तो दोस्तों कैसे हैं आप लोग, स्वागत है आपका आज के हमारे एक और नए आर्टिकल में, दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम आपको नवरात्रि व्रत और नवरात्रि व्रत कथा के बारे में पूरी जानकारी देने वाले हैं। अगर आप हिंदू धर्म से हैं, तो आपको नवरात्रि के बारे में तो पहले से ही मालूम होगा, और हो सकता है कि आपको पहले से ही नवरात्रि में करने वाले व्रत के बारे में भी जानकारी हो। लेकिन आपको यह ना पता हो कि वह कैसे किया जाता है।
अगर आपकी भी कुछ ऐसे ही समस्या है, तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आज के इस आर्टिकल में हम आपको नवरात्रि व्रत और नवरात्रि व्रत कथा के बारे में शुरू से लेकर आखिरी तक जानकारी देने वाले हैं, जैसे की नवरात्रि क्या है? नवरात्रि व्रत क्या है? नवरात्रि व्रत कथा क्या है? इसके महत्व क्या है? इसकी विधि क्या है? आदि इन सभी चीजों के बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बताने वाले हैं। तो अगर आपको भी यह सभी चीज जानना है, तो इसके लिए आपको हमारे इस आर्टिकल को आखिरी तक पढ़ना होगा। तो चलिए आगे बढ़ते हैं और शुरू करते हैं।
नवरात्रि व्रत क्या है (Navratri Vrat Kya Hai)?
तो दोस्तों इससे पहले कि हम आपको नवरात्रि व्रत के बारे में बताएं, उससे पहले हम आपको नवरात्रि के बारे में कुछ बातें बताना चाहेंगे, ताकि आपको इसे समझने में आसानी हो। वैसे तो इसके बारे में आपको ज्यादा जानकारी देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अगर आप भारत से हैं और हिंदू धर्म के हैं तब तो आपको इसके बारे में पूरी जानकारी होगी। अगर नहीं मालूम है तो हम आपको बता दें कि नवरात्रि में 9 दिनों तक माता दुर्गा के अलग-अलग अवतारों की पूजा की जाती है, कहा जाता है कि इस दिन माता दुर्गा अपने अलग-अलग रूप में धरती पर प्रवेश करती है और लोगों का कल्याण करती हैं।
अगर बात करें इसे कब मनाया जाता है, तो हम आपको बता दें कि इसे अश्विनी माह के प्रतिपदा अवधि को मनाया जाता है जो की लगातार 9 दिनों तक चलता है यानी कि यह नवमी तिथि तक मनाया जाता है। अगर बात करें महीने की, तो हर साल सितंबर अक्टूबर में ही नवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है, वैसे तो साल में हम दो बार नवरात्रि का त्यौहार मनाते हैं, लेकिन सितंबर अक्टूबर में मानने वाले नवरात्रि का पूरे भारतवर्ष में बहुत ही ज्यादा महत्व होता है, क्योंकि इसी दिन दुर्गा माता ने महिषासुर का वध किया था।
तो दोस्तों आप बात करते हैं नवरात्रि व्रत की, तो हम आपको बता दें कि नवरात्रि का त्योहार लगातार 9 दिनों तक होता है, जिसमें की दुर्गा माता की अलग-अलग अवतारों की पूजा आराधना की जाती है। इस दौरान लोग खासकर महिलाएं दुर्गा माता को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखती हैं, और साथ ही व्रत कथा का पाठ भी करती हैं। कई लोग तो इसमें नौ दिनों तक लगातार बिना कुछ खाए पिए सिर्फ फलाहार करके ही व्रत करते हैं, लेकिन आप चाहे तो दिन में एक बार भोजन करके इस व्रत को कर सकते हैं। वरना आपकी सेहत पर बुरा असर हो सकता है।
तो दोस्तों अगर आप भी इस बार आने वाले नवरात्रि में लगातार 9 दिनों तक व्रत रख कर दुर्गा मां को प्रसन्न करने के लिए व्रत तथा व्रत कथा का पाठ करना चाहते हैं, तो चलिए आगे बढ़ते हैं और आपको व्रत कथा और व्रत से जुड़ी और कुछ जानकारी देते हैं, ताकि आप सफलता पूर्वक इस व्रत को पूरा कर सकें।
नवरात्रि व्रत कथा (Navratri Vrat Katha)
