को सच्चे मन और निस्वार्थ भाव से करना चाहिए, क्योंकि यही नहीं चाहे आप दुनिया को कोई भी व्रत करें, उसमें अगर आप स्वार्थ के भाव से उस व्रत को करते हैं तो आपको व्रत का फल बिल्कुल भी नहीं मिलता है, इसलिए बिना स्वार्थ के सच्चे मन से इस व्रत को पूरा करें आपको जरूर फायदा होगा।

जीवित्पुत्रिका व्रत पारण विधि (Jivitputrika Vrat Paran Vidhi)

तो दोस्तों जैसे कि ऊपर हमने आपको जीवित्पुत्रिका व्रत को शुरू करने के बारे में बताया, तो उसी तरह से हम आपको यह भी बता दे कि आप इस व्रत का पारण किस प्रकार से कर सकते हैं, क्योंकि इस व्रत के पहले दिन नहाए खाए यानी कि सिर्फ स्नान करना होता है, जिसके बाद स्त्री भोजन ग्रहण करती है, इसके दूसरे दिन यानी कि इस व्रत के मुख्य दिन पूरे दिन महिला को निर्जला व्रत रखना होता है, जिस दौरान उसे ना ही कुछ खाना होता है, और ना ही कुछ पीना होता है। इसलिए इस व्रत को बहुत ही ज्यादा कठिन व्रती में से एक भी माना जाता है, और बात आती है पारण की, तो उसे इस व्रत के तीसरे दिन करना होता है। तो अगर बात करें तीसरे दिन की तो इसके लिए आप हमारे द्वारा बताए गए तरीके से ही फिर से तीसरे दिन की पूजा कर सकते हैं, इसके बाद आपको सूर्य देव को जल यानी कि अर्घ्य देने के बाद ही इस व्रत का पारण करना होता है।

तो दोस्तों ध्यान रहे कि जब भी आप इस व्रत को करें, तो अगले दिन सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद ही आप इस व्रत का पारण करें, यानी कि उसके बाद ही भोजन करें, और इस बात का भी ध्यान रखें कि इस दिन आपको तापसीक भोजन ग्रहण नहीं करना है।

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