तो दोस्तों अगर आप नवरात्रि व्रत कर रहे हैं, तो यह बहुत ही जरूरी है कि आप व्रत के दौरान नवरात्रि व्रत कथा का पाठ करें। क्योंकि इस व्रत कथा का पाठ करे बिना आपको कभी भी आपके व्रत का पूरा फल नहीं मिलता है। यह नियम है कि आपको व्रत के दौरान इस कथा का पाठ करना होगा, तो अगर आप भी व्रत करने के दौरान इस कथा का पाठ करना चाहते हैं, तो चलिए आगे बढ़ते हैं और हम आपको उस कथा के बारे में आपको बता देते हैं जिसका पाठ आपको नवरात्रि व्रत में करना है।
बृहस्पति जी और ब्रह्मा देव के बीच वार्तालाप
असल में हमें नवरात्रि व्रत कथा के बारे में बृहस्पति जी एवं ब्रह्मा जी के वार्तालाप से पता चलता है, जिसमें की एक दिन बृहस्पति जी ब्रह्मा जी से नवरात्रि के महत्व को जानने के लिए कई सवाल करते है, जैसे की नवरात्रि व्रत क्या है? इसे करने से हमें क्या फल मिलता है? इतना ही नहीं इस व्रत को किस प्रकार से किया जाता है? और इस व्रत को सबसे पहले किसने किया था? इस प्रकार के प्रश्न बृहस्पति जी ने ब्रह्मा जी को किया, जिसके बाद ब्रह्मा जी ने बृहस्पति जी को जवाब देते हुए कहा कि हे बृहस्पति जी तुमने प्राणियों के कल्याण हेतु एक बहुत ही अच्छा प्रश्न किया है, क्योंकि जो भी व्यक्ति नवरात्रि का व्रत रखता है, और दुर्गा मां की पूजा आराधना करता है, उसकी सारी मनोकामना पूर्ण करती है, यानी की यह नवरात्रि का व्रत लोगों की मनोकामना को पूर्ण करने वाला व्रत है।
इसके बाद ब्रह्मा जी बृहस्पति जी को इस व्रत के फायदे बताते हुए कहते हैं, कि ही बृहस्पति, जो भी नवरात्रि के इस व्रत को करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है, और उसे हर चीज जैसे कि धन-धान्य, संपत्ति, संतान, सुख, और विद्या की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं नवरात्रि का व्रत करने से व्यक्ति के सारे पाप भी माफ हो जाते हैं, और उसे मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है। इस व्रत का महत्व इतना ज्यादा है कि इस व्रत को करके कथा का पाठ करने से नि: संतान को भी संतान की प्राप्ति हो जाती है।
लेकिन इसी के विपरीत अगर कोई इस व्रत को नहीं करता है, तो उसे कई प्रकार के दुख और पीड़ा भोगने पड़ते हैं। अगर कोई महिला इस व्रत को नहीं करती है, तो उसे हमेशा पति के सुख से वंचित रहना पड़ता है, दोनों के बीच रिश्ता अच्छा नहीं होता है, और रही बात इस इस व्रत को सबसे पहले किसने किया था, तो चलो इसके लिए सबसे पहले मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं, जिसकी मदद से आप समझ जाएंगे कि इस व्रत को सबसे पहले किसने किया था और इसका महत्व क्या है।
ब्रह्मदेव बृहस्पति जी को कथा सुनाते हैं
इतना कहने के बाद ब्रह्मा जी बृहस्पति जी को कथा सुनाने लगते हैं ब्रह्मा जी कहते हैं–
यह बात है बहुत समय पहले की, जब एक मनोहर नामक गांव में एक पीठत नाम का ब्राह्मण रहता था, इतना ही नहीं ब्राह्मण होने के नाते वह दुर्गा माता का बहुत बड़ा भक्त भी था। एक दिन की बात है, कि उसके घर में सुमति नाम की एक कन्या ने जन्म लिया, जोकी बहुत ही ज्यादा सद्गुण और बहुत ही ज्यादा सुंदर थी। वह अपने बचपन में ही अपने पिता यानी कि ब्राह्मण के घर में अपनी सहेलियों के साथ खेल खेला करती थी। देखते ही देखते हैं वह इतनी ज्यादा तेजी से बड़ी हो रही थी, मानो वह शुक्ल पक्ष में चांद की कला हो, क्योंकि शुक्ल पक्ष में चांद की कला भी तेजी से बड़ी होती है।
ब्राह्मण हुआ अपनी बेटी समिति से क्रोधित
आगे ब्रह्मा जी बोले, कि वह ब्राह्मण दुर्गा मां का बहुत ही बड़ा भक्त था, इसलिए वह रोज दुर्गा मां की पूजा करके होम किया करता था, जिस वक्त उसकी बेटी यानी कि सुमति हमेशा उस स्थान पर मौजूद रहती थी। लेकिन एक दिन की बात है, कि सुमति अपनी सहेलियों के साथ खेलने में इतनी ज्यादा व्यस्त हो गई, कि वह उसके पिता के साथ पूजा स्थान में पहुंच ही नहीं पाई, और उसने उस दिन माता दुर्गा की पूजा नहीं की। यह देखकर उसके पिता यानी कि ब्राह्मण को बहुत ही ज्यादा क्रोध आया, और उसने गुस्से गुस्से में ही जाकर अपनी बेटी से कहा, कि अरे दुष्ट पुत्री यह तूने क्या किया, तूने तो आज दुर्गा माता की पूजा ही नहीं की। अब तुझे इसका पश्चाताप करना होगा, जिसके लिए मैं तेरा विवाह किसी कुष्ठ रोगी या फिर दरिद्र इंसान से करवा दूंगा।
जब सुमति ने अपने ब्राह्मण पिता की यह बात सुनी, तो उसे अपने पिता के इस बात पर बहुत ही ज्यादा दुख हुआ, लेकिन फिर भी उसने अपने पिता से कहा, कि पिता जी मैं आपकी बेटी हूं, और मैं आपकी ही आज्ञा का पालन करूंगी, आप चाहे जैसा चाहे कर ले, आप चाहे तो मेरा विवाह किसी कुष्ठ रोगी या फिर दरिद्र इंसान से भी कर दें, मुझे इस बात पर किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं है, क्योंकि मुझे मालूम है कि मेरे भाग्य में जो लिखा है वह मुझे मिलकर ही रहेगा, क्योंकि इंसान जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है, ईश्वर उसे वैसा ही फल प्रदान करते हैं।
ब्राह्मण की बेटी सुमति का कुष्ठ रोगी व्यक्ति से विवाह
जब सुमति ने अपने पिता जी से ऐसे वचन कहे, तो मानो की चिंगारी आग में बदल गई हो, उसके पिता का गुस्सा और भी ज्यादा बढ़ गया, और गुस्से में आकर उसने अपने बेटी का विवाह एक कुष्ठ रोगी व्यक्ति से कर दिया, और उसके बाद उसने अपनी बेटी से कहा कि जा अब देखता हूं कि तू अपने भाग्य के भरोसे आखिर क्या करती है। यह सुनकर सुमति को बहुत ही ज्यादा दुख हुआ कर वह मन ही मन विचार करने लगी की हाए रे मेरी किस्मत की मुझे ऐसा पति नसीब में मिला। इस प्रकार से अपने दुख का वर्णन करते हुए वह उदास मन से ही अपने पिता के यहां से अपने पति के साथ निकल गई, उसके बाद सुमति और वह व्यक्ति एक घने जंगल में गए जहां की उन्होंने बहुत ही कष्ट और परेशानियों का सामना करते हुए उस घने जंगल में अपनी रात व्यतीत की।
दुर्गा माता ने प्रसन्न होकर दिए ब्राह्मण की बेटी को दर्शन
जब ऐसे ही ब्राह्मण की बेटी अपना जीवन व्यतीत कर रही थी, तो एक दिन की बात है जब दुर्गा मां ने उसके पूर्व जन्म के पुण्य से प्रसन्न होकर उसे साक्षात दर्शन दिए, और कहा कि हे दिन ब्राह्मणी, मैं तुम्हारे द्वारा किए गए पिछले जन्म के कार्यों से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हु, इसलिए मैंने तुम्हें दर्शन दिए हैं, कहो कि तुम्हें क्या चाहिए, मैं तुम्हारी हर इच्छा पूरी करूंगी। इसके बाद सुमति ने दुर्गा माता से कहा कि आप कौन है पहले यह मुझे आप बताइए।
कन्या की उस बात को सुनकर दुर्गा माता ने कहा, कि मैं आदिशक्ति भगवती हूं, और मैं ही सरस्वती हु जब भी कोई भक्त मुझे प्रसन्न करता है, तो मैं उस भक्त के सभी कष्टों को दूर करती हूं, और मैं यहां भी तुम्हारे कष्टों को दूर करने आई हूं, क्योंकि मैं तुम्हारे द्वारा किए गए पिछले जन्म के पुण्य से बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हुई हू।
माता ने बताई ब्राह्मणी को पिछले जन्म की घटना
इतना कहने के बाद दुर्गा माता उस ब्राह्मणी को कहती है, कि चलो मैं तुम्हें तुम्हारे पिछले जन्म के बारे में कुछ बताती हूं, और ऐसा कहने के बाद दुर्गा माता ब्राह्मणी से कहती है, कि पिछले जन्म में तुम निषाद नामक एक व्यक्ति की पत्नी थी, और तुम बहुत ही ज्यादा पतिव्रता थी, एक दिन की बात है कि तुम्हारे पति यानी कि निषाद ने चोरी की, जिसके कारण सिपाहियों ने तुम्हें और तुम्हारे पति को साथ में पकड़ लिया, और कारागार में डाल दिया। इतना ही नहीं, कारागार में डालने के बाद उन्होंने तुम्हें भोजन भी नहीं दिया, जिस कारण से तुम्हें बिना भोजन और बिना जल के ही कारागार में अपना दिन काटना पड़ा।
वह जो समय था, वह नवरात्रि का समय था, और तुम दोनों ने 9 दिनों तक ना ही कुछ खाया था, ना ही कुछ पिया था। इसलिए तुमने नवरात्रि का यह व्रत को सफलतापूर्वक पूरा किया था, और इसी वजह से मैं तुमसे बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हूं, और मैं इस जन्म में तुम्हें तुम्हारा मनचाहा वर प्रदान करने आई हूं। तो इसलिए कहो कि तुम मुझसे क्या चाहती हो।
माता के आशीर्वाद से ब्राह्मणी का पति हुआ स्वास्थ्य
जब ब्राह्मणी सुमति ने माता दुर्गा के इस वचन को सुना, तो उसके बाद उसने दुर्गा माता से कहा कि अगर आप सच में मेरी कोई इच्छा पूरी कर सकते हो, तो कृपा करके आप मेरे पति के इस रोग को ठीक कर दें, इसके बाद माता दुर्गा सुमति से कहती है, कि मैं तुम्हारे पति का रोग तो ठीक कर दूंगी, लेकिन इसके लिए तुम्हें पिछले जन्म में किए व्रत के एक दिन के पुण्य को समर्पित करना होगा, जिसके बाद सुमति इस बात के लिए मान जाती है, और दुर्गा माता उस व्यक्ति के रोग को पूरी तरह से ठीक कर देती है, जिससे कि सुमति बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हो जाती है।
जब वह अपने पति को पूरी तरह से स्वस्थ देखती है, तो उसे दुर्गा माता के ऊपर पूरा विश्वास हो जाता है, और वह दुर्गा माता की स्तुति करने लगती है, सुमति दुर्गा माता को कहती है, कि हे दुर्गा, माता आप ही है जो लोगों के सभी दुखों को दूर करती हो, उन्हें रोगी से निरोगी जीवन का आशीर्वाद प्रदान करती हो, उनकी हर मनोकामना को पूरी करते हो, और उनकी सभी कष्टों से रक्षा करती हो, मेरे खुद के पिता ने मुझे घर से निकाल दिया, और मेरा विवाह एक कुष्ठ रोगी व्यक्ति के साथ कर दिया, आप ही हैं जिसने कि मेरी मदद की, और मेरा कल्याण किया है। मैं आपको शत-शत प्रणाम करती हूं, कृपया करके मेरी रक्षा करें।
माता दुर्गा ने बताया ब्राह्मण की बेटी को नवरात्रि व्रत की पूरी विधि
जब माता दुर्गा ने ब्रह्माणी की इस स्तुति को सुना, तो वह उससे और भी ज्यादा प्रसन्न हो गई और उन्होंने सुमति से कहा कि तुम्हें जल्द ही एक पुत्र की प्राप्ति होगी, जोकी बहुत ही ज्यादा बुद्धिमान कुशल और कीर्ति प्राप्त करने वाला होगा। इतना कहने के बाद माता दुर्गा सुमति से कहती है कि अगर तुम्हें और कुछ भी मांगना है, तो मांग लो, आज मैं तुमसे बहुत ही ज्यादा प्रसन्न हूं, मैं तुम्हारी हर एक इच्छा पूरी करूंगी। यह सुनकर ब्राह्मणी दुर्गा माता से कहती है, की माता अगर आप सच में मुझसे प्रसन्न है, तो कृपा करके आप मुझे नवरात्रि में व्रत रखने की पूरी विधि को बताएं, जिससे कि मैं इस व्रत को रखकर अपना कल्याण कर सकूं।
इसके बाद भगवती यानी की दुर्गा माता ब्राह्मणी से कहती है कि ठीक है चलो मैं तुम्हें विस्तार से नवरात्रि के उस विधि के बारे में बताती हूं, जिसे करने से तुम्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी, और तुम्हारी हर मनोकामना पूर्ण होगी। साथ ही तुम्हें मोक्ष की भी प्राप्ति होगी। ऐसा कहने के बाद दुर्गा माता कहती है, इस व्रत को करने के लिए तुम्हें आश्विन माह के प्रतिपदा से लगातार 9 दिनों तक यानी की नवमी तिथि तक इस व्रत को करना होगा, इसमें तुम्हे व्रत करना होगा, यानी कि तुम्हें भोजन ग्रहण नहीं करना है, अगर तुम 9 दिन में भोजन ग्रहण करें बिना नहीं रह सकती, तो तुम दिन भर में एक बार भोजन कर सकती हो। इसके बाद तुम्हें किसी ज्ञानी पंडित की मदद से घाट का निर्माण करना है, और उसके बाद तुम्हें वाटिका का निर्माण करके उसे प्रतिदिन जल से सीचना है, इसके बाद तुम्हें करना यह है कि तुम्हें अपने पूजा स्थान पर महालक्ष्मी महाकाली और मा सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करनी है, और रोज उनकी पूजा करने के साथ उन्हें पुष्प से अर्घ्य देना है।
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माता ने बताया नवरात्रि व्रत के फायदे और महत्व
इसके बाद दुर्गा माता ने ब्राह्मणी को अर्घ्य देने के महत्व को बताते हुए कहा कि अगर तुम बिजौरे के फल से अर्घ्य देती हो तो इससे तुम्हें रूप की प्राप्ति होगी, अगर तुम जायफल से अर्घ्य देती हो तो इससे तुम्हें बहुत ही ज्यादा कीर्ति की प्राप्ति होगी, इसी के साथ दाख से अर्घ्य देने से कार्य सिद्ध होगा यानी कि तुम्हारा सभी कार्य अच्छे से होगा। इसी प्रकार अगर तुम केले फल का इस्तेमाल करके अर्घ्य देती हो तो इससे तुम्हें बहुत ही ज्यादा आभूषणों की प्राप्ति होगी और आवले से अर्घ्य देने से तुम्हें सुख की प्राप्ति होगी। इस प्रकार से तुम्हें पूरे नवरात्रि में 9 दिन अलग-अलग चीजों जैसे कि फल और फूलों की मदद से अर्घ्य देकर इस व्रत को विधिपूर्वक समाप्त करना है, और नौवे दिन हवन करके अपने व्रत का उद्यापन करना है।
इसके बाद दुर्गा माता हवन की प्रक्रिया ब्राह्मणी को बताते हुए कहती है, कि तुम्हें विभिन्न प्रकार की वस्तुएं जैसे कि नारियल, घी, खंड, गेहूं, शहद, जौ आदि वस्तुओं का इस्तेमाल करके हवन की प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए, इस प्रकार से हवन करने से तुम्हें बहुत ही ज्यादा सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
माता ने बताया हवन और यज्ञ का महत्व
अगर तुम आवला से होम करती हो तो तुम्हें कीर्ति की प्राप्ति होती है, केले का होम करने से तुम्हें संतान की प्राप्ति होती है, इसी के साथ तुम अन्य पदार्थ जैसे की घी, खंड, गेहूं, तिल, जौ, शहद, आदि वस्तुओं का होम हवन में करती हो, तो इससे तुम्हें मनवांछित फल प्राप्त होता है। इतना करने के बाद आपको आचार्य को प्रणाम करना है, और उसे दान दक्षिणा करनी है। तो इस प्रकार से तुम ही क्या इस संसार का कोई भी व्यक्ति विधि विधान से नवरात्रि के इस व्रत को करके इस व्रत से मिलने वाले फायदा को प्राप्त कर सकता है।
इस व्रत को करने से व्यक्ति के सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं, इस व्रत के दौरान दान दक्षिणा याद से करनी चाहिए, क्योंकि इस दिन आप जो भी दान करते हैं, आगे आने वाले भविष्य में आपको उसका कई गुना फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से हमें अश्वमेध यज्ञ को करने जितना फायदा प्राप्त होता है, तो इससे आप इस व्रत के महत्व के बारे में जान ही सकते हैं।
इतना कथा कहने के बाद ब्रह्मा जी ने बृहस्पति देव से कहा, कि इस विधि को बताकर दुर्गा माता उस स्थान से चली गई, और सुमति यानी कि ब्राह्मणी ने इस व्रत को पूरी विधि विधान से किया, यानी कि सुमति ने ही इस संसार में सबसे पहले इस व्रत को किया। तो ऐसे में अगर कोई स्त्री भी इस व्रत को पूर्ण विधि विधान से करती है, तो उसे भी बहुत ही सौभाग्य की प्राप्ति होती है, और वह अंत में मोक्ष को प्राप्त करती है। इतना कहने के बाद बृहस्पति जी ब्रह्मा जी को धन्यवाद कहते हैं, कि आपने मुझे इतनी महत्व वाली इस व्रत के बारे में जानकारी दी, जिसके बाद ब्रह्मा जी बृहस्पति जी से कहते हैं कि यह व्रत अनमोल है, क्योंकि दुर्गा माता खुद इस पूरे संसार का पालन करने वाली है, बोलो भगवती माता की जय।
नवरात्रि व्रत कथा से होने वाले फायदे (Navratri Vrat Se Kya Fayde Hote Hai)
दोस्तों जैसा कि हम सभी को मालूम है कि नवरात्रि का पूरा का पूरा नौ दिन दुर्गा माता को समर्पित होता है, और हम आपको बता दे की दुर्गा माता सभी दुखों को हरने वाली तथा लोगों को सुख प्रदान करने वाली देवी है, तो ऐसे में अगर आप नवरात्रि व्रत करते हैं, और इस दौरान नवरात्रि व्रत कथा का पाठ करते हैं, तो इससे आपको दुर्गा माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है। दुर्गा माता आपकी हर मनोकामना पूर्ण करती है, इतना ही नहीं, कहा जाता है कि नवरात्रि के दौरान आप लोगों को जितनी दान दक्षिणा करते हैं, आपको उसका दुगना फल प्राप्त होता है। तो इसलिए आपको कभी भी इस दौरान दान दक्षिण करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। इतना ही नहीं, कहा जाता है कि अगर कोई सच्चे मन से इस व्रत को करता है, और कथा का पाठ करता है, तो वह पूरी तरह से पवित्र हो जाता है, और उसका मन शांत रहता है और उसे मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है, और उसे अपने सभी समस्याओं पीड़ाओं और दुखों से भी मुक्ति मिलती है। तो अगर आप भी चाहते हैं कि आपको भी यह सारे फायदे मिले, तो आप भी नवरात्रि के दौरान व्रत करके व्रत कथा का पाठ कर सकते हैं।
नवरात्रि व्रत पूजा विधि (Navratri Vrat Puja Vidhi)
तो दोस्तों जैसा कि हम सभी को मालूम है कि नवरात्रि का दिन माता दुर्गा को समर्पित होता है, और उस दिन एस अलग-अलग दिनो में माता के नौ अलग-अलग अवतारों की पूजा की जाती है, इस दिन आपको साफ-सफाई का भी विशेष ध्यान रखना होता है, तभी आपको इस व्रत का पूरा फल मिलता है। वैसे तो इसमें अलग दिन आपको अलग-अलग माता के स्वरूपों की पूजा करनी होती है, लेकिन अगर हम आपको एक बार पूजा विधि के बारे में बता देंगे, तो आप सभी दिन एक प्रकार से पूजा करके माता की पूजा करके इस व्रत को पूरा कर सकते हैं, तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं नवरात्रि व्रत पूजा विधि के बारे में।
1: दोस्तों नवरात्रि की सबसे पहले दिन आपको कलश स्थापित करना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है, कहा जाता है की कलश की पूजा सबसे पहले दिन की जानी चाहिए, कलश को गणेश जी का रूप माना जाता है, इनके बिना यह व्रत पूरी तरह व्यर्थ माना जाता है।
2: जिस दिन आपका व्रत का पहला दिन है उस दिन आपको सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाना है और स्नान आदि कार्य करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके तैयार हो जाना है।
3: इसके बाद आपको अपने पूजा स्थान पर जाना है, और अपने पूजा के साथ को गंगाजल छिड़क कर पवित्र करना है, उसके बाद आपको एक लकड़ी की चौकी लेनी है, जिस पर आपको शैलपुत्री या फिर दुर्गा माता की प्रतिमा या फिर मूर्ति स्थापित करनी है।
4: इसके बाद आपको कलश स्थापित करना है जिसके लिए आप एक नारियल में कलावा बांधे और उसके ऊपर आम और अशोक के पत्ते बांध दे। ध्यान रखना कि जब आप नारियल को कलश पर रखें तो उसका मुंह नीचे की ओर न हो।
5: इसके बाद आपको माता की आराधना करनी है और अपने व्रत का संकल्प लेना है, आप चाहे तो लगातार 9 दिनों तक इस व्रत को करके व्रत पूरा कर सकते हैं।
6: इसके बाद आपको माता को रोली चंदन आदि अर्पित करनी है, इसके बाद आप माता को सफेद वस्त्र अर्पित कर सकते हैं, क्योंकि सफेद रंग माता को बहुत ही ज्यादा पसंद होता है। इसके बाद आपको माता की आरती करनी है, जिसके लिए आप देसी घी के दीपक का इस्तेमाल कर सकते हैं।
7: दोस्तों जब आप माता की आरती कर ले उसके बाद आप माता को भोग लगाए आप माता को सफेद चीज भोग में लगा सकते हैं। इसी के साथ आप माता को फल और मिठाई भी भोग के रूप में लगा सकते हैं। इसके बाद हमने जो आपको व्रत कथा के बारे में बताया है उस वक्त कथा का पाठ करें, इस दिन आप दुर्गा सप्तशती का भी पाठ कर सकते हैं।
8: जब आप यह कार्य कर रहे हो तो इस बात का ध्यान रखें, कि इस दौरान अपने घर में और पूजा रूम में कपूर जालना ना भूले, आपको यह कार्य लगातार 9 दिनों तक करना है, इससे घर में हमेशा सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और माहौल भी अच्छा रहता है।
तो दोस्तों वैसे तो यहां हमने आपको सिर्फ पहले दिन ही नवरात्रि के पूजा विधि के बारे में बताया है, इसमें 9 दिन में आपको दुर्गा माता की अलग-अलग अवतारों की पूजा करनी होती है, तो आप इसी प्रकार से दुर्गा माता के सभी अवतारों की पूजा कर सकते हैं। तो चलिए आपको यह बता देते हैं कि कौन से दिन आपको दुर्गा मां के किस अवतार की पूजा करनी होगी।
नवरात्रि व्रत दुर्गा मां के अवतार पूजा विधि
तो दोस्तों जैसा कि ऊपर हमने बताया कि सबसे पहले दिन यानी की नवरात्रि के पहले दिन आपको दुर्गा मां की शैलपुत्री अवतार की पूजा करनी होगी, अगर बात करें दूसरे दिन की, तो इस दिन आपको ब्रह्मचारिणी अवतार की पूजा करनी होगी। रही बात तीसरे दिन तो तीसरे दिन आपको चंद्रकांता, चौथे दिन आपको स्कंदमाता की पूजा करनी है। छठवें और सातवें दिन में क्रमशः आपको कात्यायनी और कालरात्रि अवतार की पूजा करनी होगी, और रही बात लास्ट के दो दिन यानी की आठवीं और नौवे दिन की, तो इसमें आपको महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा करनी होगी। तो आप हमारे द्वारा बताए गए पूजा विधि से इन दुर्गा मां के सभी अवतारों की पूजा कर सकते हैं, क्योंकि इन सभी में आपको एक ही व्रत कथा का पाठ करना होता है, जो हमने आपके ऊपर नवरात्रि व्रत कथा की माध्यम से बताई है।
नवरात्रि व्रत के नियम (Navratri Vrat Ke Niyam)
तो दोस्तों अगर आप नवरात्रि व्रत कर रहे हैं, और व्रत के दौरान कथा का भी पाठ कर रहे हैं, और आप चाहते हैं कि आप इस व्रत को विधि-विधान से संपन्न करें, और आपको इस व्रत से मिलने वाले सभी फायदे मिले तो आपको इस व्रत को पूरे विधि विधान यानी कि नियमों से करना बहुत ही ज्यादा आवश्यक है, तो चलिए आगे बढ़ते हैं, और आपको कुछ उन बातों के बारे में बताते हैं, जिन बातों का ध्यान आपको इस व्रत को रखने से पहले रखना चाहिए, ताकि आपको किसी भी प्रकार की परेशानी ना हो।
1: अगर आप नवरात्रि का व्रत कर रहे हैं, तो ध्यान रखें कि हो सके तो आप जमीन पर ही सोए, और अगर आप जमीन पर नहीं सो सकते तो कोशिश करें कि आप कोई ऐसी पलंग या तख्ते पर सोए जिसमें की कोई गद्दा ना हो।
2: अगर आप नवरात्रि का व्रत करना चाहते हैं, या फिर कर रहे हैं, तो इस बात का ध्यान रहे की व्रत के दौरान आपको पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना है, आपको मांस और शराब जैसी चीजों को घर में भी नहीं आने देना है, और ना ही इनका सेवन करना है, और ध्यान रहे कि घर के सदस्य भी ब्रह्मचर्य का पालन करें तो और भी अच्छा रहेगा।
3: व्रत के दौरान आपको किसी भी प्रकार का झगड़ा नहीं करना है, आपको शांतिपूर्वक इस व्रत को शुरू करके शांतिपूर्वक इस व्रत का उद्यापन करके इसे पूरा करना है।
4: अगर आप पूरी विधि विधान से इस व्रत को पूरा करना चाहते हैं, तो हम आपको बता दें की व्रत के दौरान आपको अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए, आप फलाहारी करके इस व्रत को पूरा कर सकते हैं, लेकिन हां अगर आपको स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या है, तो आपको दिन में एक बार भोजन कर लेना चाहिए।
5: अगर आप नवरात्रि का व्रत कर रहे हैं, तो इस दौरान आपको अपने मन पर काबू रखना है आपके मन में गलत चीज नहीं आने देनी है, क्योंकि इससे आपका मन भटकता है और आप व्रत को अच्छे से संपन्न नहीं कर पाते हैं।
नवरात्रि व्रत उद्यापन विधि (Navratri Vrat Udhyapan Vidhi)
तो दोस्तों जैसा कि ऊपर हमने आपको नवरात्रि व्रत को शुरू करने के नियमों और विधि के बारे में बताया था, तो दोस्तों अगर आप किसी भी चीज को विधि विधान से शुरू कर रहे हैं, तो आपको उसे पूरी विधि विधान से खत्म भी करना चाहिए। तो अगर बात करें नवरात्रि व्रत की, तो इसका उद्यापन करने के लिए भी विधि होती है और आपको विधि का पालन करके ही इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए, तो चलिए आगे बढ़ते हैं और आपको नवरात्रि व्रत उद्यापन विधि के बारे में बताते हैं।
दोस्तों नवरात्रि के व्रत का उद्यापन करने के लिए सबसे पहले आपको वह दिन निश्चित करना होगा जिस दिन आप व्रत का उद्यापन करना चाहेंगे, ऐसा इसलिए, क्योंकि कई लोग व्रत के अष्टमी के दिन अपना व्रत का उद्यापन करते हैं, तो कोई लोग नवमी के दिन। तो आप जिस दिन भी अपना व्रत उद्यापन करना चाहे, हमारे द्वारा बताए गए इस तरीके से अपना व्रत उद्यापन कर सकते हैं। दोस्तों एक और बात हम आपको यह भी बता दें, की व्रत का उद्यापन करने के लिए आपको नौ कन्याओं और एक बालक को भोजन करवाना होता है, उसके बाद ही आप अपने व्रत का उद्यापन कर सकते हैं।
1: तो जिस दिन भी आपको अष्टमी या फिर नवमी, के दिन अपने व्रत का उद्यापन करना है, उस दिन आपको सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि का कार्य करके स्वच्छ वस्त्र धारण करके तैयार हो जाना है।
2: इसके बाद आपको सुबह ही कन्याओं और बालकों के लिए भोजन तैयार करके रख लेना है, जिसके बाद आपको दुर्गा माता की पूजा करने तथा अपने व्रत का उद्यापन करने के लिए हवन का कार्य करना है। हवन का कार्य करने के लिए आप किसी ज्ञानी पंडित की सहायता ने ताकि आप पूरे विधि विधान से हवन का कार्य पूरा कर सके।
3: इतना करने के बाद आपको माता को भोग लगाना होता है, माता को भोग लगाने के बाद आपको नौ कन्याओं की पूजा करनी होती है, जिसके लिए सबसे पहले आपको नौ कन्याओं के हाथ पैरों को अच्छे से धोना होता है, और उन्हें एक आरामदायक आसन में बिठाना होता है।
4: इतना करने के बाद आपको सभी नौ कन्याओं और बालक का तिलक करना है और उनके हाथ में कलावा बांध देना है।
5: इसके बाद आपको नौ कन्याओं और उस एक बालक को जिमाना है, यानी कि आपको उन्हें श्रद्धा पूर्वक भोजन करवाना है।
6: भोजन करवाने के बाद आप फिर से नौ कन्याओं के पैर और हाथों को अच्छी तरह से धो दे।
7: इसके बाद आपका व्रत उद्यापन यहीं पर समाप्त होता है, इसके बाद आप उन सभी कन्याओं और बालक को दक्षिणा दें, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें, और आपने जो माता को भोग लगाया था, उसे परिवार के अन्य सदस्यों सहित खुद ग्रहण करें, और इस प्रकार से अपने व्रत का उद्यापन करे।
नवरात्रि व्रत के दौरान क्या है खाना चाहिए (Navratri Vrat Mai Kya Khana Chiye Kya Nahi Khana Chiye)
तो दोस्तों कई लोग ऐसे होते हैं जिन्हें की इस बात का बहुत ही ज्यादा कंफ्यूजन होता है कि उन्हें नवरात्रि के व्रत के दौरान क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। तो हम आपको बता दें कि अगर आप नवरात्रि का व्रत कर रहे हैं, तो उसमें आपको अन्न का ग्रहण नहीं करना चाहिए, लेकिन हां आप इसमें फल और दूध से बनी आदि चीज ग्रहण कर सकते हैं। फल की बात करें तो उसमें आप से केला, अनार, संतरा, मोसंबी, आदि शामिल कर सकते हैं, और अगर बात करें दूध और दूध से बनी चीजों की, तो उसमें आप मिल्क शेक, दही, रायता, पनीर आदि का इस्तेमाल अपने खाने के लिए कर सकते हैं, और अगर बात करें कि इस दिन आपको कौन सी चीज हैं जो नहीं खानी चाहिए, हम आपको बता दे कि इस दिन आपको तापसीक भोजन जैसे कि लहसुन प्याज आदि का सेवन नहीं करना चाहिए, इसी के साथ आपको हल्दी नमक और आदि मसाले का भी सेवन नहीं करना चाहिए, आप चाहे तो सेंधा नमक से बनी चीजे खा सकते हैं। ईसी के साथ आपको व्रत के दौरान किसी भी प्रकार की नशीली पदार्थ जैसे कि शराब, मदिरा और तंबाकू आदि का भी पान नहीं करना चाहिए, आपको इन सभी चीजों से दूर रहना चाहिए।
